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कम्युनिष्ट और भारत का विभाजन

कम्युनिष्ट और भारत का विभाजन

by हिंदी विवेक
in अवांतर
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1947 से पहले मुस्लिम लीग तो सांप्रदायिक थी ही, मगर सांप्रदायिकता के विरोध की रहनुमाई करने वाली घोर सेक्युलर कम्युनिस्ट पार्टी ने भी पाकिस्तान की मांग का समर्थन किया था। उसने मुस्लिम लीग की पाकिस्तान की सांप्रदायिक और अलगाववादी मांग को जायज ठहराने की कोशिश की। कम्युनिस्ट पार्टी ने मुस्लिम लीग को मजबूत बनाने के लिए अपने सारे मुस्लिम कार्यकर्ताओं को उसमें शामिल होने का निर्देश भी दिया था। मुस्लिम लीग ने 1940 के बाद पाकिस्तान की मांग को पुरजोर तरीके से उठाना शुरू किया था।

19 सितंबर 1942 को भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की पूर्ण बैठक में एक प्रस्ताव पारित किया गया। यह प्रस्ताव ही बाद में ‘ऑन पाकिस्तान एंड नेशनल यूनिटी’ शीर्षक से भी प्रकाशित हुआ। इस प्रस्ताव में राष्ट्रीयताओं की परिभाषा करते हुए कहा गया था, ‘भारतीय जनता के हर वर्ग जिसके पास होमलैंड के तौर पर एक क्षेत्र, सामूहिक ऐतिहासिक परंपरा, सामूहिक भाषा, संस्कृति, एक मनोवैज्ञानिक संरचना और सामूहिक आर्थिक जीवन है, उन्हें एक अलग राष्ट्रीयता माना जाएगा।

उन्हें भारतीय संघ या महासंघ में एक स्वायत्त राज्य के रूप में अस्तित्व में रहने और अगर उनकी इच्छा हो तो अलग होने का अधिकार होगा।’ इस सिलसिले में पठान, पश्चिमी पंजाबी (जहां मुस्लिमों का वर्चस्व था), सिक्ख, सिंधी, हिंदुस्तानी, राजस्थानी, गुजराती, बंगाली, असमी, बिहारी, उडिय़ा, आंध्र, तमिल, कर्नाटकी, महाराष्ट्रीयन और मलयाली का राष्ट्रीयताओं के तौर पर जिक्र किया गया था। राष्ट्रीयताओं के आत्मनिर्णय के इस सिद्धांत के आधार पर पाकिस्तान की मांग की भी हिमायत की गई थी।

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की डोर हमेशा कम्युनिस्ट इंटरनेशनल का प्रकारांतर से सोवियत संघ के नेताओं के हाथ में रही। इसलिए ज्यादातर महत्वपूर्ण फैसले मास्को में लिए जाते रहे। दूसरे विश्वयुद्ध की शुरुआत में कम्युनिस्ट पार्टी ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ संघर्ष का दम भरती रही। तभी अंतर्राष्ट्रीय स्थिति ने पलटी खाई। अब सिर्फ अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हिटलर ने सोवियत संघ पर भी हमला कर दिया। इसके साथ ही कम्युनिस्ट इंटरनेशनल या सोवियत नेताओं के इशारे पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने भी अपना रंग बदला।

All India Muslim League, 1906 - Rau's IAS

ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ संघर्ष की बजाय अब उसके लिए हिटलर के फासिज्म के खिलाफ संघर्ष और उसके लिए अंग्रेजों के साथ सहयोग ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया। पार्टी के रवैये में आए परिवर्तन के बाद कम्युनिस्ट नेता जेलों से रिहा कर दिए गए, क्योंकि वे अंग्रेज सरकार के युद्ध: प्रयासों में मदद करने को तैयार हो गए थे।

इसके बाद सार्वजनिक तौर पर कम्युनिस्ट भले ही साम्राज्यवाद विरोधी तेवर अपनाते रहे, मगर उनकी रणनीति यह थी कि कांग्रेस अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष को स्थगित कर दे और उनके युद्ध-प्रयासों में मदद करे। इसी नीति के तहत उन्होंने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन का भी विरोध किया।

कम्युनिस्ट पार्टी ने विभाजन पूर्व के दौर में सबसे अजीब फैसला तो यह किया कि अपने मुस्लिम सदस्यों को लीग में शामिल होने का निर्देश दिया। इन मुसलिम कामरेडों से कहा गया था कि वे पाकिस्तान की नई राष्ट्रीयता को मजबूत बनाने में सक्रिय भूमिका निभाएं। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में कम्युनिस्ट पार्टी के छात्र संगठन ऑल इंडिया स्टुडेंटस फेडरेशन का मुस्लिम लीग के छात्र संगठन ऑल इंडिया मुस्लिम स्टुडेंटस फेडरेशन में विलय हो गया था।

The wounds have never healed': living through the terror of partition |  South and central Asia | The Guardian

हम्जा अल्वी जो स्वयं कम्युनिस्ट थे, ने लिखा है, ‘एआईएसएफ को भंग करने के आदेश ऊपर से आए थे और सदस्यों को निर्देश दिया गया था कि ऑल इंडिया मुस्लिम स्टुडेंटस फेडरेशन में शामिल हों। पंजाब में डैनियल लतीफी को बुला कर राज्य मुस्लिम लीग का ऑफिस सेक्रेटरी बनने को कहा गया था।’ इस तरह कम्युनिस्ट पार्टी के कई कामरेड देखते-देखते मुस्लिम लीग में स्थानीय स्तर पर नेता बन गए।

India's Partition: A History in Photos - The New York Times

कम्युनिस्ट पार्टी की रणनीति क्या थी इस बारे में मतभेद हो सकते हैं, मगर यह एक सच्चाई है कि कम्युनिस्ट पार्टी ने पाकिस्तान की मांग का समर्थन किया था और इसके साथ इस अलगाववादी मांग को उठानेवाली घोर सांप्रदायिक मुस्लिम लीग को मजबूत करने की पूरी कोशिश की। मगर इतिहास की विडंबना यह है कि पाकिस्तान बनने के बाद मुस्लिम लीग ने वहां कम्युनिस्टों का कठोरता से दमन किया, उन्हें कभी पनपने नहीं दिया।

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी ने पाकिस्तान में कम्युनिस्ट आंदोलन को फैलाने के लिए अपने दो वरिष्ठ नेताओं डॉ. अशरफ और सज्जाद जहीर को पाकिस्तान भेजा, मगर उन्हें पाकिस्तान पहुंचते ही गिरफ्तार कर लिया गया। 10 साल जेल में रहने के बाद जब उन्हें रिहा किया गया तो उन्होंने भारत लौटने में ही अपनी खैर मानी।

 

 

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Tags: #india #pakistannewsviral

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