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सिडनी हमला: इस्लामी आतंकी माइंडसेट का नया परिचय

सिडनी हमला: इस्लामी आतंकी माइंडसेट का नया परिचय

by अमोल पेडणेकर
in विशेष
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ऑस्ट्रेलिया के सिडनी में हुई आतंकी घटना आतंकवाद की व्यापक व्याख्या स्पष्ट करती ये व्याख्या केवल इस घटना तक सीमित नहीं हैं, बल्कि समकालीन वैश्विक कट्टर इस्लामी आतंकवाद की प्रवृत्तियों को समझने में सहायक हैं। वर्तमान में आतंकी घटनाएँ किसी संगठित नेटवर्क के बजाय व्यक्तिगत कट्टरता के कारण हिंसक घटनाओं को अंजाम दे सकती हैं। अपनी कट्टरता को हिंसात्म्क रूप में व्यक्त करने के लिए किसी आतंकी संगठन से प्रत्यक्ष संपर्क में रहना जरूरी नहीं है।

व्यक्ति- व्यक्ति के मन में फैल रही हिंसक मजहबी कट्टरता खुफिया एजेंसियों की पहचान से भी दूर रह सकती है। ऐसी घटनाएँ बताती हैं कि मजहबी विचारधारात्मक कट्टरता किसी भी व्यक्ति में प्रवेश कर सकती है। इस प्रकार का कट्टर इस्लामी आतंकवाद संपूर्ण विश्व के सामने एक “मनोवैज्ञानिक युद्ध” सिद्ध हो रहा है। आज प्रश्न है कि इस मनोवैज्ञानिक युद्ध को समय पर रोका नहीं गया तो क्या वह संपूर्ण विश्व को चुनौती देने वाला होगा? कारण हथियार से अधिक घातक कट्टरता से जुड़े विचार हैं।

14 दिसंबर 2025 की शाम सिडनी के प्रसिद्ध बोंडी बीच के पास यहूदियों के उत्सव में अचानक दो व्यक्तियों ने भीड़ पर गोलीबारी शुरू कर दी। ये दोनों हमलावर एक पिता और उसका 24 वर्ष का बेटा थे, वह प्रत्यक्ष रूप से उत्सव में शामिल हुए यहूदियों को निशाना बना रहे थे। घटना में 16 लोग मारे गए और दर्जनों घायल हुए। पुलिस ने एक आतंकी हमलावर को घटनास्थल पर ही मार गिराया, जबकि दूसरा गंभीर हालत में पुलिस हिरासत में है।
इस हमले ने न केवल ऑस्ट्रेलिया बल्कि पूरी दुनिया को झकझोर दिया है। घटना के पश्चात तुरंत विश्व के कई नेताओं और राष्ट्र प्रमुखों ने इसे घृणा-आधारित आतंकवाद करार देते हुए हमले की कड़ी निंदा की है।

इस हमले का मुख्य उद्देश्य खास तौर पर यहूदी समुदाय को निशाना बनाना था, अन्य नागरिकों को नहीं। तय समय और स्थान पर हमला योजनाबद्ध रूप से हुआ। यह आतंकी हमला इस्लामी कट्टरपंथियों के मन में अन्य धर्मियों के संदर्भ में जो घृणा है उसका संकेत स्पष्ट करती है। ऐसे हमले सिर्फ़ स्थानीय समस्या निर्माण नहीं रहते, वे वैश्विक साम्प्रदायिक तनावों का कारण भी बनते हैं। बोंडी बीच हमला एक ऐसी त्रासदी है जिसने न केवल विश्व के यहूदी समुदाय को झकझोरा बल्कि वैश्विक समाज को यह सोचने पर मजबूर किया कि समाज, सरकार, धार्मिक और सांस्कृतिक समूहों को मिलकर परस्पर दोषारोपण से ऊपर उठकर यह समझना होगा कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में आपसी सम्मान और सुरक्षा का सही ज्ञान ही असली समाधान है।

Sydney Bondi Beach Shooting Highlights: No evidence of collusion between father-son duo attackers, says PM Albanese - India Today

आतंकवाद आज केवल किसी संगठन का नाम नहीं रह गया है। यह इस्लाम में मजहबी कट्टरता का बोझ ढोने वाले एक बड़े वर्ग का “माइंडसेट” बनता जा रहा है। इसमें मजहबी कट्टरता ही मुख्य पहचान बन जाती है, मजहब के लिए हिंसा को वैध ठहराया जाता है और निर्दोषों की हत्या को “प्रतिशोध” कहा जाता है। इसी माइंडसेट के कारण सिडनी में एक सामान्य पिता-पुत्र ने यहूदियों को त्योहार में चुन-चुनकर निशाना बनाकर मौत के घाट उतार दिया। इसी माइंडसेट ने भारत में कश्मीर के पहलगाम में हिंदुओं से धर्म पूछकर गोलियां मारी थी। भौगोलिक दूरी हज़ारों किलोमीटर की है, लेकिन इस्लामी कट्टरता की विचारधारा एक जैसी ही है। तब इस कट्टरपंथी इस्लामी आतंक को पश्चिमी मीडिया और पश्चिमी देशों के कई सरकारों ने “भारत-पाक तनाव” या “क्षेत्रीय विवाद” कहा था लेकिन अब सिडनी हमले के बाद अचानक ‘‌आतंकी हमला’ जैसे स्पष्ट शब्दों का प्रयोग हुआ।

Image

क्या आतंकवाद की पहचान पीड़ित के क्षेत्र से तय होती है? क्या निर्दोष भारतीय हिंदुओंका खून, दूसरों से कम मूल्य का है? पश्चिमी मीडिया और राष्ट्र प्रमुखों का यही दोहरा मापदंड कट्टरपंथी आतंकियों का सबसे बड़ा नैतिक हथियार बनता है। ऑस्ट्रेलिया जैसे लोकतांत्रिक देशों में लंबे समय से “सांस्कृतिक सहिष्णुता” के नाम पर इस्लामी कट्टरपंथी विचारों को अनदेखा किया जाता रहा है। लेकिन यह भूल जानलेवा साबित हो रही है। कट्टरता अल्पसंख्यक या बहुसंख्यक नहीं देखती, वह केवल कमज़ोर सरकार की इच्छाशक्ति देखती है। जब वोट के लिए राजनीति कमजोर नीतियां अपनाने लगती है, तब सुरक्षा केवल कागज़ों में रह जाती है।

Israel calls Iran's condemnation of Sydney attack deceitful | Iran International

आज यहूदी समुदाय जिस वैश्विक असुरक्षा का अनुभव कर रहा है, वह केवल मध्य-पूर्व की राजनीति का परिणाम नहीं, बल्कि यह मजहबी उन्मादी वैचारिकता के अंतरराष्ट्रीयकरण का संकेत है। यह वही चेतावनी है, जिसे भारत कई दशकों से अनुभव करता आ रहा है। जब तक विश्व सत्य को स्वीकार करने का साहस नहीं करेगा, तब तक शांति केवल एक आकांक्षा बनी रहेगी और इतिहास साक्षी है, सत्य से समझौता करने वाली सभ्यताएँ अंततः स्वयं संकट में पड़ जाती हैं।

आज यूरोप में यहूदी स्कूलों पर सुरक्षा बढ़ानी पड़ रही है, ऑस्ट्रेलिया में त्योहारों पर सेना तैनात करनी पड़ रही है और यहूदी समुदाय स्वयं को “हमेशा संभावित कट्टर आतंकी माइंडसेट का लक्ष्य” मानने को मजबूर है। इज़राइल में यह कहावत है कि “इज़राइली” होना आसान नहीं है” यह कहावत अब केवल इज़राइल के इजराइलियों तक सीमित नहीं रही। इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष का प्रभाव अब सीमाओं से बाहर निकल कर संपूर्ण विश्व भर में फैल रहा है। दुनिया के कई हिस्सों में यहूदी समुदाय असुरक्षा का अनुभव कर रहा है। फिर अगला हमला किसी और त्योहार, किसी और धर्म, किसी और शहर में कब होगा? इस बात का कोई अंदाजा नहीं। इतिहास गवाह है, आतंकवाद कभी संतुष्ट नहीं होता, वह केवल अगला अवसर ढूंढता रहता है।

Sydney attack: Bondi Beach shooting kills 16, gunmen identified as father and son - France 24

इस घटना के बाद आगे की संभावित वैश्विक हलचल क्या हो सकती है? क्या इज़राइल और अधिक आक्रामक सुरक्षा नीति अपनाएगा?
पश्चिमी देशों में घुसपैठियों और कट्टरपंथियों पर बहस तेज़ होगी? मुस्लिम समाज के भीतर भी आत्ममंथन का दबाव बढ़ेगा? भारत जैसे देशों की आतंक-पीड़ा को क्या अब नए संदर्भ में देखा जाएगा? सिडनी का हमला हमें यह याद दिलाता है कि आतंकवाद के सामने तटस्थता भी एक अपराध बन जाती है। आतंकवाद न तो किसी धर्म का प्रतिनिधि है और न ही किसी समुदाय का, इस बात पर सभी की एक धारणा है, किंतु जब आतंकवादी घटना संपूर्ण विश्व में बार-बार एक ही समुदाय के वैचारिक ढांचे से जन्म लेती है, तब उस ढांचे पर विचार करना अपरिहार्य हो जाता है।

Bondi Beach shooting updates: 15 killed in Sydney attack at Jewish event

सिडनी में यहूदियों को उनके धार्मिक उत्सव में निशाना बनाना और भारत के पहलगाम में हिंदुओं से धर्म पूछकर हत्या करना, इन दोनों घटनाओं के बीच कार्य-पद्धति, लक्ष्य, उद्देश्य और मानसिकता में स्पष्ट समानता दिखाई देती है। यह समानता कट्टर वैचारिक प्रवृत्ति की अबतक की पहचान है। “किसी भी समाज के भीतर विकृत सोच रखने वाले लोग हो सकते हैं, परंतु समाज को विकृति से मुक्त करना आवश्यक है।” इसी कारण, जब कोई मुस्लिम नागरिक, जैसे सिडनी के हमले में अहमद अल अहमद अपनी जान पर खेल कर मानवता के पक्ष में खड़ा हो गया, तो यह “सर्वे भवन्तु सुखिनः” की भावना का ही उदाहरण है। महत्वपूर्ण है कि अहमद अल अहमद ने हमलावर को रोकने की कोशिश की, उसने यह सिद्ध किया कि “धर्म हिंसा नहीं सिखाता, हिंसा का अपना अलग मत-मजहब होता है, जो कट्टर विचारधाराओं से आता है” यह तथ्य यहां रेखांकित करना आवश्यक है।

आज आवश्यकता है कि आतंकवाद को लेकर वैश्विक दृष्टिकोण में स्पष्टता आए। आतंकवाद को बिना संकोच आतंकवाद कहा जाए, वैचारिक कट्टरता पर खुला और ईमानदार विमर्श हो। तुष्टिकरण की राजनीति के स्थान पर सुरक्षा को प्राथमिकता दी जाए। सिडनी की घटना एक चेतावनी है, वह केवल ऑस्ट्रेलिया के लिए नहीं, बल्कि पूरे विश्व के लिए। आतंकवाद के सामने तटस्थता या ढिलाई अंततः आतंकवादी सोच को ही मजबूत करती है। यदि वैश्विक समुदाय ने स्पष्ट नैतिक रेखा खींचने का साहस नहीं दिखाया, तो आने वाले समय में ऐसी घटनाएँ और अधिक व्यापक रूप लेंगी। शांति और सुरक्षा केवल आकांक्षा से नहीं, वह तो सतत प्रयास का परिणाम होती है और यह प्रयास तभी सफल हो सकता है, जब सत्य को स्वीकार करने और उसका सामना करने का साहस मौजूद हो।

-अमोल पेडणेकर

 

 “इस बारे में आपकी क्या राय है? नीचे कमेंट्स में बताएं।”

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