केजरीवाल जीते नहीं, जिताए गए!

केजरीवाल को जिताने में कांग्रेस, शहरी नक्सली और वामपंथी सफल रहे हैं। मीडिया और मुसलमान भी आप के पक्ष में चले गए। ऐसे कई कारण गिनाए जा सकते हैं। भाजपा को अब उसकी रणनीति पर मंथन करना होगा।

दिल्ली में हाल ही में संपन्न हुए राज्य के चुनाव में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपना किला बचाने में सफल रहे। उनके 70 में से 62 विधायक जीते हैं और वह एक बार फिर दिल्ली की सत्ता पर राज करने के लिए तैयार हैं। हालांकि लोगों का मानना है कि यह चुनाव अरविंद केजरीवाल के काम पर जीता गया है; जबकि मेरा मानना है कि अरविंद केजरीवाल यह चुनाव बड़ी मुश्किल से जीत रहे थे और उन्हें अंतिम क्षणों में यह चुनाव जिताया गया है।

इसके पीछे कई कारण हैं-

पहला कारण कांग्रेस-

पहला कारण यह है कि कांग्रेस ने इस चुनाव में बिल्कुल भी दिलचस्पी नहीं ली। पिछली बार उन्हें 2015 में हुए चुनाव में करीब 9.50 प्रतिशत वोट मिले थे; जबकि इस बार उन्हें चार प्रतिशत से कुछ ज्यादा वोट मिले हैं। जो यह दर्शाता है कि कांग्रेस ने इस चुनाव में बिल्कुल भी रूचि नहीं ली हैं बल्कि उन्होंने अपने वोट शेयर को आम आदमी पार्टी को वोट करने के लिए प्रेरित किया। इसके चलते दिल्ली में 90% से ज्यादा वोट आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी को मिले हैं। जो यह दर्शाता है कि मात्र 7 वर्षों में दिल्ली से न सिर्फ कांग्रेस पार्टी का सूपड़ा साफ हो गया है बल्कि कांग्रेस का जनाधार पूरी तरीके से आम आदमी पार्टी के पक्ष में चला गया है। वहीं इस बार आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के कई नेताओं को टिकट दिया। जिनमें से पांच भूतपूर्व कांग्रेसी आम आदमी पार्टी के टिकट पर चुनाव जीत कर इस बार विधायक बने हैं। इसके चलते भी अरविंद केजरीवाल इस चुनाव को जीतने में सफल हुए।

दूसरा कारण शहरी नक्सलियों और वामपंथियों का ‘आप’ को समर्थन-

इस चुनाव में अरविंद केजरीवाल ने शहरी नक्सलियों और वामपंथियों की दिल्ली की टीम को पूरी तरह से सक्रिय कर लाभ लिया और उनका पूरा फायदा उठाते हुए इन लोगों ने अरविंद केजरीवाल के पक्ष में हवा बनाई और उन्हें दिल्ली की सत्ता तक पहुंचने में बहुत बड़ा योगदान दिया। इनके कारण ही अरविंद केजरीवाल दिल्ली का चुनाव जीतने में सफल हुए। इसका उदाहरण जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में फिल्म अभिनेत्री दीपिका पादुकोण का जाना है। उनके जाने से दिल्ली में रह रहा पढ़ा-लिखा वर्ग और प्रबुद्ध वर्ग भाजपा से दूर हो गया। शहरी नक्सलियों ने ऐसी हवा बनाई कि लोगों को ऐसा लगा कि भारतीय जनता पार्टी दिल्ली में सही राजनीति नहीं कर रही है। जबकि भारतीय जनता पार्टी की प्रदेश कार्यकारिणी लोगों के मन में यह बैठाने में विफल रही कि जेएनयू के गुंडों ने एबीवीपी के कार्यकर्ताओं से पहले मारपीट की थी। दीपिका पादुकोण के जेएनयू में जाने के चलते इसके उलट ऐसा प्रतीत हुआ कि एबीवीपी के कार्यकर्ताओं ने जेएनयू के छात्रों से मारपीट की है। इसका भी लाभ आम आदमी पार्टी को मिला।

तीसरा कारण – मीडिया में पैसे के दम पर धुंआधार प्रचार

आम आदमी पार्टी ने मीडिया में पैसे के दम पर अपनी ब्रांडिंग और प्रमोशन में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। मीडिया के एक बड़े वर्ग को पैसे के माध्यम से अपनी ओर कर रखा था। जिसके चलते हर प्राइम टाइम डिबेट में या तो आम आदमी पार्टी के नेताओं को ज्यादा बोलने का अवसर मिलता था या भारतीय जनता पार्टी के विरोध में बोलने वालों को टीवी पर दिखाया जाता था। इसके चलते भी जो परिदृश्य बना वह भारतीय जनता पार्टी के विपक्ष में गया और दिल्ली की प्रदेश कार्यकारिणी इस बारे में कुछ नहीं कर पाई। इसके चलते भी मीडिया का एक बड़ा धड़ा पैसे लेकर आम आदमी पार्टी के पक्ष में हवा बनाने में सफल रहा और आम आदमी पार्टी के सर्वेसर्वा अरविंद केजरीवाल को दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाने में सफल रहा।

चौथा कारण- मुसलमानों का एक तरफा केजरीवाल को वोट करना

जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी और शाहीन बाग के कारण दिल्ली के मुसलमानों ने एकतरफा वोट किया और उन्होंने केजरीवाल को भारी मतों से विजयी बनाया। इसके पीछे शाहीन बाग और जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में हुई हिंसक घटनाएं भी हैं। केजरीवाल का इन्हें अप्रत्यक्ष तौर पर समर्थन था। इस बात को समझते हुए मुसलमानों ने केजरीवाल को बंपर वोटिंग की और यह केजरीवाल की जीत का एक बहुत बड़ा कारण बना।

पांचवां कारण- मनोज तिवारी की नाचने गाने वाली कलाकार की छवि

मनोज तिवारी की नाचने-गाने वाले कलाकार की छवि भी आम आदमी पार्टी को दिल्ली चुनाव जिताने में कारगर साबित हुई। गौरतलब है कि अन्ना हजारे के जन लोकपाल विधेयक के आंदोलन और भ्रष्टाचार को खत्म करने के आंदोलन का चेहरा बने थे अरविंद केजरीवाल। इसके चलते उनकी छवि एक साफ-सुथरे और पढ़े लिखे व्यक्ति के तौर पर है। जबकि मनोज तिवारी की छवि एक गायक और कलाकार के तौर पर है। मनोज तिवारी ने पिछले 5 वर्षों में इस छवि को तोड़ने का कभी कोई प्रयत्न भी नहीं किया। वह इसी छवि के साथ नजर आए जो इनके विरुद्ध गया। आम आदमी पार्टी ने दिल्लीवासियों के मन में इस प्रश्न को खड़ा कर दोनों की एक तुलना करवाई, जिसके चलते भी आम आदमी पार्टी को लाभ हुआ।

छठा कारण- चुनावी वर्ष में लोक-लुभावन घोषणाएं

दिल्ली में एक बहुत बड़ा धड़ा गरीब है, जो बिहार और उत्तर प्रदेश के मजदूरों का है। उनकी दुखती रग को समझते हुए आम आदमी पार्टी ने चुनावी वर्ष में बिजली पानी निशुल्क देने के अलावा सरकारी स्कूलों और अस्पतालों में दिखावटी काम किया और इस लालच में यह वर्ग बड़ी आसानी से फंस गया। इस वर्ग ने भी दिल्ली के चुनाव में अरविंद केजरीवाल को जिताने में बड़ी भूमिका निभाई। दिल्ली भाजपा की प्रदेश कार्यकारिणी यह बात समझने में विफल रही। हालांकि उन्होंने प्रचंड परिश्रम किया था और एक समय ऐसा लगने लगा था कि केजरीवाल यह चुनाव हार सकते हैं। इसी के चलते केजरीवाल की टीम ईवीएम हैक होने की बात कहने लगी थी।

इन सबके चलते मेरा मानना है कि अरविंद केजरीवाल चुनाव जीते नहीं हैं बल्कि जिताए गए हैं। अब अगले 5 वर्षों तक फिर चुनाव आने की प्रतीक्षा करने के बजाय दिल्ली भाजपा की प्रदेश कार्यकारिणी को चाहिए कि वह आत्म मंथन करें और अभी से चुनाव की तैयारियों में जुट जाए। जैसा केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी से चुनाव हारने के बाद किया था और 2019 में उन्होंने राहुल गांधी को उन्हीं के गढ़ में हराया है। कुछ इसी प्रकार का काम दिल्ली भाजपा की प्रदेश कार्यकारिणी को करना होगा। तभी वह अरविंद केजरीवाल को धूल चटाने में सफल हो पाएंगे।

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  1. Anonymous

    Bilkul sahi bat hai.

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