भारत के कई हिस्सों में प्रत्येक वर्ष दिसंबर से फरवरी के बीच ठंड का प्रकोप बढ़ जाता है। इस दौरान देश के उत्तरी, मध्य और पूर्वी क्षेत्रों में शीत लहर चलने लगती है। बर्फीली सर्द हवाओं के कारण वातावरण का तापमान अचानक गिर जाता है, जिससे जनजीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। स्वास्थ्य पर पड़ने वाले इसके प्रभाव कभी-कभी घातक भी साबित होते हैं। विशेष रूप से वृद्धजन, छोटे बच्चे और कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता वाले लोग शीत लहर की चपेट में आसानी से आ सकते हैं।
भारतीय मौसम विभाग के अनुसार जब मैदानी क्षेत्रों में अधिकतम तापमान 10 डिग्री सेल्सियस से नीचे और न्यूनतम तापमान 4.5 डिग्री सेल्सियस से कम हो जाता है, तब शीत लहर घोषित की जाती है। पहाड़ी क्षेत्रों में यह मापदंड ऊँचाई, हवा की गति और स्थानीय परिस्थितियों पर निर्भर करता है। शीत लहरें न केवल मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं बल्कि फसलों, पशुओं और सार्वजनिक सेवाओं को भी नुकसान पहुँचाती हैं।

शरीर का सामान्य तापमान और स्थिरता –
मानव शरीर का सामान्य तापमान लगभग 37 डिग्री सेल्सियस (98.6 डिग्री फारेनहाइट) रहता है। यही संतुलन शरीर की जैविक प्रक्रियाओं के लिए आवश्यक है। यदि यह तापमान इससे बहुत ऊपर या नीचे चला जाए तो शरीर में कई विकार उत्पन्न हो जाते हैं। शरीर का ताप संतुलित रखने के लिए मस्तिष्क का “अधश्चेतक” (हाइपोथैलमस) भाग महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह ठीक उसी प्रकार कार्य करता है जैसे एक “थर्मोस्टेट” मशीन।
अधश्चेतक में दो प्रमुख केंद्र होते हैं— एक इसके अग्र भाग में और दूसरा पश्च भाग में। जब रक्त का तापमान बढ़ता है तो अग्र केंद्र सक्रिय होकर ऊष्मा के विसरण की क्रियाओं को नियंत्रित करता है। इससे शरीर अतिरिक्त ऊष्मा निकाल देता है। विपरीत स्थिति में जब रक्त का तापमान गिरता है तो पश्च केंद्र सक्रिय होकर ऊष्मा उत्पादन और संरक्षण की प्रक्रिया शुरू करता है। इस तरह शरीर का आंतरिक तापमान स्थिर रखा जाता है।
शरीर में होने वाली चयापचय (मेटाबॉलिज्म) की क्रियाएं निरंतर ऊष्मा उत्पन्न करती हैं। एक 69 किलोग्राम वज़न वाले वयस्क व्यक्ति में न्यूनतम चयापचय दर से भी प्रति घंटे लगभग 70 कैलोरी (लगभग 293,000 जूल) ऊष्मा उत्पन्न होती है। यही ऊष्मा शरीर को आंतरिक रूप से गरम रखती है।
ठंड के प्रति शरीर की प्रतिक्रिया –
सामान्यतः जब बाहरी वातावरण का तापमान 23 से 26 डिग्री सेल्सियस के बीच होता है, तब मानव शरीर को न तो ठंड और न ही गरमी का अनुभव होता है। 23 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान पर हमें ठंडक महसूस होने लगती है और 20 डिग्री से नीचे पहुँचने पर शरीर अपने आप को बचाने हेतु प्रयास करने लगता है। यही कारण है कि मनुष्य गरम कपड़े पहनता, सिर ढकता या ऊष्मा स्रोतों का सहारा लेता है।
ठंडे वातावरण में ऊष्मा हानि शरीर और वातावरण के तापमान के अंतर पर निर्भर करती है। जब यह अंतर अधिक होता है तो शरीर से ऊष्मा तेजी से बाहर निकलने लगती है। लंबे समय तक ऐसा होने से शारीरिक तापमान घटता है, जिससे “अल्पतप्तता” (हाइपोथर्मिया) की स्थिति उत्पन्न होती है।
अल्पतप्तता: लक्षण और परिणाम –
जब शरीर का तापमान 37 डिग्री से गिरकर 35 डिग्री सेल्सियस तक पहुँचता है, तो व्यक्ति में उदासीनता, थकावट और भ्रम की स्थिति दिखाई देने लगती है। 33 डिग्री पर चेतना खोने लगती है, जबकि 31 डिग्री पर मस्तिष्क का ताप नियंत्रण केंद्र काम करना बंद कर देता है। यदि तापमान 27 डिग्री तक गिर जाए, तो हृदय की धड़कन रुक सकती है और व्यक्ति की मृत्यु हो सकती है।
अल्पतप्त व्यक्ति में ठंडक महसूस नहीं होती, बल्कि शरीर की पेशियाँ कठोर हो जाती हैं और त्वचा पीली या नीली दिखने लगती है। गंभीर स्थिति में रोगी शव जैसा प्रतीत हो सकता है। ठंडे वातावरण में हवा की गति, नमी, गीले कपड़े, गति की कमी और पर्याप्त वस्त्रों का अभाव ऊष्मा हानि को और बढ़ा देते हैं।
ठंड का अनुभव और शरीर के संवेदक –
त्वचा में मौजूद ताप संवेदक ठंड और गरमी दोनों का अनुभव कराते हैं। ठंडे वातावरण में परिधीय रक्त वाहिकाएँ संकुचित हो जाती हैं, ताकि शरीर के अंदरूनी अंगों को रक्त की आपूर्ति बनी रहे। इसी कारण उंगलियाँ, कान या नाक सुन्न हो जाते हैं। अत्यधिक ठंडे क्षेत्रों, जैसे हिमालयी प्रदेशों में उचित सावधानी न बरतने पर व्यक्ति के अंग “तुषारदंश” (फ्रॉस्टबाइट) का शिकार हो सकते हैं।
ठंड का अन्य सामान्य लक्षण शरीर में कंपकंपी है। यह इसलिए होती है क्योंकि मस्तिष्क पेशियों को तेजी से सिकुड़ने-फैलने के संकेत देता है, जिससे ऊष्मा उत्पन्न होती है। यह प्रक्रिया शरीर को अस्थायी रूप से गरम रखती है और अत्यधिक ठंड से बचाने में सहायक होती है।
बचाव और सावधानियां –
शीत लहर से बचने के लिए सर्वप्रथम उचित वस्त्र और सुरक्षित आश्रय आवश्यक हैं। अत्यधिक ठंड में घर से बाहर निकलने से बचना चाहिए। यदि सड़क पर या खुले स्थान पर फँस जाएं, तो किसी बंद जगह, जैसे बस स्टॉप या भवन में शरण लें, जहाँ हवा का प्रभाव कम हो।
गीले कपड़े न पहनें तथा शरीर को गर्म करने के लिए अत्यधिक शारीरिक मेहनत न करें, क्योंकि इससे शरीर में ऊर्जा भंडार तेजी से खर्च होता है। ठंड में “गठरी” बनकर बैठ जाने से ऊष्मा हानि कम होती है। जहाँ संभव हो, आग तापकर शरीर को गर्म रखा जा सकता है।
आहार के रूप में सर्दियों में वसा और कैलोरी युक्त भोजन लेना चाहिए। शराब से परहेज करें, क्योंकि यह शरीर की ऊष्मा हानि बढ़ा देती है। बाहर निकलते समय सिर, हाथ और पाँव को अच्छी तरह ढककर चलना चाहिए।
बच्चों और बुजुर्गों की विशेष देखभाल आवश्यक है, क्योंकि उनकी तापमान नियंत्रण प्रणाली शिथिल होती है। शिशुओं के कमरे का तापमान 20 से 30 डिग्री सेल्सियस के बीच रखना उचित है, लेकिन कमरा हवादार रहना चाहिए।
शीत लहर से बचाव के प्रमुख उपाय-
- गर्म और बहु-परतों वाले कपड़े पहनें; गीले वस्त्रों से बचें।
- खिड़कियाँ-दरवाज़े बंद रखें और मोटे पर्दे लगाएँ, ताकि ठंडी हवा अंदर न आए।
- आपात स्थिति के लिए भोजन, पानी, ईंधन, दवाइयाँ और प्रकाश के साधन रखकर तैयार रहें।
- नंगी त्वचा से ठंडी धातु को न छुएँ।
- बाहरी तापमान शून्य डिग्री या उससे कम होने पर बच्चों को घर के अंदर रखें और बुजुर्गों का ध्यान रखें।
- सिर, हाथ-पैर ढककर रखें, क्योंकि इन्हीं हिस्सों से सबसे अधिक ऊष्मा बाहर निकलती है।
- ऊर्जावान भोजन और पर्याप्त जल ग्रहण करें।
- मौसम विभाग की चेतावनियों पर ध्यान दें और समय रहते सुरक्षा के उपाय करें।
– सुभाष चंद्र लखेड़ा


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