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अभिलाषा है, लोगों के लिए कुछ कर पाऊ ….-अखिलेश चौबे

अभिलाषा है, लोगों के लिए कुछ कर पाऊ ….-अखिलेश चौबे

by अमोल पेडणेकर
in अगस्त-२०१५, साक्षात्कार
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आप मुंबई के प्रतिष्ठित वकील हैं, आपके यशस्वी होने में परिवार का योगदान किस प्रकार रहा?
पिता जी महानगरमालिका में शिक्षक थे और पठन-पाठन उनका काम था। सो हमारे घर में हमेश पढ़ाई का ही वातावरण रहा है। दसवीं पास करने के बाद मैं विद्यार्थी सेना के माध्यम से छात्र राजनीति की तरफ मुड़ गया था। अतः नौकरी में विशेष रुचि नहीं थी। बी.कॉम. में अच्छे अंक मिले तो मैंने एम.बी.ए. में प्रवेश ले लिया। हमारे मामाजी ने कहा, अगर नौकरी नहीं करनी है तो एम.बी.ए. करके क्या करोगे। लोगों के लिए कुछ करना है, अपने लिए कुछ करना है तो मुंबई शहर में वकालत शुरू कर लो। उसी समय रूपारेल कॉलेज में प्रवेश ले लिया और एल.एल.बी. की भी पढ़ाई पूरी की।

आप सामाजिक गतिविधियों में युवा अवस्था से ही योगदान दे रहे हैं। आपका इस संबंध में अनुभव कैसा है?
मुंबई को आर्थिक राजधानी कहा जाता है। जितना देश के बजट में या देश के इन्फ्रास्ट्रक्चर में मुंबई का योगदान है उस हिसाब से मुंबई को धन मिलना चाहिए जो नहीं मिला है। आज मुंबई जितना टैक्स दे रही है उस हिसाब से बेहतर जिन्दगी उसे नहीं मिल रही है। इसलिए यहां सामाजिक तौर पर काम करने की बहुत बड़ी आवश्यकता है। ग्रामीण क्षेत्र से आदमी रोजी-रोटी की तलाश में जब किसी शहर में आता है, तो उसकी अपेक्षा होती है कि आने वाले समय में वह अच्छी जिंदगी जी पाएगा। लेकिन वैसा हो नहीं रहा है।
मेरी ईश्वर से हमेशा प्रार्थना रहती है कि मैं समाज के गरीब तबके के लोगों के लिए कुछ कर सकूं। मेरा योगदान इसी दिशा में होता है।

आपने सामाजिक कार्यों के साथ राजनीति में भी अपना योगदान दिया है। राजनीति में आप कैसे आए और राजनीति में आपका योगदान किस तरह रहा?
जब मैंने कॉलेज में प्रवेश लिया तब भारतीय विद्यार्थी सेना की कमान राज ठाकरे के हाथ में दी गई। मैं उस समय उनके संपर्क में आया और विद्यार्थी सेना में रहते हुए हमने विद्यार्थियों के हित में काफी काम किया। बीच में शिवसेना में एक बडी दरार पड गई। जिसके कारण राज साहब भी सात-आठ साल सक्रिय राजनीति में नहीं थे। फिर मैं अपने प्रैक्टिस में लग गया और हमारे साथ के लोग भी अपने-अपने कामों में लग गए। २००६ में राज ठाकरे ने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना की घोषणा की, तो हम फिर एकत्रित हुए और उनके इस अभियान में काम करना चाहा। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना की संरचना हमारे सामने ही हुई थी। और एक ऐसी पार्टी स्थापित करने की कोशिश थी, जो विकास को समझें। स्थानीय लोगों के विकास के साथ ही विकास पर ज्यादा बल देना था। बाद में हुए आंदोलन के तहत उसकी दिशा कुछ बदलने लगी, जबकि मूल स्वरुप में ऐसा कुछ नहीं था। जिस तरह से मनसे को लोगों के सामने लाया गया, जिस तरह से एक तबके ने उसका समर्थन किया, उससे कहीं न कहीं समाज में विषमता पैदा होने लगी। ऐसा लगने लगा कि हमारी पार्टी दिशा भटक गई है। आनेवाले भविष्य में कुछ दिख नहीं रहा था। इसलिए हमने मोदी जी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी के साथ कार्य करना प्रारंभ किया। तब मुझे लगा कि यह राष्ट्रहित का कार्य है। इसलिए मैंने भारतीय जनता पार्टी में प्रवेश किया।

राजनीतिक कार्य करते हुए आपने समाज के पिछड़े लोगों के लिए कार्य किया है। उस कार्य की जानकारी दीजिए?
हम जिस उत्तर मुंबई में रहते हैं, वहां छात्रों की संख्या बहुत है, उन्हें मूलभूत सुविधाएं नहीं मिलतीं। हमने पिछले दस सालों से लगातार लगभग हजार से बारह सौ बच्चों को सारी शैक्षणिक चीजें मुहैया कराई है। इसके अलावा बहुत सी छोटी छोटी चीजें हैं, लेकिन हैं महत्वपूर्ण इसलिए उन्हें मुहैया कराने की कोशिश की। सड़क पर धंधा करने वाले फेरीवाले बरसात में भीगते रहते हैं। इसे ध्यान में रख कर करीब आठ सौ से हजार बड़ी छत्रियां हम उन्हें उपलब्ध कराते हैं। इसके अलावा गरीब तबके के लोगों के लिए चिकित्सा शिविर, हर साल बड़ा चिकित्सा शिविर कांदिवली के ठाकुर कॉम्पलेक्स में लगाते हैं। करीब पंधरह सौ से दो हजार लोग इसका लाभ लेते हैं। गरीब महिलाओं को साड़ियां भी दी जाती हैं। महिलाओं के लिए निःशुल्क कंप्यूटर प्रशिक्षण केंद्र की सुविधा उपलब्ध कराई हैं। आनेवाले समय में महिलाओं को सिलाई का प्रशिक्षण देने की कोशिश कर रहे हैं। उन्हें एक सिलाई मशीन देने की कोशिश है ताकि वे घर पर कुछ आमदनी कर सके और उनके बच्चों का भविष्य बेहतर हो सके। जो संभव है वह हर कोशिश हम कर रहे हैं।

आपने अभी जो कार्य बताए हैं वे समाज के जरूरतमंद तबके के लिए है। लेकिन कोई ऐसा कार्य बताए जिससे आपको सुकून मिलता होगा।
पिछले चुनाव केपहले हमारे यहां करीब तीस से चालीस शौचालय बहुत ही खराब हालत में थे। ंकुछ जगाहों पर तो महिलाओं को शौचालय मैं दरवाजे को हाथ में पकडकर बैठना होता था। तब मैं न नगरसेवक था, न ही एम.एल.ए.। किसी तरह का सरकारी फंड नही होते हुए भी, मैंने उनकी मरम्मत करवाई। उसके बाद उन महिलाओं ने जो मुझे जो आशीर्वाद दिया, मुझे लगता है, वही मेरे लिए महत्वपूर्ण था। दूसरी सुकून देने वाली बात थी जर्जर हुए छोटे मंदिरों की मरम्मत। हमारे क्षेत्र में कुछ ऐसे बहुत छोटे-छोटे मंदिर थे, जो गिरने की अवस्था में थे। मैंने करीब पांच से छह अच्छे मंदिरों की पूरी तरह मरम्मत करवाई। उनमें देवी और शंकर भगवान की मूर्तियों की स्थापना की। तीसरा सुकून देने वाला कार्य था फेरीवाले को बड़ी-बड़ी छत्रियां देना। एक रोज मैं मालाड से निकल रहा था। मालाड से कांदिवली आते हुए मुझे रास्ते में करीब सत्तर से अस्सी फेरीवाले उसी छत्री के कारण वर्षा से बचते हुए दिखाई दिए। मुझे लगता है कि ये बहुत छोटे काम थे, पर दिल को बहुत सुकून मिला।

आप एक प्रतिष्ठित अधिवक्ता के रूप में अपना योगदान दे रहे हैं। ऐसे कौन से विशेष मामले हैं, जिनमें आपका योगदान रहा है?
बहुत सारे मामले हैं जो हम लड़ रहे हैं। बहुत सारे घोटाले हैं। हर्षद मेहता केस में मैने कुछ वक्त दिया। शूटआउट के एक मामले में ब्रिजेश सिंह नामक कथित माफिया की मैंने पैरवी की। जिनके साथ बहुत बड़ी नाइन्साफी हुई ऐसा एक मामला विरार का मनियार मर्डर केस था। जिसमें सामने बहुत बाहुबली लोग थे। उसमें मैंने उनको इन्साफ दिलाया। इसके अलावा मुकदमे की फीस देने में अक्षम समाज के गरीब लोगों के सत्तर परसेन्ट केसेस मैंने बिना फीस लड़े हैं। मुझे उसमें ज्यादा सुकून मिला है। जिस तरह सलमान खान को दो घंटे के अंदर जमानत दी गई उसके खिलाफ मैंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। मेरा मानना है कि कुछ समय में उस पर अवश्य निर्णय आ जाएगा। मेरा सलमान खान को विरोध नहीं है। लेकिन सिर्फ सलमान सलीम खान को अलग न्याय और सलमान सय्यद खान को अलग न्याय, यह गलत है। सभी को समान न्याय मिलना चाहिए। उसके लिए मैंने याचिका दायर की है। इसके अलावा कई ऐसे केसेस हैं। एस.आर.ए. प्रोजेक्ट सर्विसेस में गरीब टेनन्ट लोगों के लिए उनके इंसाफ की लड़ाई लड़ रहा हूं।

गंगा नदी के संदर्भ में आपकी भावनाओं को स्पष्ट कीजिए?
देखिए गंगा हमारी मां है। अगर आप बहुत ध्यान से भारतीय इतिहास पढ़ेंगे तो पाएंगे कि हमारी सभ्यता का विकास गंगा के आसपास ही हुआ है। कभी काशी एक ऐसा क्षेत्र था। बनारस ऐसा क्षेत्र था जहां पूरे देश के राजा-महाराजाओं के बच्चे शिक्षा ग्रहण करते थे। पूरे देश का वह एक शिक्षा का केंद्र था। शिक्षा का केंद्र इसलिए था कि वहां से गंगा बहती थी। जैसे जैसे गंगा का प्रदूषण बढ़ा, भारत की भी अमानना होती गई। भारत में भी प्रदूषण बढता गया। लंदन शहर थेम्स नदी के किनारे बसा हुआ है। १८५० में थेम्स नदी का प्रदूषण इतना बढ़ गया था कि उस नदी में एक भी जीव नहीं रहता था। १८५३ में उन्होंने स्वच्छता कंा कार्य शुरु किया और ३० साल बाद उनको सफलता मिली। और आज थेम्स नदी दुनिया की सबसे स्वच्छ नदी कही जाती है। थेम्स नदी से बड़ा महत्व गंगा नदी का है। क्योंकि गंगा नदी का पानी प्राकृतिक रूप से स्वयं को प्रदूषण मुक्त करता है। किसी भी नदी का पानी अगर आप बोतल में भरके साल-दो साल रखेंगे तो उसमें कीड़े पड़ जाएंगे। पर गंगा नदी के पानी में आपको कीड़े नहीं मिलेंगे। लेकिन अब वहां प्रदूषण का स्तर भीषण है और पानी को स्वयं साफ करने की प्राकृतिक क्षमता जवाब दे चुकी है। इसका सबसे बड़ा कारण है कानपुर, हरिद्वार, वाराणसी ऐसे शहर जहां पर सीवरेज व्यवस्था ही नहीं है। इस कारण करोडों लोगों का मलमूत्र गंगा नदी में मिल रहा है। अब मा. नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में उमा भारती जी ने एक अच्छा कार्य शुरू किया है। इस कार्य में कहीं न कहीं समाज की इच्छाशक्ति होनी चाहिए। हमारे प्रधान मंत्री और उमा भारती के कार्य में देश के लोगों की इच्छाशक्ति लगेगी तो ही गंगा साफ हो पाएगी।

गंगा के प्राकृतिक स्वरुप को विकृत करने के जो प्रयास हुए हैं उन्हें कानून किस दृष्टि से देखता हैं?
देखिए मैं एक ही मानता हूं कि अगर आप कानून बनाकर कहेंगे कि भूखा ंरोटी नहीं लेगा तो ये संभव नही है। भूखा तो रोटी लेगा ही। इसलिए सिर्फ कानून से गंगा साफ नहीं होगी। कानपुर, वाराणसी में सबसे पहले आपको सीवरेज प्लांट लगाने पडेंगे। उसके बाद अपने कानून को आपको सुचारू करना पड़ेगा। आज लोगों में गंगा स्वच्छता संदर्भ में भावनाएं पैदा हुई हैं। मोदी जी के नेतृत्व के कारण लोगों को गंगा स्वच्छता का विषय समझ में आ रहा हैं। लोग चाहते हैं कि गंगा को गंदा नहीं करें, लेकिन उसके लिए आपको उचित सुविधाएं देनी पड़ेगी। अगर आप चाहते हैं अगर रोड साफ रहे तो आपको रोड साइड में कचरे की पेटी रखनी पड़ेगी। आप चाहते हैं कि बाहर कोई शौच नहीं करें तो आपको शौचालय बनाने पड़ेंगे। आपको सबसे पहले गंगा किनारे बसे जितने शहर हैं उनके सीवरेज प्रिवेन्ट्स प्लांट लगाने होंगे। उसके बाद ही आप कानून बनाकर उसको रोक सकते हैं।

प्रदूषण के विषय में उत्तर प्रदेश सरकार पर्याप्त मात्रा में ध्यान दे रही है क्या ऐसा आपको लगता है?
मुझे लगता है कि, अखिलेश यादव जी की सरकार इस मामले में कुछ कर ही नहीं रही है। एकदम निष्क्रिय सरकार है। आज मैं भारतीय जनता पार्टी में हूं इसलिए ऐसा कह रहा हूं ऐसी बात नहीं है। उत्तर प्रदेश का होने के नाते मुझे ऐसा लग रहा है उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था की हालत बदतर है। ऐसा लग ही नहीं रहा कि वहां कोई कानून है। सारे समाजवादी पार्टी के ठेकेदार पुलिस स्टेशन में बैठे हुए हैं। और वहां से सरकार चल रही है। इनकी तो मानसिकता ही ऐसी नहीं है कि ये गंगा के बारे में कुछ सोचें। इसलिए राज्य सरकार सें कोई अपेक्षा नहीं है। जो करना होगा वह केंद्र सरकार को ही करना होगा।

सुप्रीम कोर्ट ने गंगा शुध्दिकरण कार्य की गति बढ़ाने संदर्भ में अपनी तीखी प्रतिक्रिया प्रकट की है। उस संदर्भ में आप क्या सोचते हैं?

सुप्रीम कोर्ट ने बहुत ही सटीक अवलोकन किया है। गंगा की अब तक की प्रदूषण की स्थिति में कोई कमी नहीं आई है। पिछले पच्चीस साल से गंगा की सफाई का कार्यक्रम चल रहा है। उस पर करोड़ों रुपये खर्च हो रहे हैं। बुनियादी चीजें अभी तक नहीं हुई है। आज भी बनारस का मल वहीं जा रहा है। इसके लिए पहले बुनियादी चीजों पर काम करना होगा। और इस पर काम करने में थोड़ा वक्त लगेगा। सुप्रीम कोर्ट ने एकदम सही सटीक अवलोकन दिए हैं।

क्या आपको ऐसा लगता है कि कानून के तहत नियम कड़ाई से लागू करने से समाज में परिवर्तन आएगा?
१०० फीसदी आएगा। नियम ही परिवर्तन लाते हैं। आप मुझे बताइए आज से पांच साल पहले हेल्मेट का कानून था, पर पालन नहीं हो रहा था। जब से हेल्मेट का कानून सख्त हुआ तब से लोगों को ये डर लगने लगा कि कानून का पालन नहीं होगा तो हमें जुर्माना होगा। लोगों ने हेल्मेट पहनना शुरू कर दिया। और उससे दुर्घटनाओं में मौत की मात्रा में कमी आई है। हर आदमी नियमों का पालन करना चाहता है। सरकार अगर एक उदाहरण के माध्यम से लोगों के सामने इस तरह की चीजें प्रस्तुत करेगी तो मुझे लगता है इससे बहुत फर्क पड़ेगा।

उत्तर प्रदेश की राजनीति के संदर्भ में आप क्या सोचते हैं?
मुझे लगता है मोदी जी के आने के पहले और मोदी जी के आने के बाद इस तरह हम उत्तर प्रदेश की राजनीति को दो भागों में बांट सकते हैं। मोदी जी के आने से पहले उत्तर प्रदेश की राजनीति सिर्फ और सिर्फ जातिवादी राजनीति थी। जाति के हिसाब से ही वहां सारी चीजें चल रही थीं। कोई हाथी को अपना कहता था। कोई साइकल को अपना कहता था। पिछले लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश का समीकरण बदल गया है। आनेवाले विधानसभा चुनाव में मुझे ऐसा लगता है उसका बहुत बड़ा परिणाम दिखेगा। वाराणसी विकास का मॉडल है। अगले चुनाव के पहले उसमें कुछ विकास हो गया तो बनारस में जो हुआ वह विकास यू. पी. में भी हो सकता है यह धारणा उत्तर प्रदेश के वासियों में निर्माण होगी। तीन सौ से ज्यादा सीटें भारतीय जनता पार्टी को आनेवाले विधान सभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में मिलेगी। उत्तर प्रदेश को बहुत सालों बाद एक ऐसी सरकार मिलेगी जो उत्तर प्रदेश का चेहरा बदल देगी। उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बना देगी।

उत्तर प्रदेश के आगामी चुनाव में आप अपने को कहां देखते हैं?
देेखिए उत्तर प्रदेश की राजनीति सचमुच एक अलग ही राजनीति है। भाषावाद से लेकर जातिवाद तक हर एक चीज वहां सक्रिय है। हम लोग एक पढ़े-लिखे और सुसंस्कृत समाज की अपेक्षा कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश से मुंबई में आकर अपना विकास करने के बाद आज हमें लगता है के हमारा जो ज्ञान है उसका फायदा उत्तर प्रदेश को भी मिले। वहां के लोगों को मिले। उत्तर प्रदेश में आनेवाले चुनाव में मेरी क्या भूमिका हो यह तो पार्टी का नेतृत्व ही तय करेगा। परंतु कहीं न कहीं यह तमन्ना है कि हमारे क्षेत्र जौनपुर के विकास में अपना योगदान दे सकूं।

जौनपुर की आज की स्थिति क्या है? और आप स्वप्न का जौनपुर किस प्रकार देखते हैं?
देखिए, उत्तर प्रदेश में पूर्वांचल के दो जिले गाजीपुर और जौनपुर राजनीतिक, सामाजिक तौर पर बहुत ही पिछड़े हुए हैं, जबकि वहां से कई मंत्री हुए, कई नेता हुए। लेकिन जौनपुर को जैसा होना चाहिए वैसा नहीं हुआ, जबकि यह ऐतिहासिक शहर है। एक समय में पूरे देश की कमान वहां से चलती थी। लेकिन आज ये हालात है कि जौनपुर में एक अच्छा हॉस्पीटल नहीं हैं, अच्छा इंस्टीट्यूट नहीं है। मतलब सरकार की तरफ से जौनपुर की अब तक उपेक्षा की गई है। मुझे लगता है कि अब सकारात्मक राजनीति जरूरत है।

मोदी सरकार ने योग दिवस मनाया, सरकार गंगा नदी के शुध्दिकरण में योगदान दे रही है। यह हिंदुत्व के प्रतीको को प्रस्थापित करने का प्रयास है, ऐसी कुछ लोगों की राय है। आप इसे किस दृष्टि से देखते हैं?
मुझे लगता है जो भी लोग इस तरह की बात कर रहे हैं उनका वैचारिक दीवालियापन इसमें दिख रहा है। आप गंगा नदी को प्रस्थापित करने की बात कर रहे है, तो मुझे लगता है, हिंदू तत्वज्ञान ने दुनिया को जो कुछ जायज तोहफे दिए हैं उनमें योग, गंगा, गौमाता शामिल हैं। आज दुनिया के किसी भी धर्म में योग जैसी कोई चीज दिखाई नहीं देती है। योग लोगों के स्वास्थ्य के लिए अच्छा है। लोगों को अच्छी चीज समझाती है तो आप उसे हिंदुत्व से हटकर देखिए। आज अगर अंग्रेजी दवा आपका कैंसर ठीक कर रही हे तो आप उसे सिर्फ इसलिए नहीं खाए कि ये वेस्टर्न कल्चर की बनी हुई है तो मुझे लगता है ये बहुत बड़ी बेवकूफी होगी। आज योग दिवस अंतरराष्ट्रीय स्तर पर १९३ देशों ने मनाया है। आज १९३ देशों में ये योग दिवस मनाया जा रहा हैं, पांच साल बाद ये दुनिया भर में फैल जाएगा। जिस दिन ये फैशन के तौर पे उभरेगा उस दिन करीब ३ करोड़ लोगों को रोजगार मिलेगा। गंगा गंगा हैं। थेम्स जैसी दस नदियां उसमें समाती हैं। अगर उसको प्रस्थापित करने की, योग को प्रस्थापित करने की अगर कोई बात करें तो उसमें क्या गलत है? अमेरिका में करीब उन्नीस फीसदी लोग रोज योग करते हैं। क्या वे सभी हिंदू हैं? वे इसलिए कर रहे हैं क्योंकि उन्हें फायदा हो रहा है। और जिस से मानव जाति को फायदा होगा, मानव जाति उसको अपनाएगी। किसी भी धर्म, किसी भी पंथ से परे होकर अपनाएगी और यही आनेवाले समय में होनेवाला है।

आपने शून्य से शिखर तक प्रवास किया है। आज सामाजिक, राजनैतिक क्षेत्र में आप अपना योगदान दे रहे हैं। आप इस मोड़ पर आने के बाद जब पीछे मुड़कर देखते हैं तो अपने बारे में मन में कौन से विचार आते हैं?
मुझे लगता है कि पिछला विधान सभा चुनाव जो मैंने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना की ओर लड़ा था, उस चुनाव के नतीजे के बाद मैं भी पीछे मुड़कर ही देख रहा था। और कहीं न कहीं मुझे ऐसा लगा कि जो कुछ मुझे मिला है ये समाज ने ही दिया है। मुझे नहीं लगता कि मुंबई जैसे शहर में नाम कमाना कोई बड़ी चीज है। अपने दामन पर कोई दाग लगाए बिना एक शिक्षक का बेटा जब इस स्तर पर पहुंचा है तो मुझे ऐसा लगता है कि मैं कुछ सही कर रहा हूं। आज समय आ रहा है कि धीरे-धीरे हम समाज को कुछ दें। और समाज को लौटाने का सबसे अच्छा मार्ग मुझे आर.एस.एस. लगा। मुझे सिर्फ समाज को देने का ही काम करना है तो आर.एस.एस. के माध्यम से भारत के लोगों के लिए कुछ कर सकूं ये अभिलाषा है। और जिस दिन लोगों के लिए कुछ कर पाऊंगा उस दिन मुझे ऐसा लगेगा कि मैं शिखर पर आया हूं। आज मैं जहां हूं मुझे ऐसा लगता है कि, शिखर तो बहुत दूर की बात है। राजनीति में आने का मकसद सिर्फ एक ही है कि लोगों के लिए मैं कुछ करना चाहता हूं। जो सपने मेरे माता-पिता ने मेरे लिए देखे या जो मैंने अपने लिए देखे थे मुझे लगता है कि कहीं न कहीं वे पूरे हो चुके हैं। एक तरह की आत्मशांति मुझे मिल चुकी है। अब अगर कुछ करना है तो लोगों के लिए करना है।

भविष्य की योजना क्या है?
भविष्य में राजनीति और आर.एस.एस. के माध्यम से मैं लोगों के लिए जितना कुछ कर सकूं वह करना है। हम आर.एस.एस. के प्रचारक नहीं बन सकते क्योंकि हम परिवार में रहते हैं। परंतु आनेवाले समय में मैं अपना पूरा समय संघ कार्य को देना चाहता हूं।

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