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हेमलकसा करुणा व निष्काम कर्म का प्रतीक

हेमलकसा करुणा व निष्काम कर्म का प्रतीक

by अमोल पेडणेकर
in जुलाई - सप्ताह दूसरा गुरु पूर्णिमा विशेष, साक्षात्कार, सामाजिक
2

वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता बाबा आमटे के सुपुत्र तथा हेमलकसा आदिवासी प्रकल्प के प्रणेता डॉ.प्रकाश आमटे से जीवन, पर्यावरण व समासेवा के बारे में उनके अनुभव सुनना अपने आप में एक अलौकिक आनंद देता है। ‘हिंदी विवेक’ ने इसके अलावा उनसे कोराना, इससे उत्पन्न स्थिति और नई जीवन प्रणाली पर भी बातचीत की। उनका सार-संक्षेप यही था कि उन्होंने गीता नहीं पढ़ी, परंतु गीता को जीया है।

भारतीय संस्कृति परम्परा में गुरु का सर्वोच्च स्थान एवं महत्व है इसलिए भारत में गुरु पूर्णिमा का उत्सव मनाया जाता है। आपकी दृष्टि में गुरु का क्या महत्व है?

मेरे जीवन में माता-पिता एवं स्कूल के शिक्षक ही गुरु के रूप में आए। उन्हें ही मैं अपना सबसे बड़ा गुरु मानता हूं। इसके अलावा मेरे जीवन में कोई अन्य गुरु नहीं है। मेरी माता।पिता ने निःस्वार्थ भाव से समाज की सेवा की। जब किसी कार्य के प्रति प्रतिबद्धता होती है तो परेशानियों का सवाल भी मन में नहीं आता। शुरुआती समय में उन्हें कई तरह की चुनौतियों व परेशानियों का सामना करना पड़ा। बावजूद इसके कुष्ठ रोगियों की सेवा में उन्होंने स्वयं को समर्पित कर दिया। बाबा आमटे का नाम इसलिए विश्व प्रसिद्ध हो गया। उनका जीवन एक तपश्चर्या थी। उनके संघर्ष भरे जीवन और सेवा कार्यों से प्रेरित होकर तथा उन्हें अपना आदर्श गुरु मानकर स्वयं प्रेरणा से समाज सेवा के कार्यों में हम अविरत लगे हुए हैं।

आपके पिता स्व. बाबा आमटे के कार्यों को आगे बढ़ाने का निश्चय आपने कब किया?

बाबा निराधार रोगियों की पूरे समर्पण भाव से सेवा चिकित्सा करते थे। जिससे प्रभावित होकर उन्हें समाज की मान्यता मिली। धीरे-धीरे लोग उनके पास आने लगे। वे अपने कार्य का कभी बखान नहीं करते थे और ना ही उसका कभी प्रचार प्रसार करते थे। जब मैं मैट्रिक की पढ़ाई कर रहा था तब युवावस्था में ही मेरे मन में यह विचार आया कि हमें भी बाबा के काम को आगे बढ़ाना चाहिए। बाबा के काम को समाज से बहुत अच्छा प्रतिसाद मिल रहा था। इसे देखकर मैं भी उनके काम के प्रति आकर्षित हुआ। उसी समय मैंने यह निश्चय किया कि डॉक्टर बनकर मैं बाबा के काम को आगे बढ़ाऊंगा। बाबा वकील थे इसलिए स्वास्थ्य के क्षेत्र में उनकी मर्यादाएं थीं। डॉक्टर बनने पर और अधिक अच्छे ढंग से तथा वैज्ञानिक दृष्टि से समाज की सेवा की जा सकती है यह बात मेरे मन में थी। बाबा ने हमें यह कभी नहीं कहा कि आप यह करो या वह करो। वह सबकुछ उन्होंने हम पर ही छोड़ा था। चाहे डॉक्टर बनो या ड्राइवर बनो।

बाबा आमटे जी के कर्तृत्व के ऐसे कौन से मुख्य बिंदु हैं जिनसे आपने प्रेरणा ली है?

स्वतंत्रता संग्राम के दौरान महात्मा गांधी से बाबा बेहद प्रभावित थे। उनसे उन्होंने समाजसेवा की प्रेरणा ली थी। समाजसेवा का कार्य करते समय हमारे जीवन में पारदर्शिता होनी चाहिए। पाई-पाई का हिसाब देना आना चाहिए। समाज द्वारा दी गई सहायता राशि का लेखाजोखा स्पष्ट रूप से दर्शाना चाहिए और वे इस मामले में पूरी तरह से खरे एवं पारदर्शी थे। प्रारंभ में मात्र 6 कुष्ठरोगियों को लेकर उन्होंने अपने सेवा कार्य की शुरुआत की थी और धीरे-धीरे कारवां बढ़ता चला गया। कुछ समय बाद 2500 से अधिक रोगियों की संख्या बढ़ गई। इनमें महिलाएं भी शामिल थीं। अनुशासन, संयम, सेवा भावना, एवं त्याग जैसे नैतिक आचरणों का पालन कर सारी व्यवस्था संभाली। इससे प्रेरित होकर अन्य सभी लोगों ने उनके दिखाए मार्ग का अनुसरण किया। इन्ही सब बातों को मैंने भी सीखा और उनसे प्रेरणा ली।

गुरु अपने कर्तृत्व से आदर्श स्थापित करते हैं, वैसे ही गुरु प्रवचन द्वारा संस्कारित करने का प्रयास भी करते हैं। इनमें से कौन से रीति आपको ठीक लगती है?

प्रवचन में मेरा कभी मन नहीं लगा। कर्तृत्व से स्वयं का आदर्श प्रस्तुत करना यह सबसे बेहतरीन तरीका मुझे लगता है। आपको क्या करना चाहिए यह कहने वाले लोग बहुत हैं जबकि वह स्वयं भी उन बातों को अपने आचरण में नहीं उतारते हैं। यह विरोधाभास लोगों को पसंद नहीं आता। कथनी और करनी में यदि अंतर हो तो उसका प्रभाव नहीं पड़ता। मुझे संत गाडगे महाराज बहुत जंचते हैं। क्योंकि वे जैसा बोलते थे वैसा करते थे। अपने कर्मों से ही लोगों को प्रभावित करने की उनमें अपार क्षमता थी। उनका ‘सादा जीवन उच्च विचार’ मुझे बहुत भाता है।

गडचिरोली के लोकबिरादरी यानी हेमलकसा उपक्रम से आप कैसे जुड़ गए ?

मेरे बाबा किसी भी काम में सबसे अग्रणी रहते थे। किसी भी काम की शुरुआत बाबा स्वयं से करते थे। उन्हें देखकर अन्य लोग भी काम में पूरी तन्मयता से जुट जाते थे। उन्होंने अपने कार्यों से ही अपनी पहचान बनाई है और समाज के सामने एक आदर्श उदाहरण स्थापित किया है। एक बार बाबा मुझे पिकनिक के लिए गडचिरोली के हेमलकसा में घुमाने ले गए। सन 1970 में पिकनिक के बहाने बाबा ने हमें यहां के गरीब असहाय आदिवासियों की परिस्थिति दिखाई। किसी के तन पर वस्त्र नहीं, शिक्षा नहीं, मूलभूत सुविधाओं का नामोनिशान नहीं। आवागमन के लिए रास्ते तक नहीं थे। बाबा ने तब अपनी इच्छा जताई थी कि इन आदिवासियों के लिए काम करें। कुष्ठ रोगियों के लिए पहले की अपेक्षा अब बहुत जागरूकता आ गई है। अब आदिवासियों का जीवन संवारने के लिए काम करने की आवश्यकता है। बाबा की इच्छा को पूरा करने का मैंने संकल्प किया। यह मेरे जीवन का टर्निंग प्वाइंट था। आज हेमलकसा प्रकल्प के कारण ही लोग मुझे जानते पहचानते हैं। वर्तमान समय में दवाखाना, सामुदायिक आरोग्य, स्कूल, साधना विद्यालय, लोक बिरादरी शिक्षा संकुल, प्राणी अनाथालय, ग्राम विकास योजना, आश्रम, पर्यावरण संवर्धन, तालाब व अन्य निर्माण कार्य आदि उपक्रम प्रकल्प के अंतर्गत चलाए जा रहे हैं। बीते 46 वर्षों से यह प्रकल्प चलाया जा रहा है। इसकी स्थापना 1973 में की गई थी।

हेमलकसा प्रकल्प को सफल बनाने में आपकी धर्मपत्नी ने भी अहम भूमिका निभाई है। उनके योगदान के बारे में कुछ बातें बताइए?

इस प्रकल्प को शुरू करने से लेकर उसे आगे बढ़ाने में मेरी धर्मपत्नी मंदाकिनी ने बहुत साथ दिया। नागपुर से आकर वह मेरे साथ जंगलों में आदिवासियों के बीच काम करने लगी। उसके माता-पिता दोनों ही संघ से जुड़े हुए हैं। मंदाकिनी ऐेशर्य संपन्न परिवार से थी। वह बंगले में रहती थी। हमारा प्रेम विवाह हुआ था। हम दोनों ने यह तय किया था कि जो भी काम करेंगे साथ मिलकर करेंगे। नागपुर के इतने बड़े बंगले में पली-बढ़ी उच्च शिक्षित राजकुमारी सी लड़की के लिए जंगलों में बिना बिजली की झोपड़ी में रहना यह मामूली बात नहीं थी। 6-6 महीने तक किसी रिश्तेदार व मित्र से मुलाकात नहीं हो पाती थी। बावजूद इसके उसने मेरा और इस प्रकल्प को सफल बनाने में पूरा साथ दिया। कभी किसी बात की शिकायत तक नहीं की। इस प्रकल्प को आगे बढ़ाने में मेरी पत्नी मंदाकिनी की प्रमुख भूमिका व योगदान है।

बाबा आमटे जी ने आपको जो मानवधर्म सिखाया है, उस मानवधर्म की जानकारी दीजिए?

हमारे भारत में छुआछूत, जात, पात, प्रांत, धर्म आदि को लेकर भेदभाव दिखाई देते हैं। इसी को मद्देनजर रखते हुए बाबा ने केवल मानव धर्म को वरीयता दी और मानव धर्म का आजीवन पालन किया। उन्हीं के पदचिह्नों पर हम भी चल रहे हैं। बाबा ने हिंदू धर्म ग्रंथों सहित अन्य ग्रंथों का खूब पठन किया था। इसके आधार पर उन्होंने निष्कर्ष निकाला था कि कोई भी समाज कार्य करते समय हमारे मन में करुणा की भावना होनी चाहिए। जिस धर्म में प्राणियों के प्रति करुणा नहीं वह किसी काम का नहीं। करुणा के बिना आप समाज के लिए काम नहीं कर सकते। बाबा ने कर्म को ही धर्म माना। इसलिए वह किसी गुरु के फेर में नहीं पड़े। इसी का परिणाम है कि हम जंगल में आकर काम कर रहे हैं। हम अपने काम में इतनी रम गए कि धर्म ग्रंथों का पठन भी नहीं कर पाए। अभी मुझे ज्ञात हुआ कि भगवान श्री कृष्ण ने गीता में ‘निष्काम कर्म’ के बारे में जो कहा है वही काम हम यहां बीते कई सालों से कर रहे हैं। हमें इस बात की खुशी है कि हम निष्काम कर्म कर रहे हैं और इसका आनंद बहुत पहले से ही ले रहे हैं। मुझे ऐसे लगता है कि भले ही मैंने गीता नहीं पड़ी है लेकिन गीता को जीया जरूर है।

कोरोना संकट का आपकी संस्था पर किस प्रकार का परिणाम हुआ है, आप इसे किस दृष्टिकोण से देखते हैं?

कहा जाता है कि जब भी कोई संकट आता है तो वह अपने साथ एक सबक भी लेकर आता है। मुझे लगता है कि हमें भी कुछ सबक सीखना चाहिए। हमें अपनी जीवनशैली में बदलाव लाना चाहिए। अपनी भोगवादी प्रवृत्ति को त्यागना चाहिए और रोजमर्रा की जरूरतों को कम करना चाहिए। प्रकृति-पर्यावरण का दोहन शोषण बंद करना चाहिए। हमने पहले ही पर्यावरण का बहुत अधिक नाश कर दिया है। जलवायु परिवर्तन की चेतावनी को यदि गंभीरता से नहीं लिया तो परिणाम अति भयंकर हो सकते हैं। प्रत्येक व्यक्ति को यह विचार करना चाहिए कि कैसे हम अपनी जरूरतों को कम कर सकते हैं। हमारी बात करें तो हमारे यहां जंगलों में कोई नहीं आता। जब यहां मानव ही नहीं आते तो कोरोना कहां से आएगा? हम सालों से जंगलों में रहते आए हैं, हम पहले से ही लॉकडाउन में हैं इसलिए हमें औपचारिक लॉकडाउन से कोई फर्क नहीं पड़ता। उद्योग- धंधे और रोजगार बंद होने से सामाजिक संगठनों के कामकाज तथा उन्हें मिलने वाले दान पर विपरीत परिणाम हुआ है।

क्या महात्मा गांधी के ग्राम विकास योजना को हमें अपनाना चाहिए?

लॉकडाउन के चलते बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर अपने गांवों में गए हैं। यदि उन्हें उनके गांवों के आसपास ही रोजी-रोजगार की सुविधा मिले तो वे अपना परिवार छोड़कर दूर क्यों जाएंगे? गांवों को मजबूत बनाकर ही पलायन की समस्या को दूर किया जा सकता है। महात्मा गांधी ने अपनी योजना में गांवों को आत्मनिर्भर बनाने पर बल दिया था। गांधी जी की ग्राम योजना प्रासंगिक है। उस पर अमल करना चाहिए। स्वदेशीकरण, स्वरोजगार, एवं स्वव्यवसाय आदि माध्यमों से गांवों को स्वावलंबी बनाया जा सकता है।

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Comments 2

  1. Bhalchandra Jagannath Vengurlekr says:
    5 years ago

    बाबा आमटे, डांँ. प्रकाश आमटे तथा माई मंदाकिणीजी का समाजकार्य महान हेै. वाे जगतके हर ऐक इंन्सान तथा प्राणिंमात्रां के आदर्णिय तथा पुजनिय हेै. समाजकार्य के बीच काेई धर्म काेई जातपात नहीं हाेता. जाे काम ऊन्हाेने कर दिख़ाया आज कल के कार्यकर्तावाेंने ईलेक्श लढनेसे पहले समाजकार्य केैसे करना चाहियें जरा पढाई करें. फिर ईलेक्शनसे पहेले ५ साल पुरा समाजकार्यमें हाथ बटायें बादमे ईलेक्शन लढे.धन्यवाद.

    Reply
  2. अविनाश फाटक, बीकानेर. (राजस्थान) says:
    5 years ago

    इन निष्काम कर्मयोगियों के व्यक्तित्व, कृतित्व एवं प्रकल्प को एकबार अपनी आंखों से हर एक को देखकर आना ही चाहिए.मेरा दावा है कि आपका वहां से लौटने का मन ही नहीं करेगा. तब तक उनके इस प्रकल्प पर बनी फिल्म – “डॉ.प्रकाश बाबा आमटे – द रियल हीरो” देख लें,जो आपको वहां जाने की प्रेरणा देता रहेगा.
    आप, पर्यटन हेतु देश विदेश में जाते हों तो इसबार यह प्रकल्प देखने का मन बनाएं, निराश नहीं होंगे.

    Reply

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