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कभी खुशी, कभी गम देने वाली मेरे गांव की बारिश

कभी खुशी, कभी गम देने वाली मेरे गांव की बारिश

by अमोल पेडणेकर
in जुलाई - सप्ताह चार, विशेष, सामाजिक
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कोंकण पर वर्षा के रूप में ईश्वर की कृपा बरसती रहती है। दुनिया में कुछ भी हो फिर भी कोंकण कभी प्यासा नहीं रहा। इसी कारण प्रकृति ने दिल खोलकर कोंकण में सौंदर्य लुटाया है। मेरा गांव भी इसी मनोहारी सुरम्यता का उपहार लिए है.

कोंकण के सभी गांव प्राकृतिक रूप से सुरम्यं ही हैं। लेकिन इन सुरम्यक गांवों में भी मेरे गांव फोंडाघाट को प्रकृति ने सुरम्यता का कुछ अधिक वरदान दिया है। गांव की ओर जाने वाली सर्पिली सड़कें। आम, काजू, जामुन, सागोन, कटहल जैसे अगणित डेरेदार वृक्ष। बेलों व हरे रंग की विविध छटाओं से बौराए पेड़-पौधे। लाल रेतीले पत्थर और वैसी ही लाल-लाल जमीन। ऊंची-नीची पर्वत-वादियों में सह्याद्रि के पर्वतों की कतारें व उनमें से निकलती सर्पिल घुमावदार सड़कें। तरोताजा लगने वाला वन-प्रांतर। हरियाली की मखमल से सनी यौवनी टेकरियां फोंडाघाट का यह सबकुछ अलौकिक व अवर्णनीय है। कोई प्रकृतिप्रेमी कवि इस कोंकण को कितनी भी उपमाएं दें लेकिन वे अधूरी ही होंगी। इस तरह अमित व अद्वितीय है मेरा गांव।

लाल रेतीले कठोर पत्थरों की तरह कठोर लोग भी मेरे गांव का वैभव है। सालो-दर-साल कोंकण की परम्परा का जतन करने वाला तथा उस परम्परा के लिए भागदौड़ करने वाला मेरा गांव। समृद्धि के स्पर्श से अधिकतर दूर ही रहा कोंकणी आदमी जैसा होता है वैसे ही हैं अब भी मेरे गांव के लोग। पेट के खातिर मुंबई की राह पकड़ने वाले कामगार मेरे गांव में भी हैं। बच्चे की पढ़ाई पूरी होते ही उसे ट्रेन से मुंबई भेजने वाला कोंकणी अब भी मेरे गांव में है। गणपति-गौरी के लिए, होली की पालकी के लिए व गांव के मेले के लिए जानलेवा भागमभग कर अपनत्व से गांव आने वाला मुंबईवासी अब भी मेरे गांव में मिलेगा। कुल मिलाकर कोंकण के अपने गांव के बारे में अपनत्व रखने वाला जो मुंबईवासी है वह मेरे गांव में भी है। मेरे गांव की मिट्टी मुझे अन्य स्थानों से अधिक करीबी लगती है। और वे हरेभरे पेड़ वे तो मानो मेरे सगे रिश्तेवाले ही हैं!

मैं भी उनमें से एक ही हूं। अपने गांव के प्रति अनुराग से मई माह के अवकाश और गांव जाने के अवसर की ओर आंखें गड़ाए रहता हूं। मुझे विशेष रूप से मेरे गांव की प्रकृति, वनांचल और वहां बरसने वाली व मुग्ध करने वाली बारिश बेहद पसंद है। गांव में, पहाड़ों-वादियों में, वनप्रांतर में बरसने वाली बरसात के भिन्न-भिन्न प्रकार हैं। उसके ये भिन्न-भिन्न प्रकार मेरे मन को गांव में बरसने वाली बारिश की यादों की ओर ले जाते हैं। हमें लगता है कि सारी व चहुंओर बरसने वाली बारिश एक जैसे ही होती है। लेकिन मुझे मेरे गांव की बारिश कुछ अलग ही लगती है। वह हर साल नए-नए रूप लेकर आती है। कभी एकाध बार मुंबई से निकलकर बारिश में गांव पहुंच जाए और उसमें भीग जाए तो गांव की इस बारिश की गंध जीवनभर मन को मंद-मंद सुगंधित करती रहती है और बरसती भी है। मेरा ऐसा ही कुछ अनुभव है।

कई बार कोंकण की बारिश अनुभव करने का आनंद मिला। बारिश की शुरुआत होने के पूर्व ही गांव में सभी जमीन पराले डालकर भून लेते हैं। गांव के लोग नमक मिर्च, सूखी मछली, जलावन व छतरी-कंबल की व्यवस्थाक कर आकाश की ओर आंखें लगाए रहते हैं। केवल आदमी ही नहीं, पशु, जमीन, पेड़-पौधें व जंगल के पशु-पक्षी भी बारिश की आतुरता से बांट जोहते हैं। टिटिहरी नामक पंछी यदि पूरब से पश्चिम की ओर ट्विट..ट्विट करते उड़े तो जान लो कि बारिश अब उतरने ही वाली है। पेड़ों पर घोंसलें बनाने की पक्षियों की भागम्भाग रुक जाती है तब समझ लो कि बारिश अब जल्द ही आने वाली है। सूखे कुँओं से जब मेढक डरांव..डरांव करने लगे तो मान लो अब बरसात आने को ही है।

और अचानक एक शाम गांव के आकाश में चारों ओर काले-नीले बादल उमड़-घुमड़ कर आते हैं। सह्याद्रि पर्वतों के विशाल माथे से लेकर विस्तीनर्ण फैले क्षितिज तक काले-काले बादलों का जमघट घना अंधेरा कर देता है। गांव में बारिश का आगमन व लौटती बारिश मेघ हमेशा गर्जनाओं के निनाद में गड़गड़ाते ही आते हैं। साथ में कड़कती बिजली को भी साथ लाते हैं। जब बरिश आरंभ होती है तब काफी समय से नदारद रहे मोर गांव के खुले वनप्रांतर में अपना साहुल फैलाकर नाचते होते हैं। मोर का केंकना सुनना अप्रतिम संयोग ही होता है। साहुल फैलाकर, गर्दन उठाकर नाचने वाला मोर देखा कि लगता है मानो वह बरसने वाली वर्षा का आभार व्यक्त कर रहा है। किसी रणभूमि पर नगाड़े बजाते हुए सेना आए वैसे ही यह बारिश गड़गड़ाहट के साथ गांव की भूमि पर धमकती रहती है। बारिश का बरसना भी एक संगीत ही है। दूर पहाड़ों की घाटी से आते दिखने वाली बारिश और उसका मंगलाचरण सुनाता स्वटर कुछ अलग ही होता है। और जब वह बारिश करीब आती है तब पेड़-पौधों से लेकर वृक्ष-बेलों व शाखा-पत्तों तक उसके बरसने का संगीत किसी नवयौवना की तरह खिल उठता है। ग्रीष्म के ताप से झुलसी भूमि बूंद बूंद अपने में समा लेती है। पेड़, पंछी, प्राणी सारे अपनी प्यास बुझाकर तृप्त हो जाते हैं। बारिश की संततधार कुछ थमी कि खेतों की मेड़ों पर व खुले वनप्रांतरों में अनेक लुभावने मोर अपने साहुल फैलाकर नाचते दिखाई देते हैं। उनके पंखों में आभासी कृष्ण रंगी आंखें मन मोह लेती हैं। मेघराजा के आगमन से तृप्त मोर कभी स्वृयं अपनी ही धुन में गोलगोल नाचता होता है या कभी उसकी सहयोगी मोरनियां उसके चारों ओर घेरा बनाकर मदमस्त होकर नाचती रहती हैं।

घनी व बरसने वाली वर्षा के साथ एकरूप होकर नाचने वाले इन मोरों को देखना अलौकिक होता है। यह मनभावन दृश्य देखते हुए अपने मन के साथ आसपास का परिसर भी मनमोहक बन जाता है। और बारिश के जोरों से बरसते तार थम जाते हैं तब मानो अपने साहुल की छतरी बंद कर तृप्ति की भावना से एक के पीछे एक निकट के जंगल में समा जाने वाले मोर मैंने देखे हैं। कोई खुशी की बात दूसरे को बताते समय हम उसमें अन्यों को भी शामिल कर लेते हैं। क्येंसकि आनंद को जोड़ना होता है। इसलिए कभी मुझे मिला आनंद मैं उसी भाव से आपके सामने रख रहा हूं।

हर साल बारिश आती है। मुंबई की बारिश सालोंसाल हम अनुभव कर रहे हैं। लेकिन उस बारिश में कोई नयापन नहीं रहा। क्यों कि मौसम विभाग के अनुमान के अनुसार या कभी मौसम विभाग के गलत अनुमान के अनुसार मुंबई में बारिश आती रहती है। और इस तरह आने वाली बारिश से बचने के लिए छतरी, रेनकोट लेकर हम मुंबईवासी तैयार रहते हैं। इस बारिश का प्रतिकार करने के लिए हमारी लगातार कोशिशें होती हैं। वह कभी आनंद देने वाली तो कभी मन को हैरान करने वाली होती है। वह कभी सृजनकर्ता तो कभी सबकुछ डुबो देने वाली होती है। गांव में आने वाली बारिश क्यु कभी हमसे रूठी है? एक साल हमारे आंगन का हमेशा खूब बौराने वाला आम का पेड़ आकाशीय बिजली गिर जाने से पूरी तरह भस्मछ होते हमने देखा है। एक साल खलनायिका की तरह दहा्ड़ते हुए आई बारिश से घर के चारों ओर की बाड़ ही बह जाने का अनुभव भी गांठ में है। कभी-कभी वह रात में चोरनी जैसे आती है और बरसते बरसते रहती है। सुबह नदी-नाले बाढ़ से भर जाते हैं। गांव के अनेक गोयगोठ गाय-बछड़ों के साथ बह जाने की बुरी खबर सुनाई पड़ती है। और कभी कभी तो बारिश कई दिनों के लिए रूठ जाती है। निरभ्र सूखे आकाश, चिलचिलाती धूप, अधजले काले बन गए खेत। यह सब देखा कि ऐसा लगता है, क्याअ वर्षा को किसी पर दया नहीं आती?

वैसे मेघराजा दयालु राजा है। वही यदि रूठ गया तो किससे दया की याचना करें? भरे बारिश के दिनों में भी अनेक स्थाानों पर चिलचिलाती धूप होती है। बूंद भर पानी के लिए लोग त्राहि त्राहि करते हैं। ऐसे अकाल के स्थाबन पर वह एक बूंद नहीं बरसाता। लेकिन कोंकण में धुआंधार बारिश कोंकणी आदमी पर ईश्वर की कृपा है और क्यो? अब बारिश की लहर या कृपा कुछ भी समझें। लेकिन कोंकण पर वर्षा के रूप में ईश्वर की कृपा बरसती रहती है। दुनिया में कुछ भी हो फिर भी कोंकण के हिस्सेक में कभी सूखा इस मेघराजा ने आने नहीं दिया यह मात्र निश्चित है।

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