स्वायत्त बहुजन राजनीति और कांशीराम की विरासत..

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क्या देश की संसदीय राजनीति में 'स्वायत्त दलित राजनीतिक अवधारणा' के दिन लद रहे है या राष्ट्रीय दलों में  दलित प्रतिनिधित्व की  नई राजनीति इसे विस्थापित कर रही है।कांग्रेस एवं भाजपा जैसे दलों में दलित नुमाइंदगी प्रतीकात्मक होने के आरोप के  साथ बहुजन राजनीति की शुरुआत हुई थी। बड़ा सवाल…

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