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फांसी में देरी क्यों?

फांसी में देरी क्यों?

by एड. जे .पी मिश्रा
in मार्च २०२० - सुरक्षित महिला विशेषांक, सामाजिक
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निर्भया मामले में फांसी की सजा टालमटोल करने में दोषी इसलिए सफल हो रहे हैं क्योंकि हमारी न्याय प्रक्रिया में दोष है और भविष्य के लिए उसे दुरुस्त करना आवश्यक है।

निर्भया के साथ जो दुष्कर्म हुआ एवं बाद में उसे जिस निर्दयता से मार डाला गया और इस घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। देश की सोयी चेतना को भी जगा दिया। करुणा भी कांपने लगी। ऐसे अपराध करने वालों को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा फांसी की सजा सुनाई जाती है। अर्थात निर्भया के अपराधी केवल आरोपी नहीं रहे बल्कि न्यायालय द्वारा अपराधी घोषित कर उन्हें होने वाली सजा का भी ऐलान कर दिया गया कि अपराधियों को फांसी दी जाए। बावजूद इसके फांसी नहीं हो पा रही है। फांसी का दिन निश्चित होता है और टल जाता है। फिर दिन निश्चित होता है और पुन: टल जाता है और अब तो सवाल यह है कि फांसी कब होगी?

समाचार पत्रों में निर्भया के दोषियों को फांसी के बारे में पढ़ कर, फिल्म ‘दामिनी’ का वह डायलोग ‘तारीख पे तारीख, तारीख पे तारीख’ याद आता है। आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? इस बात को समझने के लिए कुछ मूलभूत विषयों को समझना आवश्यक है।

चारों दोषियों को सर्वोच्च न्यायालय के फैसलें के बाद राष्ट्रपति के यहां दया याचिका लगाने का अधिकार है। दया याचिका ख़ारिज हो गई तो फिर
सर्वोच्च न्यायालय में याचिका कि राष्ट्रपति का निर्णय सही है या गलत। फिर क्यूरेटिव पीटीशन अर्थात न्याय प्रक्रिया या निर्णय में दोष है तो उसे दुरुस्त किया जाए। फांसी की सजा पाने वाले चार लोग हैं और वे लोग एक साथ सभी प्रावधानों का उपयोग अपनी रक्षा के लिए करे, ऐसा कोई क़ानूनी नियम नहीं है और वे लोग इसी का दुरूपयोग कर रहे हैं। एक दोषी अपने प्रदत्त अधिकारों का उपयोग कर लेता है तो दूसरा उन्ही प्रदत्त अधिकारों का उपयोग करता है। इस तरह न्यायालय के निर्णय का उपहास उड़ाया जा रहा है।

कई लोग ऐसा कह सकते हैं कि जिस दोषी ने अपने सभी प्रदत्त अधिकारों का उपयोग कर लिया है, उसे तो फांसी दो, लेकिन ऐसा करना कई दृष्टि से उचित नहीं होगा-

1) ऐसा मान लो कि यदि दो या तीन को फांसी हो गई और चौथे की दया याचिका या क्यूरेटिव याचिका मंजूर हो गई और उसकी सजा, आजीवन कारावास में बदल गई तो फिर प्रश्न खड़ा होगा कि उन तीनों को फांसी देना गलत था।

2) दूसरी बात यह है कि चारों दोषियों ने एकमत से, एक हेतु से अपराध किया है, अत: चारों को एक ही सजा होनी चाहिए। एक को फांसी आज और दूसरे की कल, ऐसा करने से भेदभाव परिलक्षित होगा।

3) तिहाड़ जेल / दिल्ली पुलिस के जेल मैनुयल के अनुसार एक केस के दोषियों को एक साथ सजा होगी। ऐसी परिस्थिति में जब तक सभी दोषी अपने प्रदत्त अधिकारों का उपयोग नहीं कर लेते, तब तक फांसी की प्रक्रिया टालना पड़ेगा।

फांसी की सजा टालमटोल करने में दोषी इसलिए सफल हो रहे हैं क्योंकि हमारी न्याय प्रक्रिया में दोष है और भविष्य के लिए उसे दुरुस्त करना आवश्यक है। सबसे पहले यह नियम बने कि फांसी की सजा पाने वाले को एक निश्चित अवधि के अंदर दया याचिका, क्यूरेटिव याचिका आदि करना अनिवार्य होगा अन्यथा उसकी याचिका अमान्य होगी। दूसरा नियम यह बने कि सर्वोच्च न्यायालय के फांसी की सजा की पुष्टि के बाद नियत समय में फांसी होगी और उस अवधि के 15 दिन पहले दोषी अपने सभी प्रदत्त अधिकारों का उपयोग करेंगे अन्यथा उन्हें उन अधिकारों का उपयोग करने का अधिकार नहीं रहेगा।

निर्भया केस के दोषियों की क़ानूनी पैंतरेबाजी को देखते हुए नए उचित नियम बनाने की आवश्यकता है। जिससे इस तरह की पैतरेबाजी फिर न हो सके और न्याय हो रहा है ऐसा दिखाई दे जिससे सामान्य के मन में न्याय के प्रति आस्था बनी रहे।

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