सावरकर को था डॉ. हेडगेवार पर अटल विश्वास

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नि:शस्त्र प्रतिरोध के प्रेरणा पुरुष स्वातंत्र्यवीर सावरकर थे। सावरकर और सरसंघचालक डॉ. हेडगेवार में परस्पर स्नेह,आदर और सामंजस्य था। डॉ. हेडगेवार की भूमिका के बारे में सावरकरजी के क्या विचार थे? इसका अनुमान डॉ. हेडगेवार के जाने के बाद हिंदू महासभा के अध्यक्ष के रूप में सावरकर द्वारा 13 जुलाई, 1940 में  नए सरसंघचालक गोलवलकर गुरुजी को मूलत: अंग्रेजी में लिखे पत्र से होता है। डॉ. हेडगेवार के प्रति अत्यधिक स्नेह का उल्लेख करते हुए सावरकर लिखते हैं, "डॉ. हेडगेवार के जीवन काल में पूरे हिंदुस्तान में संघ की सैंकड़ों सभाओं को संबोधित करने का मुझे अवसर मिला। लेकिन संघ के विषय में कहना हो, तो किसी भी प्रश्न पर डॉ. हेडगेवार का ही शब्द अंतिम होना चाहिए और मुझे उनके बुद्धि विवेक पर पूर्ण आत्मविश्वास था"

स्वतंत्रता आंदोलन में संघ के स्वयंसेवकों का सहभाग

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जंगल सत्याग्रह के फलस्वरूप संघ का बरार में अच्छा-खासा विस्तार हुआ। यह अपेक्षित था कि मध्य प्रांत से होने के कारण डॉ. हेडगेवार मध्य प्रांत मेंही सत्याग्रह करेंगे। परंतु डॉ हेडगेवार ने सत्याग्रह बरार में किया था। उस समय तक बरार संघ के बारे में अनभिज्ञ था। डॉ. हेडगेवार द्वारा बरार में सत्याग्रह किए जाने के परिणामस्वरूप उन्हें अकोला कारागार में रखा गया।उस समय उनके संपर्क में आए कांग्रेस के सभी तत्कालीन कार्यकर्ता संघ के कार्यकर्ता बन गए। अकोला कारागार से छूटने के बाद अगस्त-सितंबर 1931 में डॉक्टरजी ने संघ कार्य के विस्तार हेतु बरार में प्रवास कर संघ शाखाएं शुरू कीं। सविनय अवज्ञा आंदोलन में सक्रिय अनेक लोग डॉ. हेडगेवार से प्रभावित होकर संघ में शामिल हुए। इनमें से अनेक सितंबर 1931 में निम्नानुसार संघचालक बने: डॉ. यादव श्रीहरी उपाख्य तात्याजी अणे (कलकत्ता से ही डॉ. हेडगेवार के मित्र थे), डॉ.प्रहलाद माधव काले (खमगाव), दाजी साहब बेदरकर (आकोट),और शंकर राव उपाख्य अण्णा साहब डबीर (वाशिम)।(चौधरी,पृष्ठ888,891,897,931,942,998,1009,1023) दारव्हा (यवतमाल जिला) में बापू साहब डाऊ की संघचालक पद पर नियुक्ति की गई। 29 जुलाई,1930 को अमरावती में सत्याग्रह करते समय बंदी बनाए गए अमरावती के ‘उदय’ समाचार पत्र के संपादक नारायण रामलिंग उपाख्य नानासाहब बामणगावकर 11सितंबर,1933 में अमरावती संघचालक बने।

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