गुजरात में मुफ्तखोरी का विकृत तीसरा मोर्चा!

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वास्तव में यह "आप" के सोशल मीडिया और "मीडिया मैनेजमेंट" का ही एक नतीजा है जिसने फिर से केजरीवाल को गुजरात के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया है। "आप" के लिए समस्या यह है कि अगले साल के चुनाव को ध्यान में रखते हुए उनकी पार्टी का संगठन अभी ग्रासरूट तक पहुंचा नहीं है और उसमें जुड़ने वाले लोग भी किसी न किसी राजनीतिक दल से नाराज या बिछड़े हुए कार्यकर्ता या नेता है जो इस पार्टी की तथाकथित तौर पर उभरती लोकप्रियता को भुनाना चाहते हैं। ऐसे में उनके लिए राहत की बात यह है कि एक निजी न्यूज़ चैनल के प्राइम टाइम एंकर इशूदान गढवी ने अपनी लोकप्रियता को भुनाने के लिए अब पत्रकारिता छोड़ "आप" का दामन थाम लिया है, जिन्हें केजरीवाल ने गुजरात में आकर "गुजरात का केजरीवाल" भी बता दिया।

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