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एक नया रक्तबिंदु राक्षस

एक नया रक्तबिंदु राक्षस

by मल्हार कृष्ण गोखले
in जुलाई -२०१५, सामाजिक
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आई.एस.आई.एस.
इतिहास, विकास और
समकालीन चुनौती
लेखक : मनमोहन शर्मा
प्रकाशक : भारत नीति प्रतिष्ठान,
नई दिल्ली
पृष्ठ : ११६, मूल्य : १५० रुपये

हमारे पुराणों में रक्तबिंदु नामक राक्षस का वर्णन आता है। देव-असुर संग्राम के बीच जब देव इस रक्तबिंदु राक्षस को मारने का प्रयास करते हैं, तब वह मरता तो नहीं, बल्कि उसके रक्त की एक-एक बिंदु से एक नया राक्षस जन्म लेता है। राक्षसों की एक पूरी नई टोली विकट हास्य करते हुए देवों पर टूट पड़ती है।

आइ.एस.आई.एस. यानी ‘इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एण्ड सीरिया’ इस नए आतंकवादी संगठन ने वैश्विक रंगमंच पर इस तरह धूम मचा दी है, कि विश्व चिंतित और भयकंपित है।

 

मुस्लिम ब्रदरहुड, पैलेस्टिनी लिबरेशन ऑर्गनायजेशन, तालिबान, अल कायदा आदि इस्लामी आतंकवादी संगठनों ने पिछले साठ-सत्तर वर्षों से विश्वभर में तबाही मचा रखी है। अब इन सभी से ज्यादा खतरनाक ज्यादा कट्टरवादी संगठन आई.एस.आई.एस. के रूप में अवतीर्ण हुआ है।

आई.एस.आई.एस. के आद्याक्षरों में यद्यपि केवल इराक और सीरिया का उल्लेख है; वह अपने खिलाफत राज्य के नक्शे में भारत, ईरान, सऊदी अरेबिया सहित संपूर्ण उत्तर अफ्रीका तथा यूरोप में तुर्कस्तान और स्पेन, पुर्तुगाल भी दिखा रहा है। अर्थात, इस्लामी खिलाफत के वैभव काल में विश्व के जितने देश इस्लामी वर्चस्व में थे, उन सारे देशों पर कब्जा करने की आइ.एस.आई.एस. की मंशा है।

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने हाल ही में बयान दिया है कि, आई.एस.आई.एस. को नष्ट करने के लिए तीन साल लग सकते हैं। २००३ से अमेरिका तालिबान और अल कायदा के विरोध में लड़ ही रही है। परंतु अफगानिस्तान तथा इराक में वह शांति और सुव्यवस्था ला पाई है ऐसी स्थिति नहीं है। और अब वह आई.एस.आई.एस. को खत्म करने की बात कर रही है।
यह सब क्या चल रहा है? विश्व का सबसे शक्तिशाली देश, एकमात्र महासत्ता अमेरिका इस्लामी आतंकवाद से निपटने में असफल हो रहा है। सऊदी अरेबिया इस्लाम की जन्मभूमि है। वहां सुन्नी वहाबी इस्लामपंथी लोग ही सत्ता में हैं। परंतु आई.एस.आई.एस. वाले आतंकवादी इतने अधिक कट्टरपंथी सुन्नी हैं कि, वे सऊदी राजा को भी सत्ता से दूर करना चाहते हैं। बाकी शिया, कादियानी, अहमदिया, यज़दी आदि पंथों को तो वे इस्लामी मानते ही नहीं हैं।

कोई भी घटना अचानक नहीं घटती। उसके पीछे एक कारण परंपरा रहती है। प्रथम विश्वयुद्ध १९१४ से १९१८ तक चला। जिस में ब्रिटेन-फ्रांस-अमेरिका जीत गए तथा जर्मनी और उसका मित्र तुर्कस्तान हार गए। विश्व के मुसलमानों का एकमात्र साम्राज्य, तुर्कस्तान का उस्मानी साम्राज्य पराजित हुआ और टूट-टूट कर बिखर गया। वहीं से इस्लामी आतंकवाद की त्रासदी शुरू हो गई।

नई दिल्ली स्थित ‘भारत नीति प्रतिष्ठान’ एक ऐसी अध्ययन संस्था है जहां विविध विषयों पर गहरा अध्ययन किया जाता है। शोध निबंध लिखे-पढे जाते हैं। उन पर विचार विमर्श होता है। भारत में तथा विश्व में ऐसी कई संस्थाएं हैं, जहां ऐसा ही काम चलता है। पर प्राय: वह काम विद्वानों का विद्वानों के लिए किया गया काम ही बन जाता है। उस अध्ययन की जानकारी, निष्कर्ष आम आदमी तक पहुंचते ही नहीं। भारत नीति प्रतिष्ठान अपने अध्ययन विषय साफ-सुथरी भाषा में, सामान्य पाठकों को समझने वाले अंदाज़ में प्रस्तुत करता है।

‘आई.एस.आई.एस.- इतिहास, विकास और समकालीन चुनौती’ इस नई पुस्तक में लेखक मनमोहन शर्मा, तथा संपादक मंडल के डॉ. शारदेन्दु मुखर्जी, विनोद शुक्ल और जगन्निवास अय्यर इन विद्वानों ने इस्लामी आतंकवादी संगठनों का समूचा इतिहास और वर्तमान पाठकों के सामने प्रस्तुत किया है। उस्मानी साम्राज्य टूटने पर तथा तुर्की के सत्ताधीश मुस्तफा कमाल पाशा द्वारा स्वयं ही खिलाफती राज्य नष्ट करने पर विश्व के सारे मुसलमान कैसे संतप्त हुए, यहां से लेकर आज विश्व में तथा विशेषकर भारत में इस्लामी आतंकवादी कैसे कैसे हथकंडे कर रहे हैं यहां तक, सारी जानकारी साधी-सरल भाषा में, प्रवाही शैली में यहां उपलब्ध कराई गई है। किसी उपन्यास की तरह पाठक यह पुस्तक पढ़ता ही जाता है। परंतु यह कल्पनाधारित उपन्यास नहीं है। जगह-जगह पर बयानों के आधार दिए गए हैं। भारत नीति प्रतिष्ठान ने एक अत्यंत पठनीय, चिंतनीय पुस्तक साहित्य जगत में प्रस्तुत की है।

मो. : ९७२०८५५५४५८

मल्हार कृष्ण गोखले

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