संगीत क्षेत्र का दीपस्तंभ!

स्वामी विवेकानंद के कथन के अनुसार ‘कला निरंतर सृजनशील ही होती है। ’ मनुष्य का अन्य कलाओं की अपेक्षा संगीत कला के साथ नजदीक का रिश्ता है। संगीत दो प्रकार का होता है – कव्यसंगीत तथा वाद्यों पर बजाया जानेवाला संगीत। संगीत में गीतगायन, वाद्य वादन एवं नृत्य इन तीन कलाओं का समावेश होता है।

रतीय संस्कृति का एकात्म रुप अर्थात ‘संस्कार भारती ‘! साहित्य, नृत्य, नाट्य, चित्रकला, शिल्पकला, संगीत, प्राचीन, कला आदि ललित कलाओं को आश्रय देनेवाला और साथ ही कलाकरों का संगडन करनेवाला यह अखिल भारतीय संगडन है। इन सभी कलाओं में संगीत कला अग्रसर हुई है, उसमें कोई संदेह नहीं। स्वामी विवेकानंद के कथन के अनुसार ‘कला निरंतर सृजनशील ही होती है। ’ मनुष्य का अन्य कलाओं की अपेक्षा संगीत कला के साथ नजदीक का रिश्ता है। संगीत दो प्रकार का होता है – कव्यसंगीत तथा वाद्यों पर बजाया जानेवाला संगीत। संगीत में गीतगायन, वाद्य वादन एवं नृत्य इन तीन कलाओं का समावेश होता है। गीतगायन के साथ ही वाद्यवादन करते समय कलाकार अपने मन में गाता रहता है तथा नर्तक भी नृत्य करते समय मुख से गीत गाते अपनी देहबोली द्वारा गीत का स्पष्टीकरण ही सादर करता है। ऐसा होने पर भी संस्कार भारती ने इसमें से नृत्यकला का स्वतंत्र विभाग बनाया है और संगीत का स्वतंत्र।

मासिक संगीत साधना

शब्दप्रधान, गायकी अर्थात भावसंगीत। उसमें भावों का प्रगटीकरण होता है। ऐसे भावगीतोंद्वारा बहुत सारे रिश्तों का अनुभूतियों का आस्वाद रसिक कर सकते हैं। भावगीत यह गीतकार, संगीतकार, गायक तथा वादक इनका सम्मिलित अविष्कार होता है। शास्त्रीय संगीत के साथ उन भावगीतों की मेहफिलों का आनंद रसिकगण लूट सके, इस उद्देश्य से संस्कार भारती ‘मासिक संगीत साधना ‘ इस नि :शुल्क मासिक उपक्रम का आयोजन सारे देश में कर रही है और वह भी पिछले २५ -३० बरस अविश्त तथा सफलतापूर्वक संपन्न हो रहा है। उसमें से कितने ही कलासाधक आगे बढ पाये हैं।

संस्कार भारती के कार्य का पुणे में शुभारंभ ही पंडित जितेंद्र अभिषेकी की अध्यक्षता में तीन दिवसीय संगीत मार्गदर्शन कार्यशाला का आयोजन किया गया था। उस अवसर पर भारतरत्न पंडित भीमसेन जोशी प्रमुख अतिथि के रूप में उपस्थित थे।

इसी प्रकार का अभिनव कार्यक्रम अर्थात गुरू -शिष्य परम्परा पर आधारित ‘अनुग्रह ’ संगीत महोत्सव का आयोजन। इसमे छह गुरुओं का अपने शिष्यों की संगत में एक अनोखा कलाविष्कार सादर हुआ। महोत्सव का उद्घाटन सुविख्यात संतूर वादक पं . शिवकुमार शर्मा के हाथों हुआ। महोत्सव में पुणे शहर में से संगीत विद्यालयों में अध्ययन करनेवाले तथा नवोदित कलाकार सहभागी हुए थे।

सामाजिक प्रतिबद्धता

हालांकि यह संगडन कलाक्षेत्र में कार्यरत है फिर भी प्राकृतिक आपदाग्रस्त पीडितों की सहायता में उसने हमेशा ही सहायता का हाथ बढाया है। महाराष्ट्र में किल्लारी में हुए भूंकप के पश्चात् वहॉं के पीडित बच्चों को कला के माध्यम से आनंद की अनुभूति कराई है। उसी तरह पिछले साल अकालग्रस्त गॉंवों के लोगों की सहायता हेतु ‘स्वररंग ‘ नामक संगीत मेहफिल का आयोजन किया गया था। कार्यक्रम के द्वारा जमा राशि में कलाकारों ने स्वयं अपनी राशि जोडकर, वह निधि जनकल्याण समिति को सौपी।

स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर रचित ‘ ने मजसी ने, परत मातृभूमीला, सागरा प्राण तलमलला ’ इस अजरामर गीत की शताब्दी के अवसर पर स्वाधीनता के संस्मरण करानेवाला ‘तेजोनिधि सावरकर ’ कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया।

सार्ध्द शती समारोह

स्वामी विवेकानंद की १५० वीं जयंति के उपलक्ष्य में अगस्त २०१३ में पश्चिम महाराष्ट्र प्रांत स्तर निबंध प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। १०, ००० विद्यार्थी उसमें सहभागी बने। प्रतियोगिता के पुरस्कार वितरण समारोह में स्वामी विवेकानंद के संगीत विषयक योगदान की स्मृति के रूप में स्वामी विवेकानंद ने गायनाचार्य रामकृष्णबुवा वझेजी को सौंपी हुई चीजों का सुश्री श्रुति वझे ने गायन किया।

नववर्षस्वागत

कार्यक्रमों की विशेषता ही ‘संस्कारभारती ’ की असली पहचान है। नूतनवर्ष का स्वागत प्रसन्न वायुमंडल में, समुधर स्वरों में करने की कल्पना उसी में से उभरी और वर्षप्रतिपदा कुछ अनोखे ही ढंग से मनाने का आरंभ हुआ।

समूहगान

स्वामी विवेकानंद सांधिक गायन का महत्त्व बताते हुए कहते हैं, ‘‘विद्यार्थिओं का व्यक्तित्व निर्माण करने में संगीत का बडा भारी हिस्सा होता है। इसलिए भावनाओं का आव्हान करनेवाले संगीत की अपेक्षा, वीररस जागृत करनेवाले समर्थ समूहगानपर बल देना चाहिए। तुरटी, डंका, नगाडे आदि की घनगंभीर ध्वनियॉं बच्चों के कानों पर बरसने दीजिए। वैदिक छंदों के नादद्वारा देश में प्राणसंचार कराना चाहिए। संगीत के लिए वैदिक ऋचाओं का प्रयोग करने से, उनका सामूहिक गायन करने से, शिथिल हुए हिंदू राष्ट्र को संजीवन प्राप्त होगा। ’’ ये विचार स्वाधीनतापूर्व काल में व्यक्त हुए हैं, फिर भी उस में निहित भाव आज भी राष्ट्र निर्माण के प्रयासों में सुसंगत दिखाई देते हैं।

लोकगीत

लोककलाओं की धरोहर हर एक प्रांत में पाई जाती है। यहॉं कितने ही प्रकार की जातियॉं, धर्म, भाषाएँ, पंथ के लोग रहते हैं। उनके विभिन्न रीति -रिवाज, त्यौहार, लोकजीवन, संगीत, नृत्य आदि का मनोहरी संगम लोककला महोत्सव में पाया जाता है।

राष्ट्रीय संगीत महोत्सव

राष्ट्रीय स्तर पर संगीत महोत्सव आयोजित करके संस्कार भारती कलाकारों को उनके राज्यों के बाहर भी मंच उपलब्ध कराती है। विभिन्न घरानों में सुविख्याात मान्यवर कलाकारों की प्रस्तुति सारे भारत में संपन्न होनेवाले संगीत महोत्सव के स्तर की ही होती है। बैजूबावरा संगीत महोत्सव, म्हैसुर महोत्सव, मंगलोर महोत्सव, भोपाल महोत्सव, ये राष्ट्रीय महोत्सव के कुछ उदाहरण हैं।

कला साधक संगम

कला साधक संगम यह सभी कला प्रकारों के रसिक एवं कलाकारों का सम्मेलन होता है। उसमें विभिन्न कलाओं और संस्कृतियों का संगम होता है। उसका आयोजन जिला, प्रांत एवं अखिल भारतीय स्तरों पर किया जाता है।

इतिहास की आवृत्ति एवं स्मरण करानेवाले विशेष कार्यक्रम

वैभवसंपन्न सम्राट श्री कृष्ण देवराय के राज्यारोहण के ५०० वर्ष पूरे हुए। इस उपलक्ष्य में जनवरी २०१० में हम्पी महोत्सव संपन्न हुआ। विभिन्न सुंदर मंदिरों की प्रतिकृतिवाले २०० फीट लंबे रंगमंच पर श्रीलंका, उडीसा तथा माणिपूरी कला प्रस्तुति के अतिरिक्त पं . जसराज, अभिनेत्री हेमामालिनी, मालिनीशंकर आदि की भी कला प्रस्तुति हुई।

नमन १८५७

सन १८५७ के स्वाधीनता संग्राम को १५० वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर संस्कार भारती के संगीत विभाग ने ‘विप्लव राग गीतमाला ’ शीर्षक की मालिका सीडी के रुप में प्रकाशित की। उसकी विशेषता यह थी कि इसमेम ऐसे गीतों का समावेश था जिन पर अंग्रेज सरकार ने प्रतिबंध लगाया था।

सरहद को स्वरांजलि

अरुणाचल प्रदेश के इटानगर में नवंबर २०१३ में ‘सरहद को स्वरांजलि ’ शीर्षक से एक विशेष कार्यक्रम संस्कार भारती द्वारा प्रस्तुत हुआ। सन १९६२ के युद्ध में भारतीय सैनिकों ने चीनी सैनिकों से संघर्ष किया। इसमें ३१०५ जवान शहीद हुए। देश की रक्षा करनेवाले इन वीरों को ‘सरहद को स्वराजंली ’ इस भावपूर्ण कार्यक्रमद्वारा आदरांजली अर्पण की गई।

संस्थागत रचना के अनुसार संस्कार भारती के अखिल भारत में ११ क्षेत्र, ४३ प्रांत, १५०० समितियॉं, १३०० संपर्कित स्थान है।

कलाक्षेत्र में संगडन यह एक कुछ जटिल मामला होता है। परंतू महानुभावों का मार्गदर्शन और रसिकजनोंका आधार ऐसे डोस समर्थन के आधार पर ‘संस्कार भारती ’ का मार्गक्रमण होता रहेगा तथा भविष्य में भी इस क्षेत्र में ‘संस्कार भारती ’ दीपस्तंभ के समान मार्गदर्शक के रूप में बनी रहेगी।

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