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भव्य मंदिर, भव्य भारत

भव्य मंदिर, भव्य भारत

by रमेश पतंगे
in अगस्त-सप्ताह एक
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अब हमें दैवी गुणों की संपदा निर्माण करनी है। प्रत्येक हिंदू व्यक्ति और उन व्यक्तियों से मिलकर बना समाज दैवी गुणों संपन्न बनाना है। राम हमारी इसी राष्ट्रीय अस्मिता के प्रतीक हैं। भव्य मंदिर याने भव्य भारत, यह हमारी दिशा है।

बाबरी ढांचा ध्वस्त होने के बाद महाराष्ट्र के प्रगतिशील आंदोलन के एक बड़े नेता से संवाद का मौका मिला था। विचारों से वे संघद्वेषी नहीं थे। वे बोले, बाबरी मस्जिद गिराकर संघ अपना काम 20 साल पीछे ले गया है। वे जिन विचारों में पले-बढ़े और जितना ’हिंदू’ उनकी समझ में आया उसके अनुसार उनका कहना ठीक था। परंतु हम तिलक, डॉ. हेडगेवार, श्री गुरुजी की परंपरा के हिंदू होने के कारण हमारी दृष्टि में संघ विचार 20 वर्ष पीछे जाने की बजाए अनेक वर्ष आगे चला गया है। दो विचारधाराओं के आकलन का यह फर्क है। उसे समझने के लिए राम जन्मभूमि मुक्ति का आंदोलन क्यों शुरू हुआ एवं संघ के स्वयंसेवक उसमे क्यों शामिल हुए यह समझना होगा।

स्वामी विवेकानंद एक कथा बताते थे। बकरियों के झुंड में सिंह का बच्चा बड़ा हुआ। बकरी के समान वह भी ब्याँ ब्याँ करता था। इस बकरी के झुंड पर एक सिंह ने हमला किया। झुंड में अपनी जमात का प्राणी देखकर उसे आश्चर्य हुआ। उसने उसे उठाया एवं जंगल में ले गया। सिंह का बच्चा बहुत घबराया। सिंह बोला, ’तुम बकरी के झुंड में क्यों रहते हो? तुम सिंह हो।’ वह बच्चा बोला, ’मैं सिंह कैसे हो सकता हूं? मैं बकरी हूं।’ सिंह उसे तालाब के किनारे ले जाता है और पानी में देखने को कहता है। तब उस बच्चे के ध्यान में आता है, ’अरे, मैं भी सिंह हूं।’ उसे स्वत: की पहचान होती है और उसका आत्माभिमान जागृत होता है। राम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन, यह हिंदुओं का आत्माभिमान जागृत करने वाला आंदोलन था।

हिंदू स्वत: की अस्मिता भूलकर सिंह होते हुए बकरी बन गया था। वह कहने लगा था, ’मैं हिंदू नहीं, सेक्युलर हूं। मैं मानव हूं। मैं सर्वधर्म समभावी हूं। इत्यादि इत्यादि।’ किसी से यदि इसका अर्थ पूछा तो वह आसमान ताकने लगता था। प्रश्नों का उत्तर देने में उसे कठिनाई होती थी। यदि उससे कहा जाए कि, क्या हिंदू सेकुलर नहीं? क्या हिंदू मानव नहीं? क्या हिंदू सब धर्मों का सम्मान नहीं करता? इन प्रश्नों का कोई उत्तर उसके पास नहीं था। हिंदू कहलाने में हीनता की भावना यह कारण था।

दूसरा कारण डर। उसके मन में अंदर तक मुसलमानों का डर भरा है। ’मुसलमान आक्रामक होता है, सामान्य हिंदू डरपोक होता है।’ गांधी जी का यह वाक्य वह जीता है। मुसलमानों का डर मानने वाले ही शासक बन गए। स्वाभाविकत: वे हिंदू विरोधी हो गए। हिंदू – अस्मिता यदि व्यक्त करनी है तो सत्ता का विरोध सहन करना होगा, इस कारण हिंदू छोड़कर कुछ भी कहो, इस मानसिकता में हिंदू चला गया है। उसके मन से मुसलमानों का डर निकालना आवश्यक था। हिंदू विरोधी शासकों को झटका देना आवश्यक था। ’हिंदू जगे तो विश्व जगेगा’ यह आत्मविश्वास निर्माण करना आवश्यक था। इसके लिए संघ स्वयंसेवक आंदोलन में उतरे।

राम जन्मभूमि पर मंदिर बांधना यह प्रतीकात्मक लड़ाई है। हिंदू तत्वज्ञान यह कहता है कि ना भगवान मूर्ति में होता है, ना मंदिर में। वह तो चराचर सृष्टि में व्याप्त है। वह चैतन्यमय है एवं उसका निवास प्रत्येक प्राणी मात्र में है। मंदिर बांधने से भगवान की पूजा होती है ऐसा हिंदू तत्वज्ञान नहीं कहता है तो फिर मंदिर की आवश्यकता ही क्यों?
ईश्वर निर्गुण निराकार होता है। निराकार की पूजा सब के लिए संभव नहीं इसलिए मंदिर चाहिए। ईश्वर यह पवित्र, विमल, निष्कलंक और नित्य शुद्ध होता है। उसे प्रतीक में देखना पड़ता है। प्रतीक याने भगवान की मूर्ति। हम भगवान की पूजा याने उस मूर्ति की पूजा करते हैं। ईश्वर का पावित्र्य, निर्मलता, शुद्धता हममें आए इसलिए भक्ति भाव से पूजा करनी होती है। ऐसी पूजा कर समाज के कुछ व्यक्ति इतने महान बनते हैं कि वे ईश्वर सदृश्य लगने लगते हैं।

प्राचीन काल में यह स्थान श्री कृष्ण एवं श्री राम ने प्राप्त किया। ’श्री कृष्ण एक राष्ट्र निर्माता’ इस विषय पर प्रगतिशील विचारक श्री नरहर कुरुंदकर का भाषण यूट्यूब पर उपलब्ध है। हम भगवान राम का विचार करते हैं, उसे लोगों ने विष्णु का अवतार माना है। राम ने स्वत: को कभी यह नहीं माना। ’मेरा नाम राम है, मैं कौशल्या तथा दशरथ का पुत्र हूं,’ यही परिचय राम ने दिया है। राम के जीवन में चमत्कारों की कथा नहीं है। (अहिल्या की कहानी एक अपवाद) पुत्र, भाई, मित्र, पति, और राजा इस विषय में राम ने मानवी जीवन में आदर्श प्रस्तुत किया है। राम मानव होने के कारण रामकथा की कुछ बातें खटकने वाली हैं। इसी के कारण राम का मानवीपन उत्तम प्रकार से सिद्ध होता है। राम, देव हो गया क्योंकि उसने जीवन भर देवत्व का व्यवहार किया, उसमें समझौता नहीं किया। रामकथा वैसे तो शोकांतिका है। जीवन के प्रत्येक पग पर दुख हैं। इस दुख से राम हताश नहीं हुआ, वह उससे लड़ता रहा।

मनुष्य जीवन तो वैसे दुखमय ही होता है। उसका विस्तृत वर्णन, राम जिस ईश्वाकु वंश के हैं, उसी वंश के भगवान गौतम बुद्ध ने ही किया है। यह दुखमय जीवन राम के समान धैर्य से व्यतीत करना पड़ता है। हमारे दुख राम के दुख के सामने कम लगने लगते हैं। इसलिए रामकथा प्रत्येक के ह्रदय में बसी है। राम जिसे नहीं पता, वह हिंदू नहीं कहा जा सकता। रामभाव जागृत करना याने हिंदू अस्मिता जागृत करना है। यह जिनकी समझ में आ गया है या समझ रहे हैं वे सबसे आगे रहते हैं और जिन्हें नहीं समझता वे पुरोगामी कहलाते हैं।

राम हमारी राष्ट्रीय अस्मिता का प्रतीक है। इस राम का जन्म अयोध्या में हुआ। जन्म स्थान पर श्री राम का भव्य मंदिर था। आक्रामक बाबर ने उसे तोड़ दिया। वह इसलिए तोड़ा क्योंकि उसे हिंदू अस्मिता समाप्त करनी थी। वह मंदिर तोड़ा गया, क्योंकि हिंदू राम को भूल गया। राम के दैवी गुणों की आराधना की अपेक्षा उसने तामसी गुणों की आराधना की। जातियों में ऊंच-नीच उत्पन्न किए, अस्पृश्यता निर्माण की। दिल में राम वाले मानव को उसने अछूत करार दिया। बहुत ही गलत कर्म कांडों में वह फंस गया, उसी को धर्म बतलाने लगा। पुरोहितों ने अलग-अलग कर्मकांड, पूजा, व्रत इत्यादि ढूंढ निकाले एवं उनको लोगों के गले उतारा। स्वयं के जीवन निर्वाह की व्यवस्था की। राम का यदि विस्मरण हो जाए, तो दैवी गुणों का भी विस्मरण हो जाता है। आसुरी गुणों का प्रभाव बढ़ता जाता है। इन आसुरी गुणों का विस्तृत वर्णन भगवान श्री कृष्ण ने गीता के 16वें अध्याय में किया है। इन आसुरी गुणों से हम हिंदू जीने लगे। इसके कारण तमोगुणी बाबर को सफलता मिलने लगी। बाबर गया, बाबर घराना समाप्त हो गया परंतु बाबर के वारिस समाप्त नहीं हुए। वे कहने लगे, ’अयोध्या में राम का जन्म हुआ, इसका क्या सबूत? राम नाम का कोई व्यक्ति हुआ, यह वास्तविकता है क्या? वास्तविक अयोध्या अफगानिस्तान या थाईलैंड में है, फिर यहां मंदिर निर्माण से क्या होगा? कोरोना जाने वाला है क्या? देश को मंदिर की अपेक्षा अस्पताल की आवश्यकता है, अयोध्या में अस्पताल बनाना चाहिए। मंदिर के बाजू में मस्जिद का निर्माण होना चाहिए, वह सर्वधर्म समभाव का प्रतीक होगा। बाबर के वारिस इससे अलग बोल ही नहीं सकते। बाबर का रक्त उनकी धमनियों में है या नहीं यह तो नहीं कह सकते परंतु विकृति का विष उनके दिमाग में जरूर भरा है। यह न बताते हुए भी ध्यान में आता है। इसके अलावा, क्या मंदिर बनाने से कोरोना दूर होगा? इस प्रकार के वाक्यों का उच्चार नहीं होता। इस विकृति के विष को पचाकर, नीलकंठ बनकर, हाथ में त्रिशूल लेकर, त्रिनेत्रधारी होकर हम खड़े हैं।

अब भूमि पूजन का कार्यक्रम निश्चित हो गया है। योग्य समय पर राम जन्म स्थान पर राम के भव्य मंदिर का निर्माण होगा। वह केवल मूर्ति पूजा का स्थान नहीं होगा। वह हमारी राष्ट्रीय अस्मिता का प्रतीक होगा। विश्व के सब राष्ट्र अपने राष्ट्रीय अस्मिता के प्रतीकों की रक्षा करते हैं। इन प्रतीकों से उस देश की राष्ट्रीय अस्मिता प्रकट होती है। न्यूयॉर्क में खड़ा ’स्टेच्यू आफ़ लिबर्टी’ अमेरिका की राष्ट्रीय अस्मिता का प्रतीक है। रशमोर पर्वत पर अमेरिकन राष्ट्र निर्माताओं के शिल्प उकेरे हुए हैं। वह अमेरिकी अस्मिता के प्रतीक हैं। फ्रांस में बेस्टाइल कारागार जहां था, वहां अब भव्य स्तंभ खड़ा है। नोटरड्रेन, रिम्स कैथेड्रल, फ्रांस की राष्ट्रीय अस्मिता के प्रतीक हैं। इंग्लैंड का विंडसर कैसल, कैंटरबरी कैथेड्रल, इंग्लैंड की अस्मिता के प्रतीक हैं। भारतीय अस्मिता का प्रतीक सोमनाथ, अयोध्या, मथुरा एवं काशी हैं। बाकी ताजमहल सहित सारे प्रतीक आक्रामकों की स्मृतियां हैं। ये स्मृतियां रखनी चाहिए, कारण आसुरी गुणसंपन्न होने के बाद क्या होता है इसके यह स्मारक हैं। अब हमें दैवी गुणों की संपदा निर्माण करनी है। प्रत्येक हिंदू व्यक्ति और उन व्यक्तियों से मिलकर बना समाज दैवी गुण संपन्न बनाना है। भव्य मंदिर याने भव्य भारत, यह हमारी दिशा है। आनंद की बात यह है कि, विवेकानंद की कथा में बकरी बना सिंह अब वनराज होने की राह पर है। उसे रोकने का दम किसमें है?

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Tags: #सबके_राम

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