इस सरकार के साथ यह सबसे बड़ी समस्या है कि यह कानून तो बेहतर बनाती है किंतु उसको जनता के सम्मुख ठीक से रख नहीं पाती, रखने वाला मुद्दा छोड़िए, जो कानूनों के खिलाफ शुरुआती भ्रामक प्रचार करता है उसके ख़िलाफ़ ठोस कार्यवाही तक करने में असफल रहती है। इसलिए ही टूलकिट अपने मकसद में कामयाब हैं।
सच्चाई यह है कि दशकों से अरावली की कोई एक समान, वैज्ञानिक और कानूनी परिभाषा नहीं थी।
कहीं slope आधारित व्याख्या, कहीं buffer zone आधारित, तो कहीं कुछ और। इसी भ्रम और असंगति का फायदा उठाकर legal और illegal mining धड़ल्ले से चलती रही, खासकर अरावली की ढलानों में।

इसी अराजकता को खत्म करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने स्वयं पहल की। पर्यावरण मंत्रालय, Forest Survey of India, Geological Survey of India, राज्य वन विभाग और Central Empowered Committee जैसी संस्थाओं को मिलाकर एक विशेषज्ञ समिति बनाई गई।

2025 में सुप्रीम कोर्ट ने समिति की सिफारिश स्वीकार की कि 100 मीटर से अधिक ऊँचाई वाली पहाड़ियाँ अरावली का हिस्सा मानी जाएँगी।
साथ ही अवैध खनन पर सख़्त रोक लगाई है। अरावली के दोनों ओर 500 मीटर का Green Belt और Buffer Zone ,मौजूदा वैध खदानों का कड़ा रेगुलेशन अरावली का दीर्घकालिक संरक्षण का निर्देश दिया गया है।
यानी यह गाइडलाइन अरावली को बचाने के लिए है, काटने के लिए नहीं।
फिर हंगामा क्यों?
क्योंकि कांग्रेसी इकोसिस्टम को संरक्षण से नहीं, भ्रम से मतलब है। जिस सुप्रीम कोर्ट की शरण में ये हर दूसरे दिन जाते हैं, उसी की पर्यावरण-संरक्षण कार्रवाई को अब “एक और काला कानून” बताया जा रहा है।
अरावली के नाम पर डर फैलाया जा रहा है, जबकि हकीकत यह है कि अब पहली बार उसकी स्पष्ट पहचान और वास्तविक सुरक्षा सुनिश्चित की जा रही है।
देश को समझना होगा— ये आंदोलन पर्यावरण, किसान या गरीब के लिए नहीं हैं। ये राजनीतिक अस्तित्व बचाने की आख़िरी कोशिशें हैं।
लोग यह प्रचार कर रहे हैं कि
SC ने केवल 100 मीटर से ऊपर की पहाड़ियों को ही अरावली माना है
इसलिए 100 मीटर से नीचे की सारी भूमि mining, construction और destruction के लिए खोल दी गई है यह दावा सरासर झूठ है।
सुप्रीम कोर्ट ने वास्तव में क्या कहा है?
100 मीटर की सीमा “न्यूनतम पहचान (minimum identification)” है, छूट नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 100 मीटर से ऊपर की पहाड़ियाँ अनिवार्य रूप से अरावली का हिस्सा मानी जाएँगी।
इसका अर्थ यह है कि
इससे ऊपर की पहाड़ियों पर कोई विवाद नहीं रहेगा।
राज्यों को इन्हें अरावली मानना ही होगा। 100 मीटर से नीचे की पहाड़ियाँ भी संरक्षण में रहेंगी।
SC की गाइडलाइन स्पष्ट करती है:
100 मीटर से कम ऊँचाई वाले क्षेत्र:
अगर वे भूवैज्ञानिक, पारिस्थितिक या ऐतिहासिक रूप से अरावली का हिस्सा हैं, तो वे भी संरक्षित रहेंगे।
यानी, Height अकेला मापदंड नहीं है, Geology + Ecology + Contiguity भी आधार हैं।
Mining प्रतिबंध सिर्फ ऊँचाई नहीं, प्रकृति पर आधारित है। जहाँ भी: वन क्षेत्र पहाड़ी संरचना,recharge zone,
wildlife corridor, fragile ecosystem मौजूद है वहाँ mining अवैध मानी जाएगी, चाहे ऊँचाई 50 मीटर हो या 150 मीटर हो।
अरावली के दोनों ओर 500 मीटर का Green Belt Buffer Zone अनिवार्य किया गया है।

इसका सीधा अर्थ है, पहाड़ियों के आसपास कोई उखाड़-पछाड़ नहीं की जा सकेगी, निर्माण और खनन पर कड़ा नियंत्रण रहेगा, अगर 100 मीटर से नीचे सब “खुला” होता, तो buffer zone की ज़रूरत ही नहीं पड़ती। Illegal mining पर ZERO tolerance है।
States को illegal mining की पहचान, तुरंत बंदी दोषियों पर कार्रवाई अनिवार्य रूप से करनी होगी। पहले जहाँ भ्रम का फायदा उठाकर illegal mining चलती थी, अब एक समान परिभाषा से loopholes बंद किए गए हैं।
100 मीटर का नियम destruction के लिए नहीं, protection के लिए है।
यह गाइडलाइन:
mining mafia के खिलाफ है, ecological balance के पक्ष में है, groundwater और NCR की हवा बचाने के लिए है, इसलिए वही लोग हंगामा कर रहे हैं जिनकी illegal mining बंद होगी जिनकी राजनीतिक दुकान आंदोलन से चलती है
– संजय अग्रवाल

