नवम्बर माह में विमर्श क्षेत्र में दो बड़ी घटनाएँ घटी। दोनों अति महत्वपूर्ण हैं और दोनों ही में गहन अंतरसंबंध है।
घटना एक – नवंबर प्रारंभ में अखिल भारतीय साहित्य परिषद् ने अपने 17 वें राष्ट्रीय अधिवेशन में ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर प्रसारित हो रही अश्लील, संस्कृति विरोधी सामग्री के विरुद्ध अपनी चिंता प्रकट की और इसके विरुद्ध एक प्रस्ताव पारित कर राष्ट्र के शासन, प्रशासन, जनता के समक्ष अपनी चिंता को प्रकट किया है।
अभासाप अर्थात् राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का संवैचारिक संगठन, अखिल भारतीय साहित्य परिषद्। यह संगठन भारत में जन्मी सभी भाषा, बोलियों, लिपियों के सरंक्षण, संवर्धन, संवरण का कार्य करता है। अपने षष्ठिपूर्ति वर्ष की ओर बढ़ रहे इस संगठन का ताप, व्याप और आलाप समूचे विश्व में देखा-सुना जा सकता है।
घटना दो – नवम्बर के अंत में ही, देश के उच्चतम न्यायालय ने भी भारतीय ओटीटी नियमन, इस पर प्रसारित हो रही अश्लीलता व मूल्यहीनता पर चिंता प्रकट की है।
भारतीय समाज जैसे संज्ञावान, प्रज्ञावान समाज में ऐसी स्थिति बनी ही क्यों? इस प्रश्न का उत्तर स्वयं समाज को खोजना चाहिए। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और संघ के संवैचारिक संगठन समाज की किसी भी समस्या के सदंर्भ में एक सीमा तक चुप ही रहते हैं किंतु समाज में ‘असंगत घटनाओं’ के संदर्भ में अदृश्य रूप से विमर्श अवश्य जागृत करते रहते हैं। जब इस विमर्श से भी काम नहीं चलता एवं समाज जागृत नहीं होता है तब ही संघ या संघ के संवैचारिक संगठन सार्वजनिक रूप से किसी कार्य के सूत्रों को अपने हाथों में लेते हैं। ऐसी स्थिति में भी संघ सूत्रधार तो रहता है किंतु उसे नेपथ्य में ही रहना रुचिकर लगता है। इस हेतु से ही साहित्य परिषद् ने ओटीटी की अश्लीलता, गेमिंग एप्स के घातक परिणामों के प्रति समाज जागरण का यह कार्य प्रारंभ किया है।
ये दोनों ही घटनाएँ एक स्वस्थ, संपन्न, व समृद्ध राष्ट्र हेतु एक शुभ लक्षण हैं। यद्यपि इस प्रकार का प्रसारण प्रारंभ ही नहीं होना चाहिए था। अब शीघ्र ही बंद हो ही जाना चाहिए।
साहित्य परिषद् ने समाज में भौतिकता वादी शक्तियों, बाजारवाद, ओटीटी प्लेटफॉर्म्स की नकारात्मकता, समाज विरोधी स्वरूप, जीवन मूल्य विहीन प्रसारण आदि पर अपनी चिंता, राष्ट्र के समक्ष प्रकट की है।
साहित्य परिषद् ने मनोरंजन के नाम पर प्रसारित इस गंदगी को अत्यंत लज्जास्पद एवं निंदनीय बताया है। परिषद् ने चेताया है कि, ये सामग्री युवावर्ग और बालमन व मस्तिष्क में उग्रता, अश्लीलता, विकृत यौनाचार और नशाखोरी जैसे दुराचारों को महिमा मंडित कर उन्हें अधोपतन की ओर अग्रसित कर रही है। इन माध्यमों में प्रदर्शित अधिकांश दृश्य व सामग्री नकारात्मक दृष्टिकोण को बढ़ावा देने वाली होती है।
साहित्य परिषद् ने ओटीटी के माध्यम से चल रहे गेमिंग एप्स और उससे बढ़ रही आत्महत्या की प्रवृत्ति को भी राष्ट्र के संज्ञान में लाया है। परिषद् ने अपने पारित प्रस्ताव में ओटीटी पर प्रसारित होने वाली अधिकांश सामग्री को भारतीय जीवन मूल्यों पर आघात करने वाली, राष्ट्र के स्वरूप व छवि को विकृत करके प्रस्तुत करने वाली सामग्री बताते हुए अपनी चिंता प्रकट की है। परिषद् ने कहा है कि ऐसी सामग्री का अनियंत्रित प्रसारण समाज एवं राष्ट्र जीवन के लिए अत्यधिक घातक है।

विगत कुछ वर्षों में भारत राष्ट्र में ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ के नाम पर कुछ भी वितंडा उत्पन्न किए जा रहे हैं। ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ के पश्चिम कुबोध ने या यूँ कहे कि इसकी ‘पश्चिमी प्रेत छाया’ ने भारत में अभिव्यक्ति के अर्थों को पुनर्परिभाषित की आवश्यकता इंगित कर दी है। अब समाज इस अभिव्यक्ति को पुनर्परिभाषित करे या यूँ ही ओटीटी पर अश्लीलता व ऑनलाइन गेमिंग से बर्बाद होती अपनी पीढ़ी के प्रति आँखे मूँदे रहे, यही दो मार्ग हैं। एक मार्ग चुनना है, विकास या विनाश; यही युगधर्म है।
इस अनुरूप साहित्य परिषद् ने कहा है – “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ यह नहीं कि समाज की गरिमा और नैतिकता को नष्ट करने की छूट दी जाए। स्वतंत्रता और अनुशासन, सूजन और मर्यादा, ये दोनों एक दूसरे के पूरक हैं।”
साहित्य परिषद् ने अपने राष्ट्रीय अधिवेशन में आगामी तीन वर्षों हेतु ‘आत्मबोध से विश्वबोध’ पर चिंतन, मनन, अध्ययन का वैचारिक मार्ग निश्चित किया है। आत्मबोध करते हुए ही यह विकृति ध्यान में आती है। भारत राष्ट्र की, जन-मन की विश्वबोध क्षमता के प्रकटीकरण, विश्वगुरु बनने के मार्ग पर अग्रसर होने के मध्य निश्चित ही यह चिंतनीय प्रस्ताव और यह मांगपत्र स्वयं में एक प्रकाशस्तम्भ की भाँति समाज का मार्ग आलोकित कर रहा है।
साहित्य परिषद् ने भारत सरकार से, राज्य सरकारों से माँग की है कि –
1. ओटीटी प्लेटफॉर्म एवं गेमिंग एप्पस पर प्रसारित होने वाली प्रत्येक सामग्री के परीक्षण, नियमन और वर्गीकरण हेतु शासन द्वरा एक सशक्त, स्वायत्त विधायी नियामक संस्था का गठन किया जाए।
2. डिजिटल माध्यमों में प्रस्तुत किसी भी दृश्य, संवाद या विचार को भारत की संविधानिक गरिमा, धार्मिक आस्था, सांस्कृतिक मूल्यों या सामाजिक मर्यादा और सनातन परंपरा को आहत करते हों, उन पर कड़ी निगरानी रखी जाए।
3. किशोरों और युवाओं के लिए उपयुक्त सामग्री के आयु आधारित नियंत्रण तंत्र को अनिवार्य बनाया जाए।
4. जो मंच या माध्यम अश्लीलता, हिंसा, नशाखोरी या विकृत जीवन मूल्यों का प्रचार करते हैं, उनके विरुद्ध कठोर कानूनी दंडात्मक कार्रवाई की जाए।
5. भारतीय भाषाओं और संस्कृति के संवर्धन हेतु भारतीय मूल्यों पर आधारित वैकल्पिक मनोरंजन माध्यमों को प्रोत्साहित किया जाए।
इधर अखिल भारतीय साहित्य परिषद् ने यह प्रस्ताव पारित किया और उधर संयोगवश देश के सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस संदर्भ में अपनी गहन चिंता का सार्वजनिक प्रकटीकरण कर दिया है।
मा. मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत की अगुवाई वाली बेंच ने पॉडकास्टर रणवीर अल्लाहबादिया और अन्य द्वारा इंडियाज गॉट लेटेंट शो में कथित अश्लील कंटेंट से जुड़ी एफआईआर के संदर्भ में चल रहे केस के संदर्भ में यह बातें कहीं है।
न्यायालय ने ओटीटी प्लेटफॉर्म पर अश्लील सामग्री को लेकर चिंता प्रकट करते हुए सरकार से इस पर प्रभावी नियंत्रण के लिए एक स्वतंत्र और स्वायत्त निकाय बनाने या वर्तमान नियमों को सुदृढ़ करने की आवश्यकता पर बल दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए और अश्लील सामग्री के लिए हमेशा पहले से चेतावनी दी जानी चाहिए। मा. सर्वोच्च न्यायाधीश ने कहा है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक अमूल्य अधिकार है किंतु यह विकृति का कारण नहीं बन सकती।
-डॉ. प्रवीण दाताराम गुगनानी

