समाज में बढ़ता दुराचार

बलात्कार केवल पुरुष की अतृप्त यौन इच्छा की संतुष्टि ही नहीं है बल्कि यह स्त्री को बलहीन, मर्यादाहीन, शीलहीन और नेतृत्वहीन बनाकर पूरे स्त्री समाज को कमजोर दिखाने की कवायत है। …इस अपराध से समाज को मुक्त करने के लिए राजनीतिक और सामाजिक दोनों तरह की इच्छाशक्ति की आवश्वकता है।

घटना क्रमांक १ :

जेवर-बुलंदशहर स्टेट हाइवे पर ६ दरिंदों ने लाखों की लूट के बाद कार सवार परिवार को बंधक बनाकर चार महिलाओं से सामूहिक दुष्कर्म किया और विरोध करने पर परिवार के मुखिया की गोली मारकर हत्या कर दी। यह हैवानियत मृतक की मां, बहन, मामी और पत्नी से गई। इससे पहले बदमाशों ने ४० हजार रुपये नकद व लाखों के गहने लूट लिए। तमंचा, चाकू और लोहे के रॉड व हथौड़े से लैस बदमाश सभी को कार समेत १०० मीटर अंदर खेत में ले गए। पहले सभी की पिटाई की और हाथ पैर बांध दिए। परिवार के मुखिया ने जब विरोध किया तो पहले डराने के लिए धरती पर गोली मारी, फिर दोबारा विरोध करने पर उसके सीने में गोली मार दी। ‘पास मे ही देवर तड़पता रहा और हम लाचार थे। हमारे परिजनों के सामने सामूहिक दुष्कर्म किया गया। हम गिड़गिड़ाए, मिन्नतें कीं, उनके पैर पकड़े, उनकी बहन -मां होने की दुहाई दी। अपनी उम्र का हवाला दिया कि आपकी मां की उम्र की हूं, कुछ तो दया करो। लेकिन बदमाशों ने हमारी एक भी न सुनी।’ (दैनिक जागरण २६/०५/२०१७)

घटना क्रमांक-२

: (इलाहाबाद) घरपुर में इलाहाबाद-बांदा (उ.प्र.) हाइवे के किनारे घर के बाहर सो रही दरिंदों ने मुंह में कपड़े ठूंसा तथा चारों ने बारी-बारी से मुंह काला किया। (दैनिक जागरण-२७/०५/२०१७)

घटना क्रमांक-३ :

नई दिल्ली: वसंत कुंज स्थित १०वीं कक्षा की छात्रा को जबरन आल्टो कार में अगवा किया और सुनसान इलाके में ले जाकर दो बार दुष्कर्म करने के बाद छोड़ कर फरार हो गया। (दैनिक जागरण १५/०८/२०१६)

घटना क्रमांक-४

 देवबंद, सहारनपुर (उ.प्र.) तलाकशुदा महिला को बंधक बनाकर चार युवकों ने सामूहिक दुष्कर्म के साथ बुरी तरह प्रताड़ित किया। (दैनिक हिन्दुस्थान ११/०६/२०१७)

घटना क्रमांक-५ :

लोहता, वाराणसी (उ.प्र.) : एक युवक ने ५ वर्षीय किशोरी को बंधक बनाकर चार दिनों तक दुष्कर्म किया व शारीरिक यातनाएं दीं। (अमर उजाला-३०/०५/२०१७)

घटना क्रमांक-६ :

गनेशपुर, मिर्जामुराद, वाराणसी (उ.प्र) : वनवासी बस्ती की ६ वर्षीय बालिका के साथ दुष्कर्म का प्रयास किया। सफल नहीं होने पर बुरी तरह मारा-पीटा (दैनिक जागरण-३०/०५/२०१७)

ऊपर दी गई घटनाएं तो मात्र कुछ बानगी हैं। देश के विभिन्न भागों में घटित घटनाओं को यदि हम एकत्र करें तो इनकी एक लंबी सूची बन जाएगी। आए दिन सुबह-सुबह अखबार पढ़ें तो एक तरफ सरकारें बेटियों के सशक्तिकरण को बढ़ावा दे रही हैं तो दूसरी ओर छोटी बच्चियों के साथ दुराचार की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं।
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार देश में इस तरह के अपराधों की निम्न घटनाएं दर्ज हुईं-

सामूहिक बलात्कार

२०१४-३४,६५१ घटनाएं
२०१५-३६, ६५१ घटनाएं

बलात्कार

२०१४-८२,२३५ घटनाएं
२०१५-८४,२२२ घटनाएं

अपहरण

२०१४-५७,३११
२०१५-५९, २७७

दिल्ली में महिलाओं के साथ सर्वाधिक आपराधिक रिकार्ड १७,१०१४ दर्ज हुए। जहां इस शहर में महिलाओं की एक लाख आबादी पर १८४.३ प्रति अपराध है। वहीं असम दूसरे स्थान पर है जहां १४८.२ की औसत से २३,२५३ मुकदमें दर्ज हुए।
न्यायिक सक्रियता के अभाव में ऐसी घटनाएं दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश में ही १० वर्षों से ऊपर के ७.४३ लाख मुकदमें लंबित हैं। ये मुकदमें तारीख-दर-तारीख बढ़ते जा रहे हैं। इसमें प्रमुख कार ऐसे मुकदमें हैं जिनमें सरकार की ओर से गवाह नहीं प्रस्तुत किए गए हैं या अभिलेख नहीं उपलब्ध कराए गए हैं। या जो किसी अन्य कारण से विचाराधीन हैं। इस प्रकार पूरे भारत के मुकदमों की संख्या लगभग पांच करोड़ तक हो जाती है। एक तरफ दुष्कर्म पीड़िताएं तिल-तिल कर, मर-मर कर जी रही हैं तो दूसरी ओर दुष्कर्मी मस्तीभरी जिंदगी गुजार रहे हैं। उच्चतम न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता तथा समाजसेवी श्री अंजनी कुमार के शब्दों में दुष्कर्म की घटनाओं में बढ़ोत्तरी की ओर यदि हम नजर डालें तो इसके लिए सांस्कृतिक विकृतियां जिम्मेदार हैं। छोटे-छोटे बच्चों के कोमल मन मस्तिष्क में वासनाओं की कोपलें फूटने लगती हैं। ये कहां से फूटती है? आप अखबार खोलें, टेलीविजन के किसी भी चैनल पर जाएं। परिवार के साथ आप कोई भी धारावाहिक नहीं देख सकते हैं। विज्ञापनों में तो इतना फूहड़पन है कि क्या कहूं? छोटी-छोटी बच्चियों के साथ आए दिन दुष्कर्म की घटनाएं घट रही हैं। हम पशुता की ओर बढ़ते जा रहे हैं। यद्यपि निर्भया कांड में महिला सुरक्षा के लिए कड़े कानून बनाए गए हैं जो सही घटनाओं के लिए तो ठीक है लेकिन यदि किसी व्यक्ति को ऐसी घटनाओं में फंसाया गया हो तब तो जमानत ही नहीं मिल पाती है।

छाया वर्मा (दुष्कर्म पीड़िता का बदला हुआ नाम) का कहना है कि अभी-अभी देश की प्राण नदी पतित पावनी गंगा को गंदा करना अब कठोर दंडनीय अपराध होने जा रहा है। जिस तरह चोरी, डकैती व धोखाधड़ी आदि जघन्य अपराध हैं; ठीक उसी प्रकार गंगा को मलीन करने पर ७ साल की जेल तथा सौ करोड़ का जुर्माना होगा। इस देश में सामाजिक जीवन के हरेक क्षेत्रों में अपराध का बोलबाला होता जा रहा है। मैंने कई बार आत्महत्या का प्रयास किया है। मैं इस संसार में नहीं रहना चाहती हूं। जब मैं किसी पुरुष-स्त्री के पास जाती हूं तो उसके मुंह से निकलने वाले शब्दों से मैं दुखी हो जाती हूं। फिर भी न्याय के लिए जी रही हूं। कुछ लोग कहते हैं कि न्याय में देरी अन्याय है। फिर भी मेरी सकारात्मक सोच है। मेरा मानना है कि बलात्कारी व्यक्ति को २० साल की सश्रम कैद, सामाजिक बहिष्कार, चूना-गोबर लगाकर गदहे पर घुमाना तथा कम से कम एक करोड़ अर्थदंड का प्रावधान होना चाहिए।

देश के विभिन्न भागों में आए दिन घटने वाली बलात्कार की घटनाओं के पीछे यदि इसका मूल कारण खोजा जाए तो संभवत: वह यही है कि भारत में चूंकि पुरुषवादी सामाजिक संरचना या ‘पितृसत्तातमक व्यवस्था’ व्याप्त है, अत: यहां प्रारंभ से ही बच्चों की परवरिश लिंगभेद आधार पर होती है। यहां लड़कियों को हर बार दबाने, कुचलने, नीचा दिखाने की कोशिश ही आगे जाकर यौन हिंसा के रूप में बदल जाती है। बलात्कार केवल पुरुष की अतृप्त यौन इच्छा की संतुष्टि ही नहीं है बल्कि यह स्त्री को बलहीन, मर्यादाहीन, शीलहीन और नेतृत्वहीन बनाकर उसे ही नहीं बल्कि पूरे स्त्री समाज को कमजोर दिखाने की कवायत है।

बलात्कार यौन इच्छाओं का विस्फोट है। आज के समय में मीडिया और इंटरनेट संचार माध्यमों के सघन जाल ने यौन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का भी एक अप्रत्यक्ष अधिकार लोगों को दे दिया है। जिसका खामियाजा स्त्री वर्ग भुगत रहा है। जब-जब बलात्कार की बड़ी घटनाएं होती हैं, तब देश में चर्चाओं का प्रलाप-विलाप-आलाप शुरू हो जाता है कि बलात्कारी को गोली मार देनी चाहिए, उम्रकैद की सजा होनी चाहिए, उसे नपुसंक बना देना चाहिए। लेकिन हमारे देश की लचर कानून व्यवस्था का लाभ उठाकर अपराधी बच निकलते हैं और अपराधिक तत्व अपराध करने में तनिक संकोच नहीं करते।

स्त्री के लिए शुचिता, विशेषकर यौन शुचिता होनी ही चाहिए, ऐसा हमारे समाज में सदियों से सिखाया जाता रहा है। स्त्री को यदि पर-पुरुष स्पर्श भी कर ले तो वह अशुद्ध हो जाएगी यही सोच पौराणिक काल में भी बेगुनाह, पवित्र, सती साध्वी पतिव्रता सीता को, वन-वन भटकने, अपनों से ही दूर जाने को मजबूर कर देती है। एक नारी के प्रति की गई यौन हिंसा उसका तन-मन दोनों तार-तार कर देती है। वह क्या करेगी? कौन उसे स्वीकारेगा? उसका सब कुछ नष्ट हो गया, जैसे वाक्यों की बौछार के बीच पीड़िता को सिवाय मृत्यु का अलिंगन करने के, कोई दूसरा उपाय नहीं सूझता। यद्यपि देश में निर्भया कांड के बाद महिलाओं की सुरक्षा के लिए कई बड़े उपाय किये गए, जो सराहनीय हैं किन्तु तब भी क्या घटनाएं रुक गईं? क्या सभी महिलाएं सुरक्षित हो गईं? इसका उत्तर आज भी नहीं में होगा। अब तक बलात्कार की परिभाषा, उसका कारण-निवारण, सब पुरूष ही बताते चले आए हैं। परिणामत: या तो बलात्कार में स्त्री की सहमति को इसका कारण माना जाता है या उसके बाद उसके प्रति सहानुभुति-दया का दिखावा होता है। प्रसिद्ध विचारक रूसो ने कहा था कि औरत की मर्जी के बिना उससे कोई यौन संबंध नहीं बना सकता। तीन सदी पूर्व कहे इस कथन पर आज भी समाज चल रहा है। फलत: बलात्कार अपराध की मुख्य अपराधी स्त्री को ही माना जाता है। स्त्री भोग्या है। मात्र भोगने की वस्तु। यही सोच सामूहिक दुराचारी को अपराध करने की ओर प्रेरित करती है।ंआज आवश्यकता इस बात की है कि समाज में इस अपराध के प्रति न केवल कठोर कानून हो, बल्कि लिंग भेद भी दूर करने का प्रयास हो। स्त्रियों को शिक्षा, रोजगार के साथ ही आत्मरक्षा के भी प्रशिक्षण आवश्यक रूप से दिए जाएं। पीड़िता को इसका जिम्मेदार मानने के बजाय उसके प्रति सहानुभुति हो। बच्चों को उचित-अनुचित शारीरिक स्पर्श के बारे में बताया और समझाया जाए। इस अपराध से समाज को मुक्त करने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति के साथ ही सामाजिक इच्छाशक्ति भी आवश्वक है।

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