बाबा साहब और धम्म

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‘मनुष्य’ को ही केन्द्र में रखा। उन्होंने कर्मकाण्ड रहित धम्म को ही स्वीकार किया और देश बाह्य धर्मों को नकार दिया। तथागत द्वारा बताए गये मार्ग पर चलते हुए समाज और मनुष्य को जोड़ने का कार्य किया।

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