वायु प्रदूषण का आपातकाल

देश की राजधानी दिल्ली का जहरीले धुएं और धुंध से दम घुटता जा रहा है। यह केवल दिल्ली की ही नहीं, अन्य नगरों की भी समस्या है। वायु प्रदूषण कुलीन लोगों की सुविधा, लाचार किसानों की मजबूरी और कारखानों में काम कर रहे लोगों की आजीविका से जुड़ा मुद्दा भी है। इसलिए इस समस्या का हल एकांगी के बजाय बहुआयामी उपायों से ही संभव हो सकता है।
सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण को आपातकाल की संज्ञा दी है। साथ ही दिल्ली, हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश की राज्य सरकारों को नोटिस जारी कर पूछा है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास प्रदूषण का स्तर चिंताजनक है, इससे निपटने के लिए इन राज्यों की सरकारें क्या पहल कर रही हैं? इस समय दिल्ली में पराली जलाए जाने, वाहनों की बढ़ती संख्या और कारखानों की चिमनियों से धुंआ उगलने के कारण दिल्ली के ऊपर जहरीले धुंए की चादर बिछ गई है, जो दिखाई तो सबको दे रहा है, लेकिन इससे निपटने का कारगर उपाय किसी के पास दिखाई नहीं दे रहा है। क्योंकि वायु प्रदूषण कुलीन लोगों की सुविधा, लाचार किसानों की मजबूरी और कारखानों में काम कर रहे लोगों की आजीविका से जुड़ा मुद्दा भी है। इसलिए इस समस्या का हल एकांगी उपायों के बजाय बहुआयामी उपायों से ही संभव हो सकता है।
दिल्ली ही नहीं देश में बढ़ते वायु प्रदूषण को लेकर रोज नए सर्वे आ रहे हैं। इनमें कौन सा सर्वे कितना विश्वसनीय है, एकाएक कुछ कहा नहीं जा सकता है। लेकिन इन सर्वेक्षणों ने दिल्ली समेत पूरे देश में वायु प्रदूषण की भयावहता को सामने ला दिया है। इस प्रदूषण को देश में कुल बीमारियों से जो मौतें हो रही हैं, उनमें से ११ फीसदी की वजह वायु प्रदूषण माना गया है। मानव जीवन की उम्र के बहुमूल्य वर्ष कम करने के लिए भी इस प्रदूषण को एक बड़ा कारक माना गया है। यह सर्वे केंद्र सरकार ने भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद और गैर सरकारी संगठन ‘हेल्थ ऑफ द नेशन्स स्टेट्स‘ के साथ मिलकर किया है। इसके अनुसार राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में वायु प्रदूषण से पीड़ित जो एक लाख मरीज अस्पतालों में पहुंचते हैं, उनमें से ३४६९, राजस्थान में ४५२८, उत्तर प्रदेश में ४३९०, मध्य प्रदेश में ३८०९, और छत्तीसगढ़ में ३६६७ रोगियों की मृत्यु हो जाती है।
वायु प्रदूषण के जरिए भारतीयों की औसत आयु में ३.४ वर्ष कम हो रहे हैं। इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ ट्रोपिकल मेट्रोलॉजी और नेशनल सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक रिसर्च, कोलाराडो की रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में व्यक्ति की उम्र कम होने का असर सबसे ज्यादा है। यहां ६.३ वर्ष उम्र कम हो रही है। दिल्ली के बाद बिहार में ५.७, झारखंड में ५.२, उत्तर प्रदेश में ४.८, हरियाणा-पंजाब में ४.७, छत्तीसगढ़ में ४.१, असम में ४.४, त्रिपुरा में ३.९, मेघालय में ३.८ और महाराष्ट्र में ३.३ की दर से उम्र कम हो रही है। कश्मीर में केवल ६ महीने की उम्र कम होती है, वहीं हिमाचल में उम्र कम होने का आंकड़ा १४ महीने का है। देश में अब तक अलग-अलग बीमारियों के कारणों की पड़ताल की जाती रही है, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर सभी राज्यों और सभी प्रमुख बीमारियों को शामिल करने वाला यह पहला अध्ययन है। इस अध्ययन के निष्कर्षों के बाद अब केंद्र एवं राज्य सरकारों का दायित्व बनता है कि वे इस अध्ययन के अनुरूप विकास योजनाएं बनाएं और जो नीतियां तय करें उन्हें सख्ती से अमल में लाए।
इन देशव्यापी अध्ययनों से स्पष्ट हुआ है कि दिल्ली में धुंआ और धुंध के जो बादल गहराए हुए हैं, उनका प्रमुख कारण पराली को जलाया जाना नहीं है। अकेले पंजाब में करीब २ करोड़ टन धान की पराली निकलती हैं। इन अवशेषों को ठिकाने लगाने के लिए ही दो हजार करोड़ रुपए से अधिक की रकम की जरूरत पड़ेगी। साफ है, पराली की समस्या से निजात पाना राज्य सरकारों के लिए आसान नहीं है। हां, इस समस्या का हल गेहूं और धान से इतर अन्य फसलों के उगाने से हो सकता है, लेकिन इसके लिए किसानों को प्रोत्साहित करना होगा। उन्हें बहुफसलीय खेती के लिए अनुदान भी देना होगा। किसानों के साथ इस तरह के व्यावहारिक विकल्प अपनाए जाते हैं तो उनकी आजीविका भी सुरक्षित रहेगी और दिल्ली एक हद तक पराली के धुंए से बची रहेगी।
दिल्ली में इस वक्त वायुमंडल में मानक पैमाने से २५० गुना ज्यादा प्रदूषक तत्वों की संख्या बढ़ गई है। इस वजह से लोगों में गला, फेफ़ड़े और आंखों की तकलीफ बढ़ रही है। कई लोग मानसिक अवसाद की गिरफ्त में भी आ रहे हैं। हालांकि हवा में घुलता जहर महानगरों में ही नहीं छोटे नगरों में भी प्रदूषण का सबब बन रहा है। हकीकत में इसे कार-बाजार ने ज्यादा भयावह बनाया है। २०१५ में जब केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने मध्य प्रदेश के ग्वालियर को भारत के ११ शहरों में सबसे प्रदूषित शहर बताया था तब लोग चौंक गए थे कि १० लाख की आबादी वाले ग्वालियर की यह स्थिति है तो इससे ऊपर की आबादी वाले शहरों की क्या स्थिति होगी? ग्वालियर की तरह ही दिल्ली, मुंबई, पुणे, कोलकाता, लखनऊ, कानपुर, अमृतसर, इंदौर और अहमदाबाद जैसे शहरों में प्रदूषण खतरनाक स्तर की सीमा लांघने को तत्पर है। उद्योगों से धुंआ उगलने और खेतों में बड़े पैमाने पर औद्योगिक व इलेक्ट्रॉनिक कचरा जलाने से भी इन नगरों की हवा में जहरीले तत्वों की सघनता बढ़ी है। इस कारण दिल्ली दुनिया के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में शामिल है। वैसे भी दुनिया के जो २० सर्वाधिक प्रदूषित शहर हैं, उनमें भारत के १३ शहर शामिल हैं।
बढ़ते वाहनों के चलते वायु प्रदूषण की समस्या दिल्ली में ही नहीं पूरे देश में भयावह होती जा रही है। मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ के लगभग सभी छोटे शहर प्रदूषण की चपेट में हैं। डीजल व घासलेट से चलने वाले वाहनों व सिंचाई पंपों ने इस समस्या को और विकराल रूप दे दिया है। केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड देश के १२१ शहरों में वायु प्रदूषण का आकलन करता है। इसकी एक रिपोर्ट के मुताबिक देवास, कोझिकोड व तिरुपति को अपवाद स्वरूप छोड़कर बाकी सभी शहरों में प्रदूषण एक बड़ी समस्या के रूप में अवतरित हो रहा है। इस प्रदूषण की मुख्य वजह तथाकथित वाहन क्रांति है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का दावा है कि डीजल और कैरोसिन से पैदा होने वाले प्रदूषण से ही दिल्ली में एक तिहाई बच्चे सांस की बीमारी की गिरफ्त में हैं। २० फीसदी बच्चे मधुमेह जैसी लाइलाज बीमारी की चपेट में हैं। इस खतरनाक हालात से रुबरू होने के बावजूद दिल्ली व अन्य राज्य सरकारें ऐसी नीतियां अपना रही हैं, जिससे प्रदूषण को नियंत्रित किए बिना औद्योगिक विकास को प्रोत्साहन मिलता रहे। इस नाते दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश की सरकारों को नोटिस जारी कर यह पूछना तार्किक है कि वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए क्या उपाय अपनाए जा रहे हैं।

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