किसान-आंदोलन की आड़ में राष्ट्र की एकता, अखंडता, संप्रभुता से खिलवाड़

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इसमें कोई संदेह नहीं कि इन तथाकथित किसानों ने लालकिले पर 26 जनवरी जैसे राष्ट्रीय-दिवस पर जैसा उपद्रव-उत्पात मचाया है, किले के गुंबदों को जो क्षति पहुँचाई है उससे लोकतंत्र शर्मसार हुआ है। उससे पूरी दुनिया में हमारी छवि धूमिल हुई है, हमारे मस्तक पर हमेशा-हमेशा के लिए कलंक का टीका लगा है। और उससे भी अधिक विस्मयकारी यह है कि अभी भी कुछ नेता, सामाजिक-राजनीतिक संगठन, तथाकथित बुद्धिजीवी इस हिंसक आंदोलन को जन-आंदोलन की संज्ञा देकर महिमामंडित करने की कुचेष्टा कर रहे हैं।

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