दीर्घायु एवं उत्तम स्वास्थ्य के लिए भी अनिवार्य है अभिवादनशीलता

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भारतीय संस्कृति में अतिथि को भगवान का रूप माना गया है। तैत्रीय उपनिषद् में कहा गया है ‘अतिथि देवो भव’। कथासरितसागर कार सोमदेव भट्ट के अनुसार ‘यथाशक्त्यतिथै: पूजा धर्मो हि गृहमोधिनाम्’ अर्थात् अपनी शक्ति के अनुसार अतिथि का सत्कार करना गृहस्थ का धर्म है।

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