त्याग और तपस्या का परिणाम

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फिर मैं बोला, *"बेटा! सिर्फ़ अपनी थाली देख। दूसरे की देखेगा तो तेरी अपनी थाली भी चली जायेगी...... और सिर्फ़ अपनी ही थाली देखेगा तो क्या पता कि तेरी थाली किस स्तर तक अच्छी होती चली जाये। इस रूखी-सूखी थाली में मैं तेरा भविष्य देख रहा हूँ। इसका अनादर मत कर। इसमें जो कुछ भी परोसा गया है उसे मुस्करा कर खा ले ....।" उसने फिर मुस्कराते हुए मेरी ओर देखा और जो कुछ भी परोसा गया था खा लिया। उसके बाद से मेरे किसी बच्चे ने मुझसे किसी भी प्रकार की कोई भी मांग नहीं रखी । बाबू जी! आज का दिन मेरे बच्चों के उसी त्याग औऱ तपस्या का परिणाम है। उसकी बातों को रमेश बाबू बड़ी तन्मयता के साथ लगातार चुपचाप सुनते रहे औऱ बस यही सोचते रहे कि आज के बच्चों की कैसी मानसिकता है कि वे अपने अभिभावकों की हैसियत पर दृष्टि डाले बिना उन पर लगातार अपनी ऊटपटाँग माँगों का दबाव डालते रहते हैं............!!

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