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शस्त्र निर्माण में आत्मनिर्भरता की पहल

शस्त्र निर्माण में आत्मनिर्भरता की पहल

by अमोल पेडणेकर
in फरवरी-२०१५, सामाजिक
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भारत पिछले ६८ वर्षों में आधुनिक हथियारों का खरीदार ही बना रहा। नई सरकार ने दृढ़ता का परिचय देते हुए शस्त्र निर्यातक बनने का बीड़ा उठाया है। देश में संसाधनों की कमी नहीं है, राजनीतिक साहस की जो कमी आधी सदी में रही उस कमी को अब मोदी सरकार ने पूरा कर दिया है। रक्षा क्षेत्र अब नई दिशा की ओर उन्मुख है।
भारत में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार आने के बाद से भारत की सुरक्षा तैयारी बढ़ाने पर सही मायने में गंभीरता से विचार होता दिखाई दे रहा है। ‘भारत शस्त्र खरीदनेवाला नहीं बल्कि दुनिया को शस्त्र बेचनेवाला देश बने’ भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा देश की जनता के सामने रखा गया यह विचार और उस दिशा में किए गए प्रयत्न निश्चित रूप से स्वागत योग्य हैं।
भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान, चीन और बांग्लादेश भारत पर आघात करने के लिए तैयार बैठे हैं। ‘हिंदी-चीनी भाई-भाई’ कहते हुए चीन ने भारतीयों के हृदय पर तीव्र घाव किए हैं। अभी भी चीन की ओर से भारतीय सीमा में होनेवाली घुसपैठ चिंता का सबब है। विस्तारवादी चीन की ओर से भारत को हमेशा खतरा रहेगा ही। जिस बांग्लादेश का निर्माण भारत की सहायता से हुआ है वही बांग्लादेश सन १९७१ के उपकारों को भूल कर अब भारत में जहर घोल रहा है। प्रत्यक्ष युद्ध करने की क्षमता न रखनेवाले इस देश ने अप्रत्यक्ष रूप से भारत की नाक में दम कर रखा है। बांग्लादेशी नागरिक पहले असम में और फिर भारत के अन्य राज्यों में घुसकर, वहां स्थायी होकर घातक कार्रवाइयों को अंजाम दे रहे हैं। भारत ने कई बार पाकिस्तान को युद्ध में धूल चटाई है। उसकी रस्सी जल गयी फिर भी बल नहीं गया। पाकिस्तान की ओर से सतत युद्ध विराम का उल्लंघन होता रहता है। सीमा पार से गोलियां दागने और भारत की सीमा में आतंकवादी कार्रवाइयों को अंजाम देने के प्रयास पाकिस्तान की ओर से लगातार होते रहते हैं। इससे हमारी आंतरिक और बाह्य सुरक्षा के लिए हमेशा ही खतरा बना रहता है। ऐसे समय में जब भारत विश्व स्तर पर महासत्ता बनने के स्वप्न देख रहा है तब अगर पड़ोसी राष्ट्रों की ओर से इतने बड़े पैमाने पर खतरा है तो अत्यंत सावधान और अपनी सुरक्षा के लिए सज्जित रहने की आवश्यकता है।
भारत को स्वतंत्र हुए ६८ साल पूरे हो चुके हैं। इतने सालों में भारत की पहचान बड़े पैमाने पर शस्त्र खरीदनेवाले राष्ट्र के रूप में बनी है। रक्षा मंत्रालय की ओर से किए जाने वाले रक्षा सौदे भारतीयों के मन में सदैव ही प्रश्नचिह्न निर्माण करते हैं। हमारे विमान चालक मिग विमान गिरने के कारण अपनी जान खो देते हैं। कुछ समय पूर्व पनडुब्बियों के डूबने के कारण भी कुछ नौसैनिकों को अपनी जान से हाथ धोने पडे थे। हर्क्यूलिस हेलिकाप्टर भी गिरते हैं। इन सभी के पीछे एक ही कारण है और वह है रक्षा मंत्रालय की अनदेखी।
आतंकवादियों का सीमा पार से आना, भारत के किसी भी शहर में आतंकवादी कर्रवाइयों को अंजाम देना और भारत के सामान्य नागरिकों की बलि चढना इन सब को रोकने के लिए भारतीय सैनिकों के पास अत्याधुनिक शस्त्र होने आवश्यक हैं। वीर जवान राष्ट्र की असली संपत्ति भी हैं और एक मजबूत पक्ष भी हैं। अगर रक्षा मंत्रालय इन्हें अत्याधुनिक शस्त्रों से लैस करता है तो उनका मनोबल भी ब़ढ़ेगा और वे अधिक हिम्मत के साथ शत्रुओं से लड़ सकेंगे।
शस्त्रों की खरीदारी करने में भारत अव्वल है। दूसरे और तीसरे क्रमांक पर क्रमश: चीन और पाकिस्तान है। इसके पहले चीन का क्रमांक पहला था। फिर चीन ने अपनी शस्त्रनीति में बदलाव किया। आवश्यक शस्त्रों का निर्माण करने की तकनीक उसने अपने ही देश में विकसित की और स्वयं ही अत्याधुनिक शस्त्र निर्माण करना शुरू किया। चीन विदेश की अत्याधुनिक तकनीक अपने देश में ले आया। अब वह कम कीमत पर दूसरे देशों को शस्त्र बेच रहा है। अब चीन शस्त्र बेचनेवाला दुनिया का पांचवां देश बन गया है। उसने हेलिकॉप्टर, विभिन्न मिसाइलें, विमान आदि का निर्माण शुरू कर फायदा करवानेवाले साधनों के रूप में विकसित किया। सूडान, ईरान, उत्तर कोरिया, सीरिया और अन्य देशों को उसने शस्त्र बेचे। चीन ने ऐसे शस्त्र बनाने पर जोर दिया है जिनकी कीमत अन्य से कम हो। अत: अंतरराष्ट्रीय बाजार में गरीब देशों के लिए ये शस्त्र वरदान साबित हुए हैं। कम कीमत के कारण मध्य और दक्षिण एशिया के देशों ने अपना रुख चीन की ओर मोड़ लिया है।
भारत की शस्त्रसज्जता की ओर ध्यान दें तो प्रमुख बात यह ध्यान में आती है कि हम आज भी दूसरे देशों पर ही निर्भर है। भारत में प्रतिभाओं की कमी नहीं है फिर भी हम आविष्कारों के क्षेत्र में पिछड़े बने हैं। देश में ही अगर लड़ाकू विमानों और हेलिकॉप्टर का निर्माण शुरू किया गया तो भारतीय सेना अधिक शक्तिशाली हो सकेगी। शस्त्रों के मामले में अन्य देशों के हाथ की कठपुतली बनना भारत के लिए आर्थिक या अन्य किसी भी दृष्टि से उपयुक्त नहीं है। इस निर्भरता को जल्द से जल्द दूर करना आवश्यक है। अभी भारत शस्त्र आयात करनेवाला सब से बड़ा देश है। अब अपनी क्षमता बढ़ाना और रक्षा सामग्री का विकास करना महत्वपूर्ण है। रक्षा सामग्री का उत्पादन करने के लिए आवश्यक तकनीकी ज्ञान का विकास करके परावलंबन को खत्म करना होगा।
भारतीय वैज्ञानिक विदेशों में जाकर अपनी कुशलता साबित कर रहे हैं। अमेरिका की प्रयोगशाला में, मायक्रोसॉफ्ट में काम करनेवाले वैज्ञनिकों में से ३० प्रतिशत भारतीय हैं। विदेशों में तकनीकों को विकसित करने के लिए वे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हम अभी भी उनका महत्व नहीं समझ पाए हैं। स्वतंत्रता के बाद के ६८ सालों में ७० प्रतिशत महत्वपूर्ण शस्त्र हम विदेशों से खरीदते हैं। इतने सालों में हम कुछ भी निर्माण नहीं कर पाए यह कोई गौरव की बात नहीं है। १०० प्रतिशत अत्याधुनिक शस्त्र आयात किए जाते हैं। सभी प्रकार के हवाई जहाज, युद्ध पोत, बडी नौकाएं, पनडुब्बियां इत्यादि सभी आयात किया जाता है।
भविष्य में अगर युद्ध हुआ और कारगिल जैसे अत्याधुनिक शस्त्रों की आवश्यकता महसूस हुई तो फिर विदेशी कंपनियां हमें धोखा दे सकती हैं। अत: अब आराम से बैठकर काम नहीं चलेगा। भारत में ही अत्याधुनिक शस्त्रों का निर्माण करना आवश्यक है। हम कई वर्षों से रूस से शस्त्र खरीद रहे हैं। तब रूस हमें खरीद पर छूट देता था परंतु अब रूस का विघटन होने के बाद से उसने हमें छूट देना बंद कर दिया है। पहले वे उनकी मुद्रा अर्थात रूबल मेंे शस्त्रों की कीमत निर्धारित करते थे, परंतु अब वे इसके लिए डॉलर का प्रयोग करते हैं। अत: भारत को यह बहुत महंगा पड़ता है। इसके अलावा एक और बात यह है कि रूस की तकनीक अन्य देशों की तुलना में बहुत पीछे है। अत: हमें अपनी अत्याधुनिक तकनीक विकसित करके स्वयं शस्त्रों का निर्माण करना चाहिए।
आज भारत छोटे लड़ाकू विमानों और हेलिकॉप्टर निर्माण के क्षेत्र में कदम बढ़ा चुका है। कुछ हद तक हमें इसमें सफलता भी मिली है। भविष्य में इससे भी अधिक क्षमतावाले तथा अत्याधुनिक उपकरणों से परिपूर्ण फाइटर प्लेन बनाने की दिशा में भारत निरंतर संशोधन कर रहा है। साथ ही तोप, मिसाइलें और टैंकों के निर्माण का भी प्रयत्न किया जा रहा है। फिर भी चीन से युद्ध करने के लिए लंबी दूरी तय करनी होगी। हमारे यहां ५ से ६ हजार किमी तक वार कर सकनेवाली पृथ्वी और आकाश मिसाइलें हैं। इन सभी को दुगुना करने की आवश्यकता है। महासत्ता बनने के भारत के स्वप्न की ओर मोदी सरकार सकारात्मक दृष्टि से कदम बढ़ा रही है।
मोदी सरकार ने अपनी पहली रिपोर्ट में ही पिछले साल के रक्षा बजट में १२ प्रतिशत की वृद्धि घोषित कर यह सूचना दे दी है कि यह सरकार संरक्षण सज्जता बढ़ाने वाली है। इस कदम से तीनों सेना दलों में स्फूर्ति का संचार हुआ है। ‘भारत शस्त्र निर्माण करनेवाला देश बनना चाहिए’ इस वक्तव्य के एक भाग के रूप में भारत में ही छ: पनडुब्बियों को बनाने के निर्णय लिया गया है। साथ ही नौसेना के लिए डॉर्नियर श्रेणी के १२ विमानों का निर्माण किया जा रहा है। स्वदेश में बने इन सभी शस्त्रों को ढोनेवाले वाहन भी भारत में ही बनेंगे। भारत-चीन की सीमा में रेल्वे की पटरी बिछाने का अभी तक का सबसे महत्वपूर्ण निर्णय भी मोदी सरकार ने लिया है। मोदी सरकार ने आनेवाले पांच सालों में भारत को रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने का भी निर्णय लिया है।
भारत जैसे देश को, जहां गरीबों की संख्या अत्यधिक है, रक्षा क्षेत्र में अपनी न्यूनतम आवश्यकताओं पर ही संतोष करना पड़ता है। रक्षा क्षेत्र ऐसा क्षेत्र नहीं है जिसे अनदेखा किया जाए। अगर आवश्यकता हुई तो आधे पेट रहकर भी इस क्षेत्र के लिए खर्च करना ही पड़ेगा। अत: प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश में ही तैयार होनेवाली रक्षा सामग्री को अन्य देशों को बेचने की योजना बनायी है। भारत में तैयार होनेवाली रक्षा सामग्री छोेटे देशों को उनकी क्रय क्षमता के अनुसार बेची जा सकती है। उससे मिलनेवाले पैसों का भारत के लिए उच्च दर्जे के शस्त्र बनाने में निवेश किया जा सकता है। देखा जाए तो भारत शस्त्र निर्माण के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन सकता है। अगर हमारे वैज्ञानिक नासा के द्वारा चांद पर जा सकते हैं, मंगल अभियान पहले ही प्रयास में सफल कर सकते हैं, विविध देशों में जाकर अत्याधुनिक तकनीकी सेवाएं दे सकते हैं तो वे भारत में शस्त्र निर्माण क्यों नहीं कर सकते? अभी तक इसके लिए सक्षम राजनेताओं की आवश्यकता थी जो अब मोदी सरकार के माध्यम से पूर्ण हो चुकी है।
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अमोल पेडणेकर

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