सामने की खिड़की में बैठा वह
दफ्तर जाने को निकलता हूं कि नजर अपने-आप ऊपर जाती है। मैं रहता हूं उसके पास वाले मकान में पांचवां मंजिल की खिड़की में बैठा होता है। शांति से आने-जाने वाले लोगों को देखता रहता है। सुबह सात से ग्यारह बजे तक तथा शाम को सात से रात के ग्यारह बजे तक खिड़की में बैठने का उसका समय हैं, यह मैं अच्छी तरह से जानता हूं।