हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
कोरोना और कोकोनट

कोरोना और कोकोनट

by pallavi anwekar
in जुलाई - सप्ताह चार, सामाजिक
0

कोरोना के खिलाफ वर्जिन कोकोनोट ऑयल की उपयोगिता यदि सिद्ध हो गई तो नारियल का भारी पैमाने में उत्पादन करने वाले भारत के बहुत अच्छे दिन आ जाएंगे। प्राकृतिक दवाओं के विश्व बाजार में हम अपनी पैठ बना लेंगे। कहीं ऐसा न हो कि कोई छोटा देश इसमें बाजी मार जाए और अमेरिका उसका पेटेंट कराकर उसे मंहगी दवा के रूप में हमें परोस दें।

नारियल के तेल की उपयुक्तता के संबंध में टाइम्स में डॉ. शशांक जोशी का एक साक्षात्कार प्रकाशित हुआ और मुझे अनेक लोगों ने प्रश्न पूछे। इसलिए यह लेख लिख रहा हूं। अस्वीकृति :- लेख पढ़ने के पूर्व मैं पाठकों को बताना चाहता हूं कि मैं किसी भी क्षेत्र में डॉक्टर नहीं हूं। मैंने मेडिकल से संबंधित कोई भी पाठ्यक्रम नहीं किया है। किसी भी पैथी या दवाई/ काढा का समर्थन या विरोध करने के लिए यह लेख नहीं लिख रहा हूं। मैं 20 वर्षों से सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में काम कर रहा हूं तथा भारतीय/ स्थानीय भाषाओं में साइट्स, ऐप, सर्च इंजन पर मेरी मास्टरी है। महाराष्ट्र सरकार के मराठी भाषा विभाग का मैं अधिकृत डेवलपर हूं। 8 वर्ष पूर्व नारियल के क्षेत्र में काम करने हेतु मैं कोकण आया। अध्ययन करते करते नारियल से संबंधित अनेक बातों से परिचित हुआ। इस लेख में प्रस्तुत मेरे ये सारे विचार फर्स्ट हैंड हैं। इसलिए जानकार अपनी अपनी विवेक बुद्धि से उसका उपयोग करें।

कोरोना/ कोविड-19 के विरुद्ध लड़ाई में नारियल तथा नारियल के उत्पादों की भूमिका बहुत निर्णायक रहने वाली है, इसमें कोई संदेह नहीं। ‘गीले नारियल का तेल’ केवल एक तेल न होकर दवा है। विभिन्न बीमारियों में इसका परिणाम चमत्कारी सिद्ध हुआ है। परंतु ‘चमत्कार’ शब्द विज्ञान तथा विज्ञान का विद्यार्थी होने के कारण मुझे भी मंजूर नहीं। इसलिए इसे वैज्ञानिक दृष्टिकोण से परखना आवश्यक है।

नारियल का तेल कहने से हमारी आंखों के सामने आती है पैराशूट की नीली बोतल! कोकण क्षेत्र में नारियल का तेल निकालने की घानियां कई जगह हैं। कई लोग अपने अपने घरों में नारियल का तेल निकालकर उसका उपयोग करते हैं, बेचते हैं। केरल, आंध्र सरीखे दक्षिणी राज्यों में नारियल का तेल बड़े पैमाने पर खाद्य तेल के रूप में उपयोग होता है। हमारे यहां अधिकतर डॉक्टरों को, आयुर्वेदिक डॉक्टरों को भी, नारियल का तेल याने सूखे खोपरे का तेल ही ज्ञात है जो विशेषत: मसाज, सिर पर लगाने के काम आता है। यह तेल व्यवहार में copra oil के नाम से जाना जाता है। खोपरा यानी सूखी नारियल गिरी। मैं इस तेल के बारे में बात नहीं कर रहा हूं।

इसके अतिरिक्त भी नारियल का एक तेल है जिसे तउज (वर्जिन कोकोनट ऑयल/ Virgin Coconut Oil) कहते हैं। गीले खोपरे या अन्य किसी पदार्थ की अवस्था न बदलते हुए, उसे उसके मूल नैसर्गिक गुणधर्म वैसे ही रखकर यदि तेल अलग किया जाए तो उसे वर्जिन ऑयल कहते हैं। खोपरे को न सुखाते हुए या उस पर कोई भी रासायनिक क्रिया न करते हुए जो तेल अलग किया जाता है उसे वर्जिन कोकोनट ऑयल कहा जाता है। यह 4 तरीकों से किया जाता है। मुख्यतः गीले खोपरे का रस, जिसे नारियल का

दूध भी कहा जाता है, निकाला जाता है जिसमें बड़ी मात्रा में फैट/ तेल रहता है। इसे अलग करने के लिए-

1) नारियल के रस को ठंडा कर वैसे ही रखते हैं। साधारणतया 8 से 12 घंटे में फैट जमकर ऊपर तैरने लगता है एवं उसे अलग किया जा सकता है। परंतु इसमें बड़े पैमाने पर आर्द्रता होती है। नारियल के मक्खन जैसा यह प्रकार है। इस मक्खन को कम तापमान पर गर्म कर उसमें का तेल पतला कर अलग किया जाता है।

2) नारियल के रस को ठंडा करने के बजाए उसे सड़ने देते हैं। नारियल का रस बहुत जल्दी नाशवान होता है। वह तुरंत सड़ने लगता है। कभी-कभी यह कल्चर डालकर भी किया जाता है। इस प्रक्रिया में भी नारियल का ़फैट प्राकृतिक रूप से अलग होकर तैरने लगता है एवं अलग किया जा सकता है। परंतु इस तेल से भयंकर बदबू आती है।

3) उपरोक्त प्रक्रिया में यह ध्यान में आया होगा कि नारियल के दूध में फैट का पानी से संबंध तोड़ना यह मुख्य विषय है। परंतु सड़ाकर या गर्म करने से इस तेल के गुण बदल जाते हैं एवं सही अर्थों में वह वर्जिन नहीं रहता। इसलिए नारियल संशोधन केंद्र तथा विश्वविद्यालयों ने इसकी एक ीींरींश ेष ींहश रीीं, ळपर्वीीीीूं सीरवश पद्धति खोजी है। नारियल का दूध 10000 या 12000 आरपीएम की गति से सेंट्रीफ्यूगल पंप में जोर-जोर से गोल घुमाते हैं। इस सेंट्रीफ्यूगल फोर्स के प्रभाव से फैट तथा पानी अलग होता है एवं तेल अलग बाहर निकलता है। इसकी मुख्य विशेषता याने नारियल के खोपरे/ दूध में स्थित सारे गुणधर्म हमें जस के तस तेल में प्राप्त होते हैं। यह सबसे अच्छी प्रक्रिया है एवं विश्व में निर्यात होने वाला वर्जिन कोकोनट ऑयल केवल इसी प्रक्रिया से बनाया जाता है।

अब वास्तविक प्रश्न यह है कि नारियल के दूध या खोपरे में ऐसा क्या है जो वर्जिन कोकोनट ऑयल में जस का तस आता है और उससे क्या होता है!

अच्छे तरीके से वर्जिन कोकोनट ऑयल निकालने से उसमें मलॉरिक एसिडफ नामक प्रोटीन चेन मिलती है। यह MCT (medium-chain triglyceride) है। सभी तेलों में थोड़ी बहुत मात्रा में चउढ/ङउढ होता है। इसका अर्थ एवं बहुत सी जानकारी आपको गूगल पर मिल जाएगी। ‘लॉरिक एसिड’ का महत्व याने यह केवल माता के स्तन्य दूध में मिलता है एवं छोटे बच्चों की रोग प्रतिकारक शक्ति एवं उनके अस्थि मज्जाओं को बनाने का महत्वपूर्ण कार्य करता है। वर्जिन कोकोनट ऑयल में ‘लॉरिक एसिड’ 50% तक होता है एवं दूसरे किसी भी तेल या नैसर्गिक पदार्थ में नहीं मिलता।

‘लॉरिक एसिड’ में ‘मोनोलॉरिन’ नाम का एक घटक है जो रोग प्रतिकारक शक्ति बढ़ाने तथा बैक्टीरिया वायरस का प्रतिकार करने ऐसे दो स्तरों पर काम करता है। इस बात का आधार लेकर अनेक अमेरिकन एवं यूरोपियन नेचरोपैथी डॉक्टरों ने अल्जाइमर एवं पार्किंसन के रोगियों पर अनेक प्रयोग किए एवं सप्रमाण सिद्ध किया कि इस प्रकार की असाध्य बीमारियों पर वर्जिन कोकोनट ऑयल अत्यंत उपयुक्त सिद्ध हुआ है। इसके अनेक क्लिनिकल ट्रायल्स उपलब्ध हैं। अनेक अधिकृत वैज्ञानिक संस्थाओं के संदर्भ भी ऑनलाइन उपलब्ध हैं।

नारियल का मुख्य उत्पादन एशिया में होता है एवं 18 देशों में नारियल की खेती होती है। एशिया पेसिफिक कोकोनट कम्युनिटी ( एपीसीसी) नामक संस्था इन अट्ठारह नारियल उत्पादक देशों के नारियल बाबत के कामों की शीर्ष संस्था है। प्रत्येक देश में नारियल के लिए केंद्रीय बोर्ड है एवं इस बोर्ड के अध्यक्ष (आई ए एस ऑफिसर) एपीसीसी के पदेन सदस्य होते हैं। एपीसीसी नारियल के उत्पादन की क्वालिटी, उसके निर्यात की कसौटी इस विषय में मार्गदर्शी काम करती है। इसके अतिरिक्त नारियल के विविध उपयोग, नारियल का सामान्य एवं औषधीय उपयोग, उनके मेडिकल ट्रायल्स ऐसे विषयों में सतत काम करती है, सुविधा निर्माण करती है एवं विश्व स्तर पर उसकी उपयोगिता की वकालत करती है। अमेरिकन मेडिकल काउंसिल ने नारियल तेल पर जब आक्षेप लगाए तब एपीसीसी ने उसके विरुद्ध साधार लड़ाई लड़ी एवं नारियल के तेल के विरुद्ध अनेक निराधार आरोपों को सप्रमाण खारिज कर दिया।

एपीसीसी सतत वर्जिन कोकोनट ऑयल के मेडिकल ट्रायल्स लेती रहती है एवं उसके परिणाम ऑनलाइन उपलब्ध कराती है। https://www.apcc.org/ यह एपीसीसी की साइट है एवं उसके हेल्थ सेक्शन में ऐसे विषय देखे जा सकते हैं। वहां की र्लेींळव-19 की लिंक हमारे मेडिकल विशेषज्ञों को देखना बहुत आवश्यक है। यह रिपोर्ट एक मेडिकल डॉक्यूमेंट है एवं कोरोना वायरस के मरीजों पर की जाने वाली ट्रायल क्यों तथा कैसी होना चाहिए इस स्वरूप की होकर उसमें मोनोलौरिन के गुण किस प्रकार कोरोना वायरस के विरुद्ध उपयुक्त हैं इस पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से विचार प्रस्तुत किए गए हैं।

रिपोर्ट का सारांश:-

मोनोलौरिन और सोडियम लॉरिल सल्फेट, लॉरिक एसिड से बनने वाले पदार्थ, अनेक वर्षों से वायरस के विरुद्ध लड़ने के प्रभावी अस्त्र के रूप में प्रसिद्ध हैं। अनेक प्रकार की औषधियों में इसका समावेश रहता ही है। मोनोलौरिन आधारित उपचार पद्धति तीन प्रकार से इस वायरस के विरोध में लड़ाई में उपयुक्त है- 1) वायरस का बाह्य कवच (आवरण) भेदकर उसे निष्प्रभावी बनाना। 2) वायरस का पुनरुत्पादन कम करना जिससे उसका प्रभाव मर्यादित रहे। 3) वायरस को मानव शरीर की पेशियों के साथ मिलने से रोकना।

इस प्रकार के प्रयोग एवं ट्रायल्स इंडोनेशिया, फिलीपींस एवं थाईलैंड सरीखे देशों में चल रहे हैं। इंडोनेशिया के राष्ट्रपति ने वर्जिन कोकोनट ऑयल को कोरोना के विरुद्ध मुख्य एंटीवायरस के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर लांच किया है। यह समाचार देखें –
https://coconutcommunity.org/news/detail/19

एशिया के छोटे देश तकनीकी दृष्टि से भारत के कुछ पीछे होने के कारण उनके प्रयोग सीमित हैं। वे जो रिसर्च एवं उसके डाक्यूमेंट्स ऑनलाइन जारी करते हैं वह तंत्रज्ञान भी कम है। भारत सरीखे मेडिकल क्षेत्र के दिग्गज देश के इस विषय में ध्यान देने से कोरोना के लिए लैब से लेकर रोगी उपलब्ध कराना सहज संभव है। एपीसीसी के साथ काम करने वाले अनेक वैज्ञानिक, डॉक्टर भारत में हैं। केरल की सीपीसीआरआई यह संस्था अनेक अच्छे वैज्ञानिकों के साथ नारियल के उत्पादों पर काम करती है। वहां उसके परिचित डॉक्टर हेब्बार नीरा विषय के जानकार हैं और वे भी इस विषय में मौलिक योगदान दे सकते हैं। भारत सरकार यदि इस प्रकार की टीम बनाती है तो इस विषय में विविध प्रकार की जानकारी इन सब संस्थानों/ लोगों से प्राप्त करना, प्रोसेस करना और उस पर आधारित निर्णय लेना बहुत सरल होगा। इसके अतिरिक्त नेचरोपैथी बेस्ड होने के कारण एवं सिंथेटिक ना होने के कारण इसके दुष्परिणाम या तो नहीं है या है भी तो सीमित! इसलिए क्लिनिकल ट्रायल लेना इतना कठिन नहीं होगा।

मैं यह नहीं कहता कि वर्जिन कोकोनट ऑयल कोरोना वायरस के विरुद्ध दवाई के रूप में 100% सफल होगा। परंतु कोरोना की प्राथमिक अवस्था में यदि 100% सफल होता है, दूसरे स्तर में 80 एवं तीसरे स्तर में 60%, तो भी यह कहा जा सकता है कि कोरोना के विरुद्ध निर्णायक लड़ाई की शुरुआत तो हो गई है।

मुझे इसमें दिखा महत्वपूर्ण मुद्दा:-

वर्जिन कोकोनट ऑयल यह नारियल से बनता है। सिंथेटिक नहीं। यदि वर्जिन कोकोनोट ऑयल की उपयोगिता सिद्ध हो गई तो भारत सरीखे देश में जहां नारियल का भारी मात्रा में उत्पादन होता है, नारियल की खेती करने वालों के बहुत अच्छे दिन आ जाएंगे। इसके अतिरिक्त यह इंडस्ट्री ग्रेड मेडिकल औषधि होने के कारण, एक वर्जिन कोकोनोट ऑयल कारखाने में मशीन बनाने वाले से लेकर ट्रांसपोर्टर, एक्सपोर्टर तथा अनेकों को व्यवसाय तथा रोजगार के अवसर प्राप्त होंगे। इस प्रकार के प्राकृतिक दवाइयों के बाजार के रूप में भारत को विश्व में प्रतिष्ठा मिलेगी जिसका लाभ किसानों तथा उत्पादकों तक पहुंचेगा।
मुझे अपने इतने वर्षों के अध्ययन से लगता है कि, यदि कोरोना वायरस के इलाज का पता ही नहीं है, निश्चित कैसे खोजना, कहां खोजना यह भी मालूम नहीं होता तो वास्तव में बहुत कठिनाई होती। परंतु यदि खोजने की दिशा पता है, वह शास्त्रीय एवं विश्वास योग्य है तथा कुछ प्रमाण में पहले से अनुभव की गई है, तो ऐसे प्रयोग करने में कोई अड़चन नहीं है। हम काढ़े पीकर एवं आर्सेनिक एल्बम सरीखे प्रयोग कर केवल ‘रोगप्रतिकारक शक्ति’ इसी एक बात पर काम कर रहे हैं। वर्जिन कोकोनोट ऑयल हमें प्रत्यक्ष कोरोना के विरुद्ध शस्त्र हाथ में देगा ऐसा लगता है। ऐसा नहीं होना चाहिए कि यह खोज इंडोनेशिया या थाईलैंड करें और अमेरिका उसे खरीद ले। बाद में हम अमेरिका से पैक होकर आई मोनोलौरिन बेस्ड दवाई यहां 4 से 5 हजार रुपयों में खरीदें।

मैंने मेरे संपर्क के विभिन्न आईएएस अधिकारी, डॉक्टर, विधायक/ सांसद तथा मंत्रियों तक इस विषय को पहुंचाने का भरसक प्रयत्न किया है तथा कर रहा हूं। जिन्हें संभव है वे योग्य लोगों तक इस विषय को जरूर ले जाएं। मैं मेरी ओर से जितना संभव होगा, सहयोग करूंगा।
———

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp

pallavi anwekar

Next Post
कभी खुशी, कभी गम देने वाली मेरे गांव की बारिश

कभी खुशी, कभी गम देने वाली मेरे गांव की बारिश

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0