अखंड भारत की राह में, सिंध के बिना हिंद अधूरा

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जैसा कि सर्वविदित है कि प्राचीन भारत का इतिहास बहुत वैभवशाली रहा है। भारत माता को सही मायने में “सोने की चिड़िया” कहा जाता था एवं इस संदर्भ में भारत की ख्याति पूरे विश्व में फैली हुई थी। इसके चलते भारत माता को लूटने और इसकी धरा पर कब्जा करने के उद्देश्य से पश्चिम के रेगिस्तानी इलाकों से आने वाले मजहबी हमलावरों का वार सबसे पहले सिन्ध की वीरभूमि को ही झेलना पड़ता था। अविभाजित भारत में सिंध प्रांत को अपनी भौगोलिक स्थिति के चलते किसी जमाने में भारत का द्वार भी माना जाता था। इसी कारण से सिंध प्रांत ने अरब देशों से भारत पर होने वाले आक्रांताओं के वार भी सबसे अधिक सहे हैं। सिंध के रास्ते ही आक्रांता भारत में आते थे। सिंध की पावन भूमि वैदिक संस्कृति एवं प्राचीन सभ्यता का केंद्र रही है एवं सिंध की पावन धरा पर कई ऋषि, मुनियों एवं संत महात्माओं ने जन्म लिया है। सिंधी समुदाय को भगवान राम के वंशज के रूप में भी माना जाता है। महाभारत काल में जिस राजा जयद्रथ का उल्लेख है वो सिंधी समुदाय का ही था।

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