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भारत-रूस सम्बंधों को मिलेगी नई मजबूती

भारत-रूस सम्बंधों को मिलेगी नई मजबूती

by हिंदी विवेक
in ट्रेंडींग
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पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों के बावजूद भारत-रूस संबंध कमजोर नहीं पड़े। बल्कि यूक्रेन संकट के बाद दोनों देशों के आर्थिक रिश्ते न केवल बने रहे, बल्कि अभूतपूर्व ऊँचाई तक पहुँचे। वर्ष 2024-25 में द्विपक्षीय व्यापार 65 अरब डॉलर के पार पहुँच गया।

 

नई दिल्ली में 4-5 दिसंबर को होने वाला भारत-रूस 22वां वार्षिक शिखर सम्मेलन ऐसे समय में हो रहा है, जब पूरी दुनिया युद्ध, प्रतिबंध, आर्थिक मंदी और भू-राजनीतिक अस्थिरता के दौर से गुजर रही है। यूक्रेन युद्ध के बाद बनी वैश्विक परिस्थितियों ने अंतरराष्ट्रीय संबंधों की दिशा ही बदल दी है। इसी पृष्ठभूमि में भारत और रूस के द्विपक्षीय संबंध आज परिपक्वता की उस अवस्था में पहुँच चुके हैं, जहाँ यह रिश्ता केवल रक्षा सौदों और ऊर्जा व्यापार तक सीमित नहीं रहा, बल्कि रणनीतिक भरोसे, तकनीकी सहयोग और बहुध्रुवीय वैश्विक दृष्टिकोण का एक महत्वपूर्ण आधार बन चुका है।

PM Modi highlights enduring India-Russia friendship bond while welcoming  President Putin | Video | India News – India TV

 

पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों के बावजूद भारत-रूस संबंध कमजोर नहीं पड़े। बल्कि यूक्रेन संकट के बाद दोनों देशों के आर्थिक रिश्ते न केवल बने रहे, बल्कि अभूतपूर्व ऊँचाई तक पहुँचे। वर्ष 2024-25 में द्विपक्षीय व्यापार 65 अरब डॉलर के पार पहुँच गया। वैकल्पिक भुगतान तंत्र, शिपिंग बीमा के नए ढाँचे और रुपया-रूबल व्यापार व्यवस्था ने इस निरंतरता को संभव बनाया। परिणामस्वरूप आज भारत रूस के समुद्री कच्चे तेल का सबसे बड़ा खरीदार बन चुका है। यह केवल सस्ता तेल खरीदने की रणनीति नहीं है, बल्कि इस बात का प्रमाण भी है कि भारत वैश्विक दबावों के बीच अपने राष्ट्रीय हितों के अनुसार स्वतंत्र निर्णय लेने में सक्षम है। अंतरराष्ट्रीय संबंधों के मूल सिद्धांत के अनुसार प्रत्येक राष्ट्र के लिए उसका राष्ट्रीय हित सर्वोपरि होता है, और भारत इसी दृष्टिकोण के साथ रूस से संवाद कर रहा है।

India's Trade Strategy for the 21st Century: Tariffs, Supply-Chains,  Investment and Technology – India Foundation

रक्षा क्षेत्र में भी दोनों देशों के रिश्ते अब एक नए दौर में प्रवेश कर चुके हैं। पहले जहाँ भारत रूस से हथियार खरीदता था, अब संयुक्त निर्माण और तकनीक हस्तांतरण पर ज़ोर है। एस-400 प्रणाली, ब्रह्मोस मिसाइल का संयुक्त उत्पादन, घर-226 हेलीकॉप्टर और सुखोई विमान के इंजन निर्माण जैसी परियोजनाएँ इसी नए सहयोग का उदाहरण हैं। फरवरी 2025 में नवीकृत सैन्य रसद समझौता और दीर्घकालिक रक्षा सहयोग कार्यक्रम ने इस साझेदारी को और मज़बूती दी है। यह ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ को भी सीधा बल देता है। भारत और रूस का वैश्विक दृष्टिकोण भी काफी हद तक समान है। ब्रिक्स, शंघाई सहयोग संगठन (डउज), रूस-भारत-चीन (ठखउ) त्रिपक्षीय मंच और जी-20 जैसे मंचों पर दोनों देशों का समन्वय दिखाता है कि बिना किसी सैन्य गठबंधन के भी गहरी रणनीतिक साझेदारी संभव है।

 

चेन्नई-व्लादिवोस्तोक समुद्री मार्ग और अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा भारत को यूरेशिया से जोड़ने वाला नया रास्ता खोल रहे हैं। इस शिखर सम्मेलन में ऊर्जा, भुगतान प्रणाली, रक्षा उत्पादन, उच्च तकनीक और संपर्क परियोजनाओं पर अहम फैसले होने की संभावना है। दीर्घकालिक तेल-गैस आपूर्ति समझौते, डिजिटल भुगतान, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और क्वांटम तकनीक में सहयोग जैसे मुद्दे प्रमुख रहेंगे। इन सभी पहलों का उद्देश्य किसी तीसरे देश के विरुद्ध मोर्चा बनाना नहीं है। इनका मूल लक्ष्य भारत और रूस-दोनों की आर्थिक, तकनीकी और रणनीतिक क्षमता को मज़बूत करना है, ताकि वे वैश्विक दबावों के दौर में भी स्वतंत्र और संतुलित निर्णय ले सकें। यही कारण है कि यह साझेदारी किसी वैचारिक प्रचार से नहीं, बल्कि ठोस ज़रूरतों और दीर्घकालिक राष्ट्रीय हितों से संचालित हो रही है। आज की दुनिया में न तो कोई देश पूरी तरह अकेला रह सकता है और न ही किसी एक शक्ति पर निर्भर हो सकता है। संतुलन और सहयोग ही आगे का रास्ता है। राष्ट्रपति पुतिन की भारत यात्रा इसी यथार्थ की पुष्टि करती है। अनिश्चितताओं के बीच भारत-रूस संबंध यह दिखाते हैं कि वैश्विक राजनीति केवल टकराव से नहीं, समझदारी और भरोसे से भी आगे बढ़ती है।

-डॉ. संतोष झा

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Tags: #IndiaRussiaRelations #CulturalExchange #StrongerTogether #DiplomaticBonding #FriendshipThroughCulture #IndoRussianUnity #GlobalPartnership #SharedHistory #CollaborativeFuture #UnityInDiversity #trade

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