सेक्युलर आतंकवादी इकोसिस्टम का एक उद्देश्य है. यह उद्देश्य न्याय व्यवस्था को भय (आतंक) का सन्देश देना है. इस संदेश का यथार्थ यह है कि खबरदार… आपमें से कोई भी हिंदू हितों का विचार न करें, वेद-उपनिषद के विषय में अच्छा न बोले और यदि तुमने साहस किया तो हम आप पर टूट पड़ेंगे.
वामपंथी इकोसिस्टम किस तरह आतंकवाद का निर्माण करते हैं, इसका ज्वलंत उदाहरण है मद्रास हाई कोर्ट के न्यायाधीश जी.आर. स्वामीनाथन के विरोध में चलाया गया अभियान। उनका एक ही अपराध है, वह जागृत हिंदू है। तमिलनाडु के रीति रिवाज के अनुसार माथे पर भस्म और टीका लगाकर बैठते हैं। वामपंथी इकोसिस्टम यह कैसे सहन कर सकता है?
हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति शासकीय कार्यप्रणाली का एक भाग हैं। हमारी सरकार धर्मनिरपेक्ष है। धर्मनिरपेक्ष अर्थात हिंदू विरोधी। गले में क्रॉस पहनना चल सकता है, अरबी दाढ़ी रखना भी चल सकता है, परंतु भस्मधारी अर्थात यह तो संविधान विरोधी हुआ।
इस धर्मनिरपेक्ष आतंकवादी इकोसिस्टम ने न्यायमूर्ति के विरोध में संसद में महाभियोग प्रस्ताव रखा है। ‘दि प्रिंट’ इस सिस्टम की एक वेबसाइट है। इस वेबसाइट पर जी.आर. स्वामीनाथन के बारे में एक विस्तृत लेख लिखा गया है। एनडीए के 100 सांसदों ने द्रविड़ मुनेत्र कड़गम के नेता कन्नीमोजी करुणानिधि के नेतृत्व में ओमप्रकाश बिरला को महाभियोग प्रस्ताव भेजा है। यह कन्नीमोजी डॉ. मनमोहन सिंह के समय भ्रष्टाचार के आरोप में कारावास में थे। इसे हम “धर्मनिरपेक्ष भ्रष्टाचार” कह सकते हैं।
जब कभी भी हिंदुत्व को चुनौती दी गई, तब स्वर्गीय बालासाहेब ठाकरे हिंदुत्व की भूमिका लेकर अत्यंत दृढ़ता से हिंदू समाज के साथ खड़े रहे। चाहे हो कल्याण के हाजी मलंग दरगाह (मलंग गढ़) का विषय हो, अमरनाथ यात्रा का विषय हो या मुंबई में 90 के दशक में हुए हिंदू-मुसलमान दंगे की बात हो, बालासाहेब ठाकरे हिंदुओं के साथ सदैव खड़े रहे। ऐसे हिंदुत्ववादी नेता स्वर्गीय बालासाहेब ठाकरे के पुत्र उद्धव ठाकरे सत्ता की लोभ में आकर बालासाहेब ठाकरे के संपूर्ण जीवन में जो उन्होंने किया नहीं है, उसके विपरीत जाकर हिंदुत्व विरोधी महाभियोग प्रस्ताव में अपना योगदान दे रहे हैं।

यह महाभियोग प्रस्ताव किसलिए? वह इसलिए कि न्यायमूर्ति स्वजातीय वकीलों को प्रोत्साहन देते हैं। न्यायालय के मामलों का फैसला एक खास राजनीतिक विचारधारा के आधार पर और संविधान के धर्मनिरपेक्ष विचारों के विरुद्ध करते हैं। संविधान से एकनिष्ठ रहने की जो शपथ ली जाती है, उसे न्यायाधीश स्वामीनाथन ने तोड़ दिया है एवं धर्मनिरपेक्षता और कानून के राज के विरुद्ध बयान दिए हैं। उन्होंने ऐसा भी कहा कि यह संविधान भारत सरकार कानून 1935 की नकल है। धर्मनिरपेक्ष आतंकवादी लॉबी के मुखपृष्ठ दि प्रिंट ने सेवानिवृत्त न्यायाधीश चंद्रू को बढ़ावा दिया है।
आखिर न्यायमूर्ति स्वामीनाथन का अपराध क्या था? किस्सा इस प्रकार है- न्यायमूर्ति स्वामीनाथ के सामने तिरुपरनकुंद्रम मंदिर का मामला आया। इस मंदिर में कार्तिक माह में एक उत्सव होता है, जिसके अंतर्गत मंदिर के बगल की पहाड़ी की चोटी पर दीप जलाने का समारोह होता है। चोटी के बगल में मुसलमानों का धार्मिक स्थल है। मुसलमानों की भावनाओं को दु:ख ना पहुंचे इसलिए स्टालिन सरकार ने अनुमति नहीं दी। हाई कोर्ट अर्थात न्यायमूर्ति स्वामीनाथन ने दीपक जलाने के समारोह को अनुमति दे दी। पुलिस ने हाई कोर्ट के आदेश का उल्लंघन किया और उसे कार्यान्वित करने से मना कर दिया। न्यायमूर्ति स्वामीनाथन ने हिंदुओं की पारंपरिक प्रथा को और अधिकारों को मान्यता दी। यह मान्यता मुस्लिम धार्मिक स्थल बगल में रहते समय दी गई। बस, यही भयानक बात हुई और इसके कारण धर्मनिरपेक्षता खतरे में आ गई।
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क्या यह बात तर्कसंगत है? हाई कोर्ट न्याय व्यवस्था का अत्यंत महत्वपूर्ण अंग है। हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का आदेश मानना संवैधानिक रूप से सभी को आवश्यक है। इस आदेश का उल्लंघन करना संवैधानिक अपराध है। ऐसा आदेश देने वाले न्यायमूर्ति के विरुद्ध महाभियोग का प्रस्ताव लाना, इसे कौन सा अपराध कहा जाए? यह पाठक ही निश्चित करें तो बेहतर है।
यदि स्वामीनाथन ने अपने भाषण में (हाई कोर्ट में नहीं) ऐसा कहा है कि भारत का संविधान 1935 के संविधान की नकल है तो वह सही नहीं है? क्यों सही नहीं है? इसका कारण है कि 1935 का कानून भारत में राज्य चलाने के लिए अंग्रेजों का संविधान था। 1935 के कानून के अनुसार भारत की सार्वभौमिकता ब्रिटिश पार्लियामेंट के पास थी। भारतीय संविधान में सार्वभौमिकता भारतीय जनता को दी गई है। सन् 1935 के कानून में जो मूलभूत अधिकार नहीं है, वे सभी भारतीय संविधान में है। सन् 1935 के कानून में सर्वोच्च न्यायालय नहीं है, वह भारतीय संविधान में है। सन् 1935 के कानून में सार्वभौमिक मताधिकार नहीं है, वह भारतीय संविधान में है। सन् 1935 के कानून में सत्ता विभाजन नहीं किया गया, वह भारतीय संविधान में है। भारतीय संविधान नागरिकों और दूसरे लोगों के बीच अंतर करता है और भारतीय नागरिकों को सुरक्षा की गारंटी देता है, जो कि सन 1935 के कानून में नहीं है। इसीलिए न्यायमूर्ति का कहना कि संविधान सन् 1935 के कानून की नकल है, ऐसा कहना योग्य नहीं है। सन 1946 के संविधान समिति की चर्चा में यह विषय आया है।

न्यायमूर्ति स्वामीनाथन का आतंकवादी धर्मनिरपेक्ष गैंग की आंखों में चुभने का एक और कारण है क्योंकि उन्होंने दीपक जलाने का आदेश दिया। इस पर धर्मनिरपेक्ष गैंग के चंद्रू कहते हैं कि वह आरएसएस के प्रचार प्रमुख की तरह व्यवहार करते हैं। स्वामीनाथन RSS के कार्यक्रम में जाते हैं और भाषण देते हैं। वह कहते हैं कि ‘वेदों की रक्षा करो, वेद तुम्हारी रक्षा करेगा’। यह सब कुछ संविधान के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांत के विरुद्ध है। यह न्यायमूर्ति चंद्रू की धर्मनिरपेक्ष खोज है।
हमारे संविधान की धारा 19 प्रत्येक व्यक्ति को बोलने की स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, संगठन बनाने की स्वतंत्रता और कार्य करने की स्वतंत्रता देती है। स्वामीनाथन पहले भारत के नागरिक हैं और बाद में न्यायमूर्ति हैं। एक नागरिक के रूप में उन्हें भाषण की स्वतंत्रता, विचारों की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। उस पर आक्षेप लेने का अधिकार चंद्रू को किसने दिया? न्यायमूर्ति चंद्रू पहले संविधान की धारा 19 का अभ्यास करें। इस धारा पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पढ़ें और उसके पश्चात अपना धर्मनिरपेक्ष मुंह खोले।
न्यायमूर्ति स्वामीनाथन ने एक भाषण में एक महत्वपूर्ण प्रश्न पर अपने विचार रखें। उनका कहना था कि यदि भारत की जनसंख्या का संतुलन बिगड़ गया तो हमारा संविधान नहीं टिकेगा। जिस समय संविधान का निर्माण किया गया। उस समय भारतीय धर्म मानने वालों की संख्या बहुत अधिक थी। यदि जनसंख्या का संतुलन बिगड़ गया तो संविधान टिकेगा नहीं, यह पत्थर की लकीर है। देश की चिंता करने वाले अनेक राष्ट्रभक्त इस खतरे का इशारा देते रहते हैं। धर्मनिरपेक्ष आतंकवादी इकोसिस्टम को यह अच्छा नहीं लगता। इसीलिए उनके एक नेता कपिल सिब्बल कहते हैं कि यदि इस तरह की मानसिकता वाले न्यायमूर्ति होंगे तो संविधान टिक नहीं सकता।
कपिल सिब्बल ने जिन इस्लामी आतंकवादियों के मामले न्यायालय में चलाए, उन आतंकवादियों के नाम इस प्रकार हैं- उमर खालिद: यह सन 2020 के दिल्ली दंगों का सूत्रधार है। दूसरा मोहम्मद जावेद: इसने उदयपुर में कन्हैयालाल नामक हिंदू की हत्या की थी। तीसरा सिद्दीकी कप्पन: जो पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया का सदस्य है। फ्रंट ने CAA विरोधी आंदोलन के लिए पैसे दिए। यह सारे मामले चलाने के लिए आतंकवादियों की ओर से सिब्बल को फीस के रूप में लाखों रुपए प्राप्त हुए हैं। ऐसे खतरनाक आतंकवादियों को बचाने के लिए ऐसे वकील जो अपनी बुद्धि गिरवी रखते हैं, उन्हें क्या कहना चाहिए? यह पाठक ही निश्चित करें। क्या ऐसे वकील को संविधान की रक्षा के बारे में बोलने का कोई नैतिक अधिकार है?
लोकसभा में महाभियोग का प्रस्ताव रखा गया। महाभियोग के संबंध में हमारे संविधान की धारा 124(4) और 124(5) की धारा के अनुसार राष्ट्रपति आदेश देकर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति को पदमुक्त कर सकते हैं, परंतु राष्ट्रपति स्वयं अपने अधिकार से यह निर्णय नहीं ले सकते। ऐसे न्यायमूर्ति को पद से हटाने के लिए लोकसभा और राज्यसभा में दो- तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पास होना जरूरी है। यह प्रस्ताव राष्ट्रपति के आदेश से लागू किया जाता है।
हमारे संविधान को 77 वर्ष हो गए हैं। इन 77 वर्षों में केवल 6 बार न्यायमूर्ति के विरोध में महाभियोग प्रस्ताव रखे गए। उसमें से एक भी प्रस्ताव सम्मत नहीं हुआ। जिन न्यायमूर्ति के बारे में यह प्रस्ताव रखे गए उनके नाम इस प्रकार हैं, वी. रामस्वामी (1993), सौमित्र सेन (2011), जे.बी. पारडीवाला (2015), एस.के. गंगेले (2015), सी.वी. नागार्जुन रेड्डी (2017), दीपक मिश्रा सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (2018)। इनमें पांच न्यायाधीश विभिन्न हाईकोर्ट से हैं और एक न्यायाधीश सर्वोच्च न्यायालय से है।
संसद में यह प्रस्ताव क्यों पारित नहीं होता? उसका एकमात्र कारण यह दिखाई देता है कि प्रस्ताव पारित होने पर विश्व को यह सन्देश जाएगा कि हमारी संवैधानिक न्यायालयीन व्यवस्था भ्रष्ट लोगों की है. अयोग्य न्यायमूर्ति संवैधानिक मार्ग से चयन किए जाते हैं, जिससे न्यायमूर्ति के साथ ही सभी व्यवस्था प्रणाली की बदनामी होती है. सौभाग्य से हमारे सांसदों को इसका भान होने के कारण वे प्रस्ताव सम्मत करने के मार्ग से नहीं जाते.
आखिरकार स्वामीनाथन के विरुद्ध महाभियोग का क्या होगा? तो वह कूड़ेदान में ही जाएगा, यह निश्चित है. यह बात सेक्युलर इको गैंग को भी मालुम है, इसके बाद भी वे महाभियोग क्यों लाए? इसमें सेक्युलर आतंकवादी इकोसिस्टम का एक उद्देश्य है. यह उद्देश्य न्याय व्यवस्था को भय (आतंक) का सन्देश देना है. इस संदेश का यथार्थ यह है कि खबरदार… आपमें से कोई भी हिंदू हितों का विचार न करें, वेद-उपनिषद के विषय में अच्छा न बोले और यदि तुमने साहस किया तो हम आप पर टूट पड़ेंगे.
इस गैंग के जानकारी हेतु बता दे कि सर्वोच्च न्यायालय के पांच न्यायमूर्ति ने ‘कोर्ट्स इन इंडिया’ नामक पुस्तक प्रकाशित किया है. इस पुस्तक के प्रथम प्रकरण वेद, उपनिषद, स्मृति-मनुस्मृति सहित इसके मौलिक विचारों से भरे हुए हैं, तो ऐसे मौलिक विचार प्रकट करनेवालों के विरुद्ध दूसरा महाभियोग प्रस्ताव कब लानेवाले हैं? हम प्रतीक्षा कर रहे हैं.

