अब्राहम लिंकन और नरेंद्र मोदी

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किसी कम्पनी से लेकर राष्ट्र तक का भविष्य इस बात पर निर्भर होता है कि उसका नेतृत्व किसके हाथ में है। भारत के वर्तमान नेतृत्व की तुलना विश्व के कई नेतृत्वों से की जा सकती है, परंतु इस आलेख में अमेरिका के 16 वें राष्ट्राध्यक्ष लिंकन तथा नरेंद्र मोदी की तुलना की गई है, क्योंकि इन दोनों की ही पारिवारिक, सामाजिक तथा राष्ट्रीय पृष्ठभूमि लगभग एक सी है।

अपनी मेहनत रंग लाती है

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भाजपा नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के विजय रथ पर सवार है, लेकिन इंडिया गठबंधन को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए। भाजपा द्वारा पिछले 9 सालों में किए गए जन हितैषी कार्यों को अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाना आवश्यक है। साथ ही, उम्मीदवार चुनते समय उसके जन सम्पर्क पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए।

महाराष्ट्र के लिए सबक

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नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता जरा भी कम नहीं हुई है। कर्नाटक जनता उन्हें देखने के लिए और सुनने के लिए बहुत ज्यादा संख्या में जमा हुई थी । यही स्थिति देशभर में है ।विरोधी पक्षों के एकजुट होने पर ,उनका नेतृत्व कौन करेगा ? उसमें कांग्रेस को कौनसा स्थान रहेगा ? क्या राहुल गांधी का नेतृत्व सारे राजनीतिक दल मान्य करेंगे? ऐसे नाजुक प्रश्न है। यह सच है कि आज तक नरेंद्र मोदी के नेतृत्व का अखिल भारतीय विकल्प नहीं है । लेकिन यह भी उतना ही सच है कि सभी राज्यों में भाजपा का समर्थ प्रादेशिक नेतृत्व है ऐसा भी नहीं है ।

एक प्रेम सज्ञानी, दूजा घमंडी अज्ञानी

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अरविंद केजरीवाल का दिल्ली विधान सभा मे 17 अप्रैल को भाषण हुआ था। उन्होंने "एक था राजा.... कहकर शुरू किया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कहानी बताई। "नरेंद्र मोदी चौथी पास हैं, वे बहुत घमंडी हैं, वे विरोध सहन नहीं कर पाते, इस महान देश के राजा को रानी नही…

सनातन और विदेशी विचारों के बीच संघर्ष

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विदेशी भूमि पर उपजे ईस्लामिक, ईसाई, मार्क्सवादी संस्कृति- सभ्यता, एवं विचारधारा में सहअस्तित्व की कल्पना नहीं है, मान्यता नहीं है। सर्वसमावेशक, विविधतापूर्ण समाज वह चाहते ही नहीं है इसलिए वे सदैव असहिष्णु रहते हैं और अपने विरोधियों से संघर्ष करते रहते हैं जबकि भारत की सनातन विचारधारा सहिष्णुता, विविधता, सर्वसमावेशकता एवं समरसता में विश्वास रखती है।

सनातन भारत से है ‘आइडिया ऑफ भारत’ वालों का संघर्ष

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“आइडिया ऑफ भारत” वालों का संघर्ष सनातन भारत से है। ऊपरी तौर पर यह संघर्ष संघ विचार धारा के विरुद्ध दिखाई देता है। संघ विचारधारा सनातन भारत की विचारधारा है। सनातन भारत याने सनातन समाज। सनातन समाज याने समय के साथ जो बदलता रहता है वह! वैदिक काल में हमारे…

सनातन और विदेशी विचारों के बीच संघर्ष

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युद्ध क्षेत्र का विचार करते समय पहले अपना मन पक्का करना होता है, कि इस युद्ध में विजय हमारी ही होगी, यह आत्मविश्वास नहीं स्वत: का बखान करना नहीं, आत्म गौरव नहीं, यह आने वाले कल की सच्ची वास्तविकता है। यह विजय क्यों होनी है, इसका उत्तर भगवान श्री कृष्ण ने भगवत गीता में दिया है। भगवान ने कहा है, यतो धर्म: ततो जय:। जहां धर्म होगा, वहीं विजय होगी।

वामपंथी वैचारिक लड़ाई का व्यापक रणक्षेत्र

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वामपंथियों ने समूचे भारतवर्ष को एक वैचारिक युद्ध क्षेत्र में बदल दिया है। वे संघ की सनातन संस्कृति को आगे ले जाने वाली नीतियों को लेकर हमेशा मुखर रहते हैं तथा उन्हें देश का लोकतंत्र खतरे में नजर आने लगता है। इन देश विरोधी प्रवृत्तियों का पोषण नेहरू और इंदिरा के राज में ही शुरू हो गया था।

“सब कुछ सत्ता के लिए”

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भारत जोड़ो यात्रा जो राहुल गांधी के नेतृत्व में केरल से निकली है वह महाराष्ट्र से निकलती हुई आगे बढ़ रही है। यात्रा जैसे-जैसे आगे बढ़ी वैसे-वैसे स्वातंत्र्यवीर सावरकर पर उन्होंने आरोप किए। वे आरोप सभी समाचार पत्रों में प्रकाशित होने के कारण उसके दो-तीन वाक्य हम यहां संदर्भ के लिए ले रहे हैं।          "  स्वातंत्र्य वीर सावरकर को अंडमान में काले पानी की सजा देने के बाद उन्होंने अंग्रेजों को माफी पत्र लिखने की शुरुआत की थी"।  देश विरोधी कृत्य करने के लिए अंग्रेजों ने सावरकर जी को साथ देने के लिए कहा और अंग्रेजों की मदद भी की"।

एक सीमोल्लंघन ऐसा भी …….

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यही बात जनसंख्या संतुलन के संबंध मे है ।अपेक्षानुसार मोहनजी का यही मुद्दा, मुस्लिम तुष्टीकरण करने वालों को बुरी तरह चुभा है  ।इन्ही तुष्टीकरण करने वालों ने ,1947 मे देश का विभाजन किया था। फिर भी वे कुछ सीखने को तैयार नही हैं।दुनिया मे जहाँ जहाँ जनसंख्या का संतुलन बिगड़ता है ,वहाँ वहाँ देश विभाजित होता है ।इसके अनेक उदाहरण मोहनजी ने ,अपने भाषण मे दिये। स्वयं का ,अपने बच्चों का, अपने नाती पोतो के,  हितों और सुरक्षा का विचार करते हुए, इन प्रश्नों के बारे मे गंभीरता से सोचने की आवश्यकता है।जो तुष्टीकरण में अंधे हो गये हैं,उन लोगों को समाज द्वारा, किसी भी तरह की शक्ति का दिया जाना मतलब अपने पेट मे स्वयम् छुरा घोंपने जैसा है ।भलेही मोहनजी ने ऐसा कुछ कहा ना हो ।मगर एक स्वयंसेवक होने के नाते मैं इसका अर्थ अच्छी तरह समझता हूँ।

शिवतीर्थ और बीकेसी का संदेश

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उद्धव ठाकरे का शिवतीर्थ का भाषण, दल के सर्वोच्च नेता ने इस प्रकार का भाषण नहीं करना चाहिए, इसका आदर्श पाठ था। दूसरों को गद्दार कहते समय वही तलवार उनके स्वत: की गर्दन पर लटक रही है यह उनके भी समझ में नहीं आ रहा है। उन्हें क्या कहना है? चुनाव शिवसेना और भाजपा ने एक साथ मिलकर लड़ा। जनता ने उन्हें सत्ता संभालने का आदेश दिया। जनता से गद्दारी कर यानी शिवसेना के शिव सैनिकों के साथ गद्दारी कर सोनिया गांधी और शरद पवार के चरणों में नत हो गए। यह गद्दारी ठाकरे परिवार भूल जाए फिर भी जनता उसे नहीं भूलेगी।

भ्रम न पालें जन अपेक्षाओं को समझें

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शिवसेना के हिंदुत्ववादी धड़े का एक हिंदुत्ववादी दल के साथ मिलकर महाराष्ट्र की सत्ता को व्यवस्थित करना अच्छा संकेत है लेकिन हिंदुत्व का सही अर्थ है, हाशिए पर खड़े अंतिम व्यक्ति तक विकास कार्यों को पहुंचाना। एकनाथ और देवेंद्र के पास ढाई वर्षों का भरपूर समय है इसलिए इसका उपयोग समाज के प्रत्येक वर्ग के समग्र विकास हेतु होना चाहिए।

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