ध्येयनिष्ठ वंदनीय उषाताई

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वं. उषाताई चाटी का चले जाना यूं भी सेविकाओं के लिए किसी आघात से कम नहीं। वह बालिका के रूप में स्व. नानी कोलते जी की अंगुली पकड़ कर समिति की शाखा में आई और अपनी स्वभावगत विशेषताओं और क्षमताओं के कारण ६८ वर्ष पश्चात् संगठन की प्रमुख बन कर १२ वर्ष तक सभी का मार्गदर्शन करती रही। वं. मौसी जी ने सेविकाओं के सम्मुख तीन आदर्श रखे, मातृत्व-कतृत्व-नेतृत्व।वं. उषाताई जी ने ‘स्वधर्मे स्वमार्गे परं श्रद्धया’ पर चलने वाला जीवन जीया। उनका स्मरण अर्थात् ७८ वर्ष के ध्येयनिष्ठ जीवन का स्मरण। आयु के १२हवें वर्ष से

हिंदू हिंदू मेरा अपना

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1936 में वं. मौसी जी ने समाज स्थिति का अवलोकन कर राष्ट्र सेविका समिति की नींव रखी और महिलाओं का एक राष्ट्रव्यापी संगठन धीरे-धीरे संपूर्ण देश में कार्यरत हुआ। शाखा में तैयार हुई मानसिकता -हिंदू हिंदू मेरा अपना इस एकात्म भाव से अनेकविध सेवा प्रकल्पों के माध्यम से- कृतिरूप धारण करने लगी।

पौराणिक संबंध

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सामान्य रूप से यात्रा पर जाना वहां के समाज में घुलमिल जाने की एक अनौपचारिक शिक्षा ही थी जिसने इस भूमि को युगों से आत्मीय, अक्षुण्ण, अभंग और एकात्म रखा है। ऐसे हमारे अनेक धागे पूर्वांचल के साथ जुड़े हुए हैं- सृष्टि उत्पत्ति के समय से, रामायण, महाभारत काल से। आज पूर्वांचल नाम से प्रचलित भूभाग देश का ईशान (मराठी में ‘ईशान्य’) -पूर्वोत्तर कोना है- ईश्वर की दिशा, जहां ईश्वर का निवास है ऐसा स्थान।

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