गाड़ी बुला रही है…

रेल मंत्री श्री सुरेश प्रभु के नेतृत्व में रेल मंत्रालय में तीन वर्ष की अल्पावधि में इतने सुधार किए हैं कि एक सुखद आश्चर्य होता है। इससे रेल सेवा कितनी लोकाभिमुख बन चुकी है, इस बात का भरोसा हो जाता है।

देश तभी तरक्की कर सकता है जब वहां की जीवन रेखाएं-यानि यातायात और परिवहन, उसमें भी खास तौर से सार्वजनिक परिवहन अच्छी स्थिति में हो। भारत की सबसे महत्वपूर्ण सार्वजनिक परिवहन सेवा है -रेल। इस रेल का जाल देश भर में फैला हुआ है। देश के किसी भी कोने में जाने के लिए, आज भी रेल सेवा सबसे सस्ती, अच्छी और सरल मानी जाती है।

वैसे तो अपने यहां रेल की शुरुआत अंग्रेजों ने की थी, पर रेलवे का वास्तविक विकास स्वतंत्रता के बाद ही हुआ। इसके बावजूद देश की जनसंख्या को देखते हुए रेलवे की सेवा हमेशा अपर्याप्त ही रही है। इसके अलावा रेल की दुर्घटनाएं, माल परिवहन और यात्री परिवहन से होने वाले नुकसान के कारण, इतने सालों के बाद भी रेल सेवा में समुचित सुधार नहीं किए जा सके। हर साल बढ़ती जाने वाली यात्रियों की संख्या और गाड़ियों की संख्या का अनुपात अभी तक सुलझ नहीं सका है।

मुंबई में लोकल ट्रेन में रोजाना यात्रा करने वाला नौकरी पेशा वर्ग तो हर रोज लटकते हुए, अपनी जान जोखिम में डालते हुए यात्रा करता है। तमाम लोग दुर्घटना में अपनी जान गंवा बैठते हैं। लोकल की यात्रा के अलावा उसके पास कोई और विकल्प नहीं है।

लेकिन, २०१४ में सुरेश प्रभु जैसे बुद्धिमान और कर्तव्यपरायण व्यक्ति की नियुत्ति के कारण केवल २ वर्षों में ही रेलवे की कायापलट हो गई। प्रभु के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी देश की अत्यावश्यक सेवा होते हुए भी घाटे में जा रही रेल को फायदे में लाना। घाटे में होने के कारण, नई गाडियां या नए मार्ग बनाना काफी हद तक असंभव था। लेकिन पिछले २ वर्षों में रेलवे की आर्थिक गाड़ी भी सरपट चलने लगी है। इसी वजह से कुछ रेलमार्गों के विस्तार की संभावला बलवती हो गई है।

एक तरफ जहां कई सार्वजनिक परिवहन व्यवस्थाएं घाटे में चल रही हैं, वही भारत के इतिहास में पहली बार रेल द्वारा रिकार्ड आय दर्ज की गई है । २०१६-१७ के वित्त-वर्ष में रेलवे ने १.६८ लाख करोड़ की आय दर्ज की है। माल और यात्री परिवहन के क्षेत्र में नई योजनाएं चलाए जाने के कारण ही रेल को आज ये अच्छे दिन देखने के लिए मिल रहे हैं। पिछले साल रेलवे को कोयले की खरीदी में २० मिलियन टन नुकसान हुआ था। स्टील निर्माण में लगने वाले कच्चे माल के परिवहन से इस नुकसान की भरपाई हुईं।पिछले वर्ष यात्री किराये से २ हजार करोड़ रुपये की आय हुई थी। इस साल उसमें दमदार बढ़त हुई है और ४८ हजार करोड रुपये की आय हुई है।

पिछले वर्ष रेल की कई दुर्घटनाएं हुईं। २०१६ में कानपुर में हुई भीषण दुर्घटना में करीब १४८ यात्रियों की मृत्यु हुई। इस दुर्घटना में आतंकियों का हाथ होने की आशंका व्यक्त की जा रही है। इसके अलावा हाल ही में पटरियां उखड़ने, पटरियों पर रुकावट पैदा करने, जैसी घटनाएं हो रही हैं; जिनके कारण रेलवे को और अधिक सावधानी बरतनी पड़ रही है। गाड़ियों की टक्कर से होने वाली दुर्घटनाएं, रेलगाड़ी में आग लगना और इसके अलावा कई प्रकार की दुर्घटनाएं होती रहती हैं। लेकिन यात्रियों की सुरक्षा की दृष्टि से रेलवे ने कई उपाय किए हैं।

गाड़ियों की टक्कर सामान्यतः सिग्नलिंग सिस्टम में खराबी आने के कारण या फिर कर्मचारी की लापरवाही के कारण होती है। उसके लिए नई आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल कर विजिलेंस कंट्रोल डिवाइस लगाया गया है। इसके कारण, अगर एक ही ट्रैक पर दो गाड़ियां आ जाएं तो ड्राइवर को पहले ही सूचना मिल जाएगी और अगर वह तब भी कुछ नहीं कर पाता है तो, गा़डियां अपने आप ही रुक जाएंगी।

इसके अलावा आटोमैटिक गाड़ी संरक्षण प्रणाली भी क्रियान्वित की गई है। फिलहाल यह प्रणाली चेन्नई- गुम्मिडीपुंडी और चेन्नई- अर्क्कोनाम मार्ग पर लगाई गई है । दिल्ली-आगरा और कोलकाता मेट्रो के सुभाष रोड स्टेशन से डमडम स्टेशन तक भी प्रायोगिक स्तर पर ये प्रणाली लगाई गई है।

साथ ही गाड़ियों की टक्कर टालने के लिए भारत में ही सुरक्षा प्रणाली विकसित करने का काम चल रहा है। गाड़ियों का पटरी से उतरना टालने के लिए रेल पटरियों का नवीनीकरण का कार्य चल रहा है। नई पटरियां बिछाने का कार्य भी जोर-शोर से चल रहा है। धनाभाव या अन्य कारणों से जिन पटरियों का नवीनीकरण नहीं हो सका, वहां गतिसीमा निर्धारित कर दी गई है।

दक्षिण अफ्रीका की रेलवे की सहायता से उत्तर-मध्य रेलवे के कुछ मार्गों पर अल्ट्रासोनिक ब्रोकन रेल डिटेक्शन सिस्टम भी लगाई गई हैं। अल्ट्रासोनिक किरणों की सहायता से टूटी हुई पटरियों को आसानी से देखा जा सकता है। रेलमार्ग पर भी लगातार निगरानी और जांच होती रहती है और खराब मौसम के समय सतर्कता विभाग की ओर से भी लगातार रेल मार्ग की जांच होती रहती है।

सुरेश प्रभु प्रधानमंत्री जी द्वारा किए गए विश्वास पर न केवल खरे उतर रहे हैं बल्कि रेल को अधिक से अधिक लोकाभिमुख बनाने का प्रयास भी कर रहे हैं। लोग आज बड़े पैमाने पर सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर रहे हैं। इसी को देखते हुए उन्होंने इसी माध्यम के द्वारा लोगों के और अधिक नजदीक जाने का प्रयास किया है ताकि रेल यात्रा में आने वाली समस्याओं को लोग उन तक पहुंचा सकें। टि्वटर हैंडल के द्वारा, और फेसबुक-युट्यूब के माध्यम से भी वे लगातार लोगों के संपर्क में रहते हैं। इतने सालों में ये प्रयोग पहली बार ही किया जा रहा है। इस प्रयास के द्वारा यात्रियों की शिकायतें, समस्याएं सुझाव, सुरक्षा, चिकित्सा आदि से संबंधित जरूरतों को २४ घंटे के अंदर सुलझाया जाता है। शिकायतों का तुरंत निवारण होता है। बहुत अल्प समय में ये सेवा बहुत लोकप्रिया हो गई है और जनता के लिए ये सुखद आश्चर्य से कम नहीं है कि शिकायतों पर तत्काल कार्रवाई हो रही है ।

उदाहरणार्थ, इलियास हुसैन नामक बिजनौर के यात्री गाड़ी क्रमांक ११०२६ से यात्रा कर रहे थे। ताडीपात्री और गुंटूर स्टेशन के बीच किन्नरों ने उनका पर्स उड़ा दिया। रेलमंत्री के ट्विटर अकाउंट पर शिकायत करते ही अगले स्टेशन पर रेलवे के अधिकारी उन्हें मिले और अपनी जांच शुरू की। मात्र ६ दिनों के भीतर ही पुलिस ने उनके ४७००० रुपयों की वसूली कर ली।

मार्च महीने में घर से भागी एक १३ वर्षीय लड़की स्थानीय सांसद विनायक राऊत और रेल मंत्री सुरेश प्रभु की वजह से जल्द ही अपने घरवालों तक पहुंच गई। इसी प्रकार एक बार एक ९ साल का लड़का बदहवास सा पटना स्टेशन पर घूम रहा था। जांच के बाद पता चला कि कुछ लोग उसे उठा कर ले गए थे और पटना स्टेशन पर छोड़ दिया था। वहीं से रेलवे पुलिस ने उसके परिवार वालों से संपर्क साधकर उस बच्चे को उनके हवाले किया। वाराणसी स्टेशन पर एक बेहोश महिला की जानकारी मेल करते ही रेलवे के अधिकारियों ने उसका उपचार करके उसके घरवालों से संपर्क कर उसे घर भेजने का प्रबंध किया।

वातानुकूलित डिब्बों में ऊपर के बर्थ पर चढ़ने के लिए सीढ़ी दी जा रही है। महिलाओं के डिब्बे में सुरक्षा के लिए महिला रक्षकों की नियुक्ति की गई है। इसके अलावा स्टेशनों पर और डिब्बों के अंदर भी छोटे बच्चों के लिए गरम पानी, गरम दूध और बेबी फूड की व्यवस्था की गई है।

सप्तरंगी सुविधाएं

इस बजट में साल २०२० तक बिना आदमी वाले सभी फाटकों को खत्म करने का लक्ष्य तय किया गया है। सड़क के ऊपर पुल और पुल के नीचे सड़क से जुड़ी क्रॉसिंग पर लोगों की तैनाती हो सकती है।

गौरतलब है कि २०१४-१५ से २०१७-१८ में प्लान खर्च तकरीबन दोगुना हो गया। २०१४-१५ में जहां यह आंकड़ा ६५,७९८ करोड़ रुपये था, वहीं २०१७-१८ में यह १,३१,००० करोड़ रुपये हो गया। यह देश की जीवनरेखा माने जाने वाले भारतीय रेलव को लेकर मौजूदा सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

रेल बजट के विलय से भारतीय रेलवे के डिविडेंड दायित्य का मामला भी खत्म हो गया, नतीजतन उसके पास १०,००० करोड रुपये की अतिरिक्त उपलब्धता होगी।

बजट में २०१७-१८ के दौरान ३,५०० किलोमीटर रेलवे लाइन तैयार करने का लक्ष्य रखा गया है, जबकि २०१६-१७ में यह आंकडा २,८०० किलोमीटर का था। विद्युतीकरण पर खासा जोर है। इसके तहत लक्ष्य को दोगुना कर ४,००० रूट किलोमीटर कर दिया गया है, जबकि २०१६-१७ में यह आंकड़ा २,००० रूट किलोमीटर था।

बजट में रेल किराए में कोई बढ़ोत्तरी नहीं की गई है। इसके बजाय यात्रियों के बीच डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा देने के लिए आईआरसीटीसी के जरिये बुक कराए जाने वाले ई-टिकटों पर सेवा शुल्क को वापस ले लिया गया है जो कि एक स्वागत योग्य कदम है । रेलवे की तीन इकाइयों-आरएफसी, इरकॉन और आईआर सीटीसी को शेयर बाजार में सूचीबद्ध कराने का भी प्रस्ताव है।
राज्य सरकारों के साथ संयुक्त उद्यम पर हस्ताक्षर के लिए नई रणनीति तैयार की गई है। इससे राज्यों के सहयोग से परियोजनाओं के लिए इनोवेटिव फंडिंग का इंतजाम हो सकेगा और काम पर भी तेजी से अमल होगा। रेलवे ९ राज्य सरकारों के साथ संयुक्त उपक्रम बनाएगा। निर्माण और विकास के लिए ७० परियोजनाओं की पहचान की गई है।
रेलवे प्लेटफार्म और ट्रेनों में सफर के दौरान स्वच्छता की कोशिशों का असर देखा जा सकता है। एसएमएस के जरिये कोच साफ करवाने की सेवा लोकप्रिय हो रही है। बजट में कोच मित्र सुविधा का भी प्रस्ताव किया गया है। इसके तहत एक इंटरफेस के जरिये कोच से जुड़ी सभी जरुरतों के लिए रजिस्टर कराया जा सकता है।

रेल प्रशासन ने यात्री मित्र सेवा शुरू की है जिसमें वृद्धों और दिव्यांगों को स्टेशन से बाहर जाने में मदद की जाती है। साथ ही उनके लिए व्हीलचेयर की भी व्यवस्था की जाती है।इन सब घटनाओं को देखें तो एक सुखद आश्चर्य होता है। सुरेश प्रभु के नेतृत्व में रेल सेवा कितनी लोकाभिमुख बन चुकी है, इस बात का भरोसा हो जाता है।

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