बाज़ारवाद के इस दौर में क्या ग्राहक वाकई राजा है?

Continue Readingबाज़ारवाद के इस दौर में क्या ग्राहक वाकई राजा है?

आज हम जिस दौर में जी रहे हैं वो है बाज़ारवाद और उपभोक्तावाद का दौर। अब पहला प्रश्न यह कि इसका क्या मतलब हुआ? परिभाषा के हिसाब से यदि इसका अर्थ किया जाए तो वो ये होगा कि आज उपभोक्ता (यानी किसी भी वस्तु का उपयोग करने वाला) ही राजा…

जागरूक उपभोक्ता ही है विकास का प्रतीक

Continue Readingजागरूक उपभोक्ता ही है विकास का प्रतीक

अर्थ चिंतन की पूंजीवादी अवधारणा में यह स्वीकार्य था कि समाज में उपभोक्ता ही राजा होते हैं क्योंकि इनकी रूचि, पसंद और मांग ही पूरी अर्थव्यवस्था की दिशा तय करने में निर्णायक होती है। इस स्थिति को अमेरिका के विलियम हेराल्ड हट ने पहली बार 'उपभोक्ता की सार्वभौमिकता' शब्द से…

End of content

No more pages to load