प्रोपोगेंडा की साधक बनती जा रही पत्रकारिता

Continue Readingप्रोपोगेंडा की साधक बनती जा रही पत्रकारिता

"ना कलम बिकती है, ना कलमकार बिकता है। लिख लिख कर थक जाती है ये उंगलियां तब जाकर कहीं अख़बार बिकता है।" आज पत्रकारिता का दौर बदल गया है। टीआरपी के चक्कर में अब खबरें बनाई और बेची जाने लगी है। एक समय था जब पत्रकार की कलम से अंग्रेजी…

End of content

No more pages to load