नेतृत्वहीन महागठबंधन का ढोल जनता बजाएगी

2014 के बाद देश के राजनीतिक मंच पर मोदी लहर आई थी, जिसमें भाजपा विरोधियों का गठबंधन लगभग बह गया था। विरोधियों ने नरेंद्र मोदी के खिलाफ पूरी ताकत लगाई थी। संसद भवन से लेकर नुक्कड़ सभाओं तक यह परिलक्षित हो रहा था। लेकिन, 2019 के चुनाव का माहौल जैसे-जैसे गरमाने लगा है, वैसे-वैसे विरोधियों की महागठबंधन की उम्मीदें जाग रही हैं।

विरोधियों का महागठबंधन भाजपा के लिए तो कतई चुनौती नहीं हो सकता। इसलिए कि महागठबंधन में ही अंतर्विरोध की लड़ाई चल रही है। बसपा जैसी पार्टी के लिए अपने अस्तित्व की लड़ाई ही  महागठबंधन में अंतर्विरोध का बड़ा कारण है। छत्तीसगढ़ ,राजस्थान, मध्य प्रदेश विधान सभा चुनावों में बसपा ने ऐलान किया कि कांग्रेस के साथ कोई भी समझौता नहीं करेंगे। मायावती का हाथी इस गर्जना के साथ चिंघाड़ा और महागठबंधन धराशायी हो गया। कौन क्षेत्रीय दल किसके साथ रहना पसंद करता है और किसको कितनी कामयाबी मिलती है, इन पर 2019 के चुनाव की कहानी लिखी जाएगी।

भाजपा आज दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी है ।19 राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं। कई विधायक और 330 सांसद हैं। नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में देश के 70% हिस्से पर भाजपा का शासन है। ऐसे माहौल में आज कांग्रेस सिमट रही है अब उसे सूक्ष्मदर्शी से खोजने की नौबत आने वाली है। कभी लोकसभा में कांग्रेस की सदस्य संख्या 440 थी, वह आज 44 सदस्यों में सिमट गई है। कांग्रेस अपनी पराजय को छुपाने के लिए ईवीएन मशीन पर दोष मढ़ती है। कांग्रेस को जनता ने क्यों नकारा इस पर वास्तव में कांग्रेस को आत्मचिंतन करना चाहिए। फिर भी आज भी कांग्रेस इस मुगालते में है कि देश की सत्ता की बागड़ौर पर उसी का अधिकार है। कोई चाय बेचने वाला भारत का प्रधानमंत्री कैसे बन सकता है।

कांग्रेस की हालत इतनी पतली है कि महागठबंधन के लिए उनके कभी साथी रहे दल तक उसे नकार रहे हैं। वे तो कांग्रेस को मुख्य धारा से ही हटाने में लगे हुए हैं। कांग्रेस को देश में तो कोई पूछ नहीं रहा, विदेश में बैठ कर दांव लगा रही है। अब विदेश में तय होगा कि देश का प्रधानमंत्री कौन  होगा! पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा कि, “राहुल गांधी ही भारत के प्रधानमंत्री बनने चाहिए।” इससे पता चलता है कि देश के बाहर कांग्रेस किस तरह का खेल कर रही है।

आज देश में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की ऐसी सरकार है, जो  समन्वय पर विश्वास करती हैं। ’सबका साथ सबका विकास’  यह केवल नारा नहीं है; भारत के उज्ज्वल भविष्य का मार्ग है। सन 2022 में भारत अपनी स्वतंत्रता का 75वां साल पूर्ण कर रहा है। तब ऐसा नया भारत होगा जो एकजुट, मजबूत, समृद्ध और आत्मविश्वास से परिपूर्ण होगा। नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में भारत ऐसे विश्वास की ओर निरंतर बढ़ रहा है।

नरेंद्र मोदी सरकार ने भारत और भारतीय दोनों को समृद्ध बनाया है। एक समय था, जब भारत एक गरीब देश माना जाता था। आज नरेंद्र मोदी के कुशल नेतृत्व में 4 वर्षों में भारतीय गरीबों के जीवन स्तर में व्यापक सुधार आ रहा है। भ्रष्टाचार, जो पहले भारत में व्यवहार का सहज हिस्सा बना गया था, अब सार्वजनिक जीवन से  गायब सा हो गया है।

केवल 4 वर्षों में ही भारत एक एकीकृत और मजबूत राष्ट्र के रूप में उभरा है। 4 वर्षों में दंगामुक्त भारत एक रिकॉर्ड है। देश के अलग-अलग 160 जिलों में फैला हुआ माओवाद सिमट कर 20  जिलों तक रह चुका है। शहरी माओवाद को भी बड़ी सख्ती से रोका जा रहा है। आंतरिक सुरक्षा में काफी सुधार हुआ है। नक्सलवादी तो मोदी की हत्या करने की साजिश कर रहे हैं और सभी विपक्षी देश के खिलाफ काम करने वाले नकसलवादी लोगों के साथ खड़े हैं। पूर्वोत्तर  के 8 राज्यों में शांति बनाने की राह प्रगति कर रही है। जिस दृढ़ता के साथ देश की सुरक्षा और समृद्धि की दिशा में नरेंद्र मोदी सरकार कड़े कदम उठा रही है उसके विरोध में विपक्ष वोट बैंक की राजनीति कर रहा है। देश की जनता इस पूरे घटनाक्रम को देख रही है।

एक तरफ देश की जनता ने भारतीय जनता पार्टी को देश की सेवा करने का अधिकार दिया है, वहीं दूसरी ओर विपक्ष शांति भंग करने और झूठ फैलाने का विकृत प्रयास कर रहा है। ऐसी स्थिति में महागठबंधन एक ढकोसला है। 2014 में भी सभी दल भाजपा के खिलाफ चुनाव में खड़े थे और हारे थे। 2019 में 2014 से भी बड़ी हार विपक्ष को मिलने वाली है; क्योंकि कांग्रेस और उनके साथी शासन ठीक से चला नहीं पाए और अब तो विपक्ष भूमिका अदा करने में भी विफल रहे। क्षेत्रीय दल भी जानते हैं कि मोदी के विरोध में लड़ना है तो विरोधियों को एकसाथ आना होगा। सभी क्षेत्री दल भाजपा को रोकना चाहते हैं, परंतु कांग्रेस को भी बड़ा नहीं होने देना चाहते। आखिर में महागठबंधन में एक दूसरे की टांग तो खींचना ही है।

विरोधी चुनाव में महागठबंधन बना कर आए या अकेले कूदे पर देश की जनता को कम से कम इतना तो बताए कि कांग्रेस किस आधार पर देश की जनता से वोट मांगना चाहती है। विपक्ष के पास न विचार का आधार है और न कामकाज का आधार है। एक तरफ 48 महीने की मोदी सरकार की उपलब्धियां हैं और दूसरी तरफ देश पर एक ही परिवार का 48 साल का शासन है। जिस प्रकार से हर स्तर पर देश को दुर्गति की कगार पर कांग्रेस ने ला रखा था, जिसे देश की जनता जानती है। इसी कारण 2014 के बाद देश में हुए हर चुनाव में जनता ने भारतीय जनता पार्टी को ऐतिहासिक विजय दे दिलाई है। जनता  दृढ़ निश्चय के साथ अपने उज्ज्वल भविष्य की ओर अपनी नजरें लगाए हुए हैं। महागठबंधन में नेतृत्व का अब तक कोई ठिकाना नहीं है। उनकी नीति स्पष्ट नहीं है। विकास की ठोस योजना के बिना केवल और केवल मोदी विरोध का एक ही मुद्दा लेकर इकट्ठा आने वाले महागठबंधन का ढोल देश की जनता जरूर ही बजाएगी।

 

 

This Post Has 2 Comments

  1. Saroj dilip upadhyay

    Sare gadde ek sath

  2. अमोल पेडणेकर

    हिंदी विवेक मासिक पत्रिका का संपादकीय पढ़े और शेअर करे।

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