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 कहीं आप भी तो नहीं दे रहे तोतलेपन को बढ़ावा

 कहीं आप भी तो नहीं दे रहे तोतलेपन को बढ़ावा

by रचना प्रियदर्शिनी
in स्वास्थ्य
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12 वर्षीय दिलीप को तुतलाकर बोलने की आदत है. बातचीत करने के दौरान तुतलाने और हकलाने की वजह से अक्सर लोग उसकी हंसी उड़ाते हैं. इस वजह से वह अपनी बात कहने से झिझकने लगा है. अपने में ही सीमित रहता है. लोगों के बीच जाने से कतराता है. उसके आत्मविश्वास में भी कमी आ गयी है. जब वह छोटा था, तो सब उसकी तोतली जुबान सुन कर खुश होते थे. खुद भी उसके साथ तुतलाकर बाते करते थे, पर अब वही लोग उसके द्वारा तुतलाने पर उसका मजाक उड़ाते हैं. इससे वह हमेशा खिन्न महसूस करता है.

जानें क्या है तोतलापन (Lisping)

ज्यादातर बच्चे छुटपन में तुतलाते हैं. बड़े होने पर उनका उच्चारण सही होने लगता है, लेकिन कुछ बच्चों में बड़े होने पर भी यह तोतलापन बना रहता है, जो उनके विकास में बाधक बनता है.

आमतौर पर तुतलाने का अर्थ होता है- साफ एवं स्पष्ट उच्चारण कर पाने की अक्षमता. तोतलापन एक कार्यकारी वाक व्याधि  (functional speech disorder- FSD)है. इस समस्या से ग्रस्त बच्चे किसी शब्द/वाक्य को बोलते समय व्यंजनों का स्पष्ट उच्चारण नहीं कर पाते.

: शब्दों का स्पष्ट उच्चारण न कर पाना, आवाज साफ न होना, जैसे- स को ‘छ’ उच्चारित करना; र को ‘ल’ बोलना; ख को ‘थ’ बोलना आदि.

उदाहरण के तौर पर, ”आज हम सब साथ में बैठ कर खायेंगे.” को तोतली भाषा में बच्चा बोलेगा ”आज हम छब छाथ में बैठ कल थायेंगे.”

तोतलेपन का कारण :

तोतलापन शारीरिक दोष से कहीं अधिक एक मानसिक दोष है, जिसका विकास कई बार अभिभावकों की अज्ञानता की वजह से होता है. बचपन में बच्चों के तुतलाने पर अभिभावकों द्वारा विशेष ध्यान न दिये जाने पर वह हमेशा तोतला बोलने लगता है. बाल्यकाल में इस ओर विशेष ध्यान न दिया जाये, तो यह दोष जीवन भर का हो सकता है. कुछ बच्चे या व्यक्ति जीभ मोटी होने के कारण तुतलाते हैं.

बोलने में काम आनेवाली पेशियों के स्नायुओं का नियंत्रण दोषपूर्ण होने से भी कोई शब्द बोलने में रुकावट आती है.

बड़ों का होता अनजाना सहयोग :

छोटे बच्चों की तोतली जुबान किसे अच्छी नहीं लगती, लेकिन एक उम्र के बाद यही तुतलाहट खलने लगती है. माता-पिता के लिए जहां बच्चे की तुतलाहट तनाव और परेशानी की वजह बन जाती है, वही बच्चे के लिए शर्मिंदगी और आत्मविश्वास में कमी का कारण होती है. लेकिन क्या आपने कभी गौर किया है कि बच्चों की तोतली जुबान को बढ़ावा देने में हम बड़े भी कुछ कम योगदान नहीं देते.

जब ढाई-तीन साल के बच्चे के मुंह से हम तुतलाहट भरी आवाज में कुछ सुनते हैं, तो बड़ा प्यारा लगता है. उसके साथ-साथ हम भी उसकी नकल में तोतली भाषा में उससे बात करते हैं. बस यही से मिलता है उसके तोतलेपन को अप्रत्यक्ष समर्थन. जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है, तो उसके बातचीत के साथ-साथ उसका सामाजिक दायरा भी बढ़ता है. अब लोग उसके तोतलेपन को सहजता से स्वीकार नहीं कर पाते. उसे स्पष्ट उच्चारण करने की ताकीद दी जाने लगती है. ऐसे में बच्चा असमंजस में पड़ जाता है कि अब तक जो लोग उसके तोतली जुबान को सुन कर हंसते थे, अब वही खीजने क्यूं लगे हैं. इसके अलावा, जब वह अपने आसपास मौजूद हमउम्र बच्चों को सही और स्पष्ट उच्चारण के साथ बोलते हुए देखता है, तो उसे आत्मग्लानि की अनुभूति होती है. वह खुद को हीन और कमजोर समझने लगता है, लेकिन इसमें भला बच्चे का क्या दोष ! उसने तो जब से बोलना शुरू किया, तब से यही उच्चारण सुनता आया है. सही उच्चारण बताएँ जाने के अभाव में उसने वही सीखा, जो वह बोल रहा है और एक उम्र के साथ वह उनकी आदत में शामिल हो गया.

कैसे करें सुधार

जब बच्चा बोलना शुरू करता है, तब हमें हमेशा उसके साथ सामान्य उच्चारण में बात करनी चाहिए. अगर वह किसी अक्षर/ शब्द को तुतला कर बोलता है, तो उस पर हंसने के बजाय उसे उन्हें सुधार कर सही अक्षर/शब्द बोलने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए.

आमतौर पर बच्चा तीन-साढ़े तीन साल की उम्र तक ही तुतलाते हैं. धीरे-धीरे खुद ही उनकी जुबान स्ष्ट हो जाती है. चिंता की बात तब है, जब पांच-छह साल का होने पर भी वह तुतलाकर बोले. तब हमें सर्तक होने की जरूरत है, क्योंकि यह सामान्य नहीं है. ऐसी स्थिति में बच्चे को किसी पैथोलॉजिस्ट या स्पिच थेरेपिस्ट के पास लेकर जायें और पूरी जांच करवाएं.

इसके अलावा बच्चों के साथ बातचीत करते समय संयम बरतें.  बीच में उन्हें न टोके. एक बार में शब्दों के सही उच्चारण सिखाने के बजाय बच्चे को अलग – अलग व्यंजनों का उच्चारण करना और उसकी आवाज पहचानना सिखाएं.

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