खादी : वस्त्र और विचार

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मनुष्य की जरूरत पूरी करने में खादी सक्षम है। आवश्यकता से अधिक अर्जन करने से आदमी की प्रकृति और प्रवृत्ति बदल जाती है। धीरे-धीरे शोषक बनने की श्रेणी में आ जाता है। जबकि चरखे में तो ईश्वर का वास है। यह गरीब से गरीब आदमी की क्षुधा तृप्त कर सकता है। उसको सम्मान दिला सकता है।

 गांवों का विकास गांधी के रास्ते

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 वर्तमान उपभोक्तावादी संस्कृति ने हमारी भूख बढ़ा दी है| हम अपनी आवश्यकता पूर्ति व धन-उपार्जन के लिए शहरों की ओर पलायन करते जा रहे हैं, जिससे एक तरह की अव्यवस्था बनती जा रही है| इस बाज़ार भ्रमजाल को गांधी के रास्ते पर चल कर ही तोड़ा जा सकता है| कृषि आधारित ग्रामीण अर्थव्यवस्था का पुनरुज्जीवन ही इसका एकमात्र विकल्प है|

गांधी और सुशासन   

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भारत को आज़ाद हुए एक लम्बा अरसा बीत चुका है| आज़ादी के साथ-साथ लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत करने की जिम्मेदारी भी देश के नवनिर्मित नेतृत्व के हाथों में आ पड़ी| उस समय देश के सामने दो रास्ते थे-एक अमेरिका का पूंजी केंद्रित मॉडल और दूसरा सोवियत रूस का समाजवादी मॉडल| लेकिन इससे पहले महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान ही देश के भावी विकास के लिए एक अलग ही रास्ते की परिकल्पना पेश की थी

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