हिमालयी सीमांत सुरक्षा
ऐसा नहीं कि चीन भारत की विदेश नीति में हो रहे इन परिवर्तनों की भाषा को समझ नहीं पा रहा। चीन इतना तो समझ चुका है कि भारत में जो नया निज़ाम आया है वह किसी भी देश से आंख झुका कर बात करने के लिए तैयार नह
ऐसा नहीं कि चीन भारत की विदेश नीति में हो रहे इन परिवर्तनों की भाषा को समझ नहीं पा रहा। चीन इतना तो समझ चुका है कि भारत में जो नया निज़ाम आया है वह किसी भी देश से आंख झुका कर बात करने के लिए तैयार नह
***हेमंत महाजन**** चीन के विस्तारवाद को रोकना हो तो उसे अपने चंगुल में पकड़ना जरूरी है। उसके लिए सामर्थ्य निर्माण करने की जरूरत है। ...सेना, सुरक्षा सामग्री की उपलब्धि और दांवपेचों को सफल बनाने के लिए सख्त राजनीतिक नेतृत्व हो तो चीन को सामरिक, आर्थिक ध
गोवा जैसे छोटे से राज्य के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर को जब देश का रक्षा मंत्री बनाया गया तो कई लोगों को आश्चर्य हुआ। पर्रिकर उच्च शिक्षित हैं, सक्षम हैं, अनुभवी हैं, और सब से बड़ी बात यह कि पारदर्शी निर्णय करने वाले सच्चे नेता हैं। ऐसा प्रशासक की रक्षा मंत्रालय में आवश्यकता थी। प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने उनकी इस गुणवत्ता के कारण ही उन्हें दिल्ली बुला लिया। पेश है ‘हिंदी विवेक’ के प्रतिनिधि से हुई विशेष बातचीत के कुछ महत्वपूर्ण अंश-
सेना में १९८४ के बाद से आज तक एक भी नई तोप शामिल नहीं हुई है, भारतीय वायुसेना पुराने मिग २१ हवाई जहाज पर निर्भर है तथा नौ-सेना में पनडुब्बियों की संख्या निरंतर घटती जा रही है। इसका अर्थ है कि हमें सेनाओं के आधुनिकीकरण पर अधिक खर्च करना होगा। बढ़ती कीमतों एवं मुद्रा स्फीति को ध्यान में लें तो लगेगा बजट में रक्षा पर होने वाला खर्च लगातार घट रहा है।
भारत पिछले ६८ वर्षों में आधुनिक हथियारों का खरीदार ही बना रहा। नई सरकार ने दृढ़ता का परिचय देते हुए शस्त्र निर्यातक बनने का बीड़ा उठाया है। देश में संसाधनों की कमी नहीं है, राजनीतिक साहस की जो कमी आधी सदी में रही उस कमी को अब मोदी सरकार ने पूरा कर दिया है। रक्षा क्षेत्र अब नई दिशा की ओर उन्मुख है।
आतंकवादियों के हाथों में ‘डिजीटल अस्त्र’ सब से सस्ता अस्त्र है। इसके लिए कोई निवेश नहीं करना पड़ता, कारखाना नहीं लगाना पड़ता, मारकाट नहीं करनी पड़ती, क्षण में प्रचंड मनोवैज्ञानिक दबाव लाया जा सकता है, यह अस्त्र कहीं से भी कहीं पर भी चलाया जा सकता है, और चलाने वाले का पता तक नहीं चलता। इसे आप ‘सूचनास्त्र’ भी कह सकते हैं; क्योंकि यह जानकारी पर हमला कर उसे तहस-नहस कर देता है।
१५ जनवरी यह दिन प्रति वर्ष ‘सेना दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। सन १९४९ में १५ जनवरी को जनरल करिअप्पा ने अंतिम अंग्रेज सेनापति से सेना के सूत्र स्वीकार किए। स्वतंत्र भारत के वे पहले भारतीय सेना प्रमुख थे। इस घटना की स्मृति में दि. १५ जनवरी को ‘सेना दिवस’ मनाया जाता है।
केवल कट्टर वहाबी इस्लाम का दुराग्रह व दूसरे पंथों व धर्मों को एक सिरे से नकारने का प्रशिक्षण देने का कार्य सऊदी अरब जैसे तेल संपन्न राष्ट्र भारत जैसे अनेक गरीब देशों में कर रहे हैं। इसे बदलने का कार्य केवल राष्ट्र की जनशक्ति ही कर सकती है। मुस्लिम बुद्धिजीवियों और विचारकों को इसमें पहल करनी चाहिए।
जिस प्रकार युद्ध और आतंकवादी हमले से होने वाली तबाही, मानवीय, प्राकृतिक आघात हमें दिखाई देता है, उस प्रकार का आघात हमें आर्थिक आक्रमण से दिखाई नहीं देता है। इसीलिए हमारी सरकार, शासन व्यवस्था तथा जनता भी जाली मुद्रा के चलन तथा आर्थिक आक्रमण को गंभीरता से नहीं देखती है। इस दृष्टिकोण को बदलना जरूरी है।
सामाजिक जागरण और तत्पर कार्रवाई से आतंकवाद की जड़ें उखाड़ देना संभव है। इसके लिए हम सभी को तैयार रहना चाहिए और स्वयं अपनी ओर से प्रयास करने चाहिए।
सुरक्षा का दायरा बहुत व्यापक है। बाहरी हमलों से सुरक्षा के अलावा घरेलू हिंसा, यातायात दुर्घटनाएं, महिला एवं बाल शोषण इत्यादि जैसे आंतरिक सुरक्षा के मामले भी इसमें शामिल होते हैं। देश की अर्थव्यवस्था में दूसरे देशो
महिला घर में, समाज में, कार्यस्थल में, धार्मिक, शैक्षिक, राजनीतिक संस्थानों में असुरक्षित है। स्थान, समय, रिश्ता, जाति, स्तर, इसका विवेक मानो आज लुप्त हुआ है। और गंभीर बात यह है कि अबोध बालक भी घरों में, शिक्षा संस्थानों में, समाज में असुरक्षित हैं। यह लज्जाजनक व चिंता की बात है। इसके खिलाफ कानून बनाने की आवश्यकता तो है ही, स्वयं पहल भी करनी होगी।