भारतीय बौद्धिकता पर मैकाले-मार्क्सवादी ग्रहण
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भारतीय बौद्धिकता पर मैकाले-मार्क्सवादी ग्रहण
किसी देश में वैचारिक यथास्थितिवाद उसे प्रगतिगामी नहीं होने देता है। यह चिंतन और समझ को एक दायरे में बंधक बनाकर रखता है। आज़ादी के बाद भारत में कुछ ऐसा ही हुआ। औपनिवेशिक शासन का तो अंत हुआ परन्तु औपनिवेशिक संस्कृति सोच और समझ यथावत बनी रही। इसने लगभग तीन