25 दिसंबर का दिन भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती के रूप में पूरे देश में श्रद्धा और सम्मान के साथ मनाया जाता है। यही कारण है कि इस दिन को ‘सुशासन दिवस’ के रूप में भी मान्यता प्राप्त है। अटल बिहारी वाजपेयी केवल एक प्रधानमंत्री या राजनेता नहीं थे, बल्कि वे भारतीय लोकतंत्र की उस उदार और संतुलित परंपरा के प्रतिनिधि थे, जहाँ सत्ता के साथ संवेदना, राष्ट्रवाद के साथ संवाद और विचारधारा के साथ लोकतांत्रिक मर्यादा का समन्वय दिखाई देता है। आज, जब भारत विकसित भारत @2047 के लक्ष्य की ओर आगे बढ़ रहा है,
अटल जी की वैचारिक विरासत पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक प्रतीत होती है।
25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर में जन्मे अटल बिहारी वाजपेयी का जीवन साधारण परिस्थितियों से निकलकर असाधारण राष्ट्रसेवा तक पहुँचा। स्वतंत्रता आंदोलन से प्रेरणा लेकर वे जनसंघ के संस्थापक नेताओं में शामिल हुए और बाद में भारतीय जनता पार्टी को राष्ट्रीय राजनीति में स्थापित करने में निर्णायक भूमिका निभाई। वे तीन बार देश के प्रधानमंत्री बने— 1996 में अल्पकालिक सरकार, 1998–99 में 13 महीनों का कार्यकाल और 1999 से 2004 तक पूर्ण बहुमत वाली सरकार के मुखिया के रूप में। जवाहरलाल नेहरू के बाद वे पहले गैर-कांग्रेसी नेता थे, जिन्होंने लगातार दो लोकसभा चुनावों में विजय प्राप्त कर सरकार का नेतृत्व किया।
अटल जी की राजनीति की सबसे बड़ी विशेषता थी— विचारों की दृढ़ता के साथ संवाद की शालीनता। संसद में उनके भाषण आज भी लोकतांत्रिक विमर्श और राजनीतिक मर्यादा के मानक माने जाते हैं। वे असहमति को लोकतंत्र की कमजोरी नहीं, बल्कि उसकी शक्ति मानते थे। वैचारिक विरोध के बावजूद व्यक्तिगत कटुता से वे सदैव दूर रहे। पंडित नेहरू की नीतियों की आलोचना करते हुए भी उन्होंने उनकी लोकतांत्रिक सोच और अंतरराष्ट्रीय दृष्टि की सराहना की। यही कारण था कि अटल जी को दलगत राजनीति से ऊपर उठकर व्यापक सम्मान प्राप्त हुआ।
प्रधानमंत्री के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी ने ऐसे साहसिक निर्णय लिए, जिन्होंने भारत को वैश्विक मंच पर नई पहचान दिलाई। 1998 में पोखरण-II परमाणु परीक्षण भारत की सामरिक आत्मनिर्भरता और संप्रभुता का स्पष्ट संदेश था। अंतरराष्ट्रीय दबावों और प्रतिबंधों के बावजूद यह निर्णय भारत के राष्ट्रीय हितों के प्रति अटल प्रतिबद्धता का प्रतीक बना। अटल जी ने स्पष्ट कर दिया कि राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रश्न पर कोई समझौता संभव नहीं है।
इसके साथ ही अटल बिहारी वाजपेयी शांति और संवाद के भी प्रबल पक्षधर थे।
1999 की ऐतिहासिक लाहौर बस यात्रा इस सोच की प्रतीक रही। पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से संवाद की पहल करते हुए उनका यह कथन— “हम दोस्त बदल सकते हैं, पड़ोसी नहीं” — आज भी कूटनीतिक विवेक और परिपक्वता का उदाहरण है। कारगिल युद्ध ने इस पहल को चुनौती दी, लेकिन अटल जी ने यह सिद्ध किया कि शांति की आकांक्षा कमजोरी नहीं, बल्कि आत्मविश्वास और राष्ट्रीय शक्ति से उपजी होती है।

विकास के क्षेत्र में अटल जी की दृष्टि दूरगामी थी। स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना और राष्ट्रीय राजमार्ग विकास कार्यक्रम ने भारत के बुनियादी ढांचे की तस्वीर बदल दी। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई को जोड़ने वाला 5,846 किलोमीटर लंबा यह सड़क नेटवर्क केवल आवागमन का साधन नहीं था, बल्कि आर्थिक एकीकरण, क्षेत्रीय संतुलन और ग्रामीण-शहरी संपर्क का सशक्त आधार बना। सूचना प्रौद्योगिकी, निजीकरण और आर्थिक सुधारों को गति देकर अटल जी ने भारत को 21वीं सदी की वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए तैयार किया।
अटल बिहारी वाजपेयी केवल राजनेता ही नहीं, बल्कि एक संवेदनशील कवि भी थे। उनकी कविताओं में राष्ट्रप्रेम, संघर्ष और आशा का गहरा भाव मिलता है—
“हार नहीं मानूँगा,
रार नहीं ठानूँगा,
काल के कपाल पर
लिखता-मिटाता हूँ,
गीत नया गाता हूँ।”
उनकी कविता और राजनीति— दोनों का मूल संदेश था— निराशा के बीच भी संकल्प और निरंतर आगे बढ़ने का साहस।
आज, जब भारत विकसित भारत @2047 के संकल्प के साथ आगे बढ़ रहा है, तब यह समझना आवश्यक है कि यह लक्ष्य केवल आर्थिक उपलब्धियों तक सीमित नहीं है। इसके केंद्र में वही विचार है, जिसे अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने नेतृत्व में स्थापित किया— सुशासन, मजबूत बुनियादी ढांचा, आत्मनिर्भरता, तकनीकी प्रगति और सामाजिक समरसता। उनका मानना था कि विकास तभी सार्थक होगा, जब वह अंतिम व्यक्ति तक पहुँचे और लोकतांत्रिक मूल्यों से जुड़ा हो।
विकसित भारत @2047 का सपना तभी साकार हो सकता है, जब आर्थिक प्रगति के साथ संवाद, सहमति और संवैधानिक मर्यादा को भी समान महत्व दिया जाए। अटल बिहारी वाजपेयी की राजनीति हमें यह सिखाती है कि सशक्त राष्ट्रवाद और समावेशी लोकतंत्र एक-दूसरे के विरोधी नहीं, बल्कि एक-दूसरे के पूरक हैं।
सुशासन दिवस पर अटल बिहारी वाजपेयी को स्मरण करते हुए यह संकल्प लेना आवश्यक है कि हम उनके आदर्शों—विचारों की दृढ़ता, भाषा की मर्यादा और राष्ट्रहित की सर्वोच्चता को आगे बढ़ाएँ। अटल जी केवल भारत रत्न नहीं, बल्कि भारतीय लोकतंत्र की नैतिक चेतना के प्रतीक हैं। उनकी विरासत हमें न केवल अतीत की स्मृति कराती है, बल्कि विकसित भारत @2047 की दिशा भी स्पष्ट करती है।
— डॉ. संतोष झा


बहुत सुंदर आलेख। सारगर्भित तथ्य और विश्लेषण।
धन्यवाद 🙏
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