अमृत महोत्सव: संघ प्रमुख के विचारों की प्रासंगिकता

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सरसंघचालक चालक मोहन भागवत ने 1931 की एक घटना का उल्लेख करते हुए कहा था कि' तिरंगे के जन्म से उसके सम्मान के साथ संघ का स्वयंसेवक जुड़ा है। मैं आपको सत्य घटना बता रहा हूं। निश्चित होने के बाद,उस समय चक्र तो नहीं था, चरखा था,ध्वज परर।पहली बार फैजपुर के कांग्रेस अधिवेशन में उस ध्वज  को फहराया गया था। अस्सी फीट ऊंचा ध्वज स्तंभ लगाया था। नेहरू जी उनके अध्यक्ष थे। झंडा बीच में लटक गया। ऊपर पूरा नहीं जा सका और इतना ऊंचा चढ़कर उसको सुलझाने का साहस किसी का न था।एक तरुण भीड़ में से दौड़ा और सटासट उस खंभे पर चढ़ गया। उसने रस्सियों की गुत्थी सुलझाने, ध्वज को ऊपर पहुंचा कर नीचे आ गया।तो स्वाभाविक लोगों ने उसको कंधों पर उठा लिया और नेहरू जी के पास लेकर गए , नेहरू जी ने उसकी पीठ थपथपाई और कहा कि तुम शाम को खुले अधिवेशन में आओ,तुम्हारा अभिनंदन करेंगे लेकिन फिर कुछ नेता आए और कहा कि उसको मत बुलाओ,वह शाखा में जाता है। जलगांव में फैजपुर के रहने वाले श्री किशन सिंह राजपूत वह स्वयं सेवक थे। डा हेडगेवार को पता चला तो वे प्रवास करके गए । उन्होंने उनको एक छोटा सा चांदी का लोटा पुरस्कार के रूप में भेंटकर उसका अभिनंदन किया।'

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