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गंगा प्रवाह को यातायात का माध्यम बनाने का प्रयास – नितिन गडकरी

गंगा प्रवाह को यातायात का माध्यम बनाने का प्रयास – नितिन गडकरी

by अमोल पेडणेकर
in अगस्त-२०१५, साक्षात्कार
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केंद्र सरकार ने देश में १०१ नदियों को जलमार्ग में तब्दील करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। गंगा में वाराणासी से हल्दिया तक जहाज चलाने पर काम चल रहा है। जलमार्गों को प्रोत्साहन देना हमारी प्राथमिकता है; क्योंकि इससे भूतल एवं रेल यातायात का बोझ कम होगा। साथ ही यह किफायती और पर्यावरण की दृष्टि से भी अच्छा रहेगा। पेश है केंद्रीय सड़क परिवहन, राजमार्ग एवं जहाजरानी मंत्री मा. नितिन गडकरी से गंगा एवं अन्य नदियों की आर्थिक शक्ति के उपयोग की योजना पर बातचीत के महत्वपूर्ण अंश-

गंगा को आप किस दृष्टिकोण से देखते हैं?

गंगा को हम सब मां के रूप में देखते हैं। वह हमारी आस्था की प्रतीक हैं। हमारे लिए गंगा केवल एक नदी नहीं है, वह मां है, फलदायनी है। वह हमें अपना आचरण पवित्र बनाए रखने के व्रत से बांधती है। दिव्य नदी के रूप में वह भारत में ही नहीं, बल्कि पृथ्वी की सभी नदियों की प्रतिनिधि है और हमें सभी नदियों की पवित्रता की रक्षा करने के लिए अपने कर्तव्य का स्मरण कराती है। वह मां की तरह ही भरण पोषण भी करती है। देश का चौथाई और ४३ प्रतिशत से अधिक आबादी किसी न किसी रूप में मां गंगा पर आश्रित है। उसका एक अमृतदायी प्रवाह है जो हमारे खेत-खलिहानों से लेकर सब तरह की समृद्धि और शुचिता बनाए रखने का माध्यम रहा है। यही कारण है कि भारतीय जहां भी रहे, अपने यहां की सब नदियों, जलधाराओं को गंगा के रूप में ही देखते रहे। यहां तक कि जब वे दक्षिण एशिया की गौरवशाली नदी मेकांग के तट पर निवास करने लगे तो उसे मां गंगा ही कहा गया। मेकांग मां गंगा का ही अपभ्रंश हैं। महाराष्ट्र के वर्धा जिले से होकर बहने वाली धाम नदी को भी धाम गंगा कहा जाता है।

गंगा के भौगोलिक, सामाजिक और आध्यात्मिक महत्व को आप कैसे देखते हैं?

गंगा और इसकी सहायक नदियां उत्तर, पश्चिम, मध्य और पूर्वी भारत के विशाल हिस्से को तब से संपोषित कर रही हैं, जब इस भूभाग को भारत नाम भी नहीं पड़ा था। यहां के लोग पानी, भोजन, जल-मल निकास और औद्योगिक-व्यापारिक गतिविधियों के लिए गंगा और उसकी सहायक नदियों पर प्राचीन काल से निर्भर हैं। संस्कृति धर्म और अनुष्ठान, कुल मिलाकर भारतीय मानस की गहराई में गंगा इस हद तक है कि दूसरी नदियों को भी उसके वास्तविक नाम के साथ साथ गंगा कहकर पुकारा जाता है। गंगा की

मुख्य धारा २५२५ किलोमीटर लंबी है। यह गोमुख से चलकर उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल से गुजरते हुए गंगा सागर में मिलती है। मध्य प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान आदि कई अन्य राज्य भी गंगा प्रणाली का हिस्सा है। पूरी गंगा घाटी भारत, नेपाल, तिब्बत और बांग्लादेश के १०,८६,००० वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैली है। इसका सबसे बड़ा हिस्सा लगभग ८,६२,६६९ वर्ग किलोमीटर भारत में मौजूद है।

गंगा के शुद्धिकरण की योजना में आपके मंत्रालय का योगदान किस प्रकार होगा?

गंगा के शुद्धिकरण के लिए हम सब मिलकर काम कर रहे हैं। एक टीम भावना से। गंगा का शुद्धिकरण हमारी सरकार की प्राथमिकता है। गंगा के किनारे बसे ११८ शहरों और १६३२ गांवों का मल-मूत्र भी गंगा में पहुंचता है। जब मेरे पास ग्रामीण विकास मंत्रालय की जिम्मेदारी थी तो इस संबंध में एक योजना पर काम शुरू हुआ था। गंगा के शुद्धिकरण के काम में हम सब एक टीम के रूप में काम कर रहे हैं। इसके अलावा कानपुर, इलाहाबाद आदि में प्रदूषित पानी गंगा में छोड़े जाने की बजाए इन्हें उद्योगों को फिर से इस्तेमाल के लिए दिया जाएगा।

गंगा को आर्थिक शक्ति में तब्दील करने की सरकार की योजना है, इस योजना का वास्तविक स्वरूप क्या है?

गंगा हमेशा से ही आध्यात्मिक के साथ ही आर्थिक रूप से भी हमारा भरण पोषण करती रही है। गंगा का इलाका उपजाऊ रहा है। इसे पर्यटन के रूप में भी देखने की जरूरत है, खासकर आध्यात्मिक पर्यटन। हमारे धर्म और अध्यात्म को समझने के लिए दुनिया हमेशा लालायित रही है।

इस योजना में स्थानीय सरकारों और केन्द्र सरकार का योगदान किस प्रकार है?

हमें इसे केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच बांट कर नहीं देखना चाहिए। इस दिशा में हम मिलकर आगे बढेंगे। जहां राज्य सरकारों की भूमिका है वहां वह निभाएं, जहां हमारी यानि केन्द्र सरकार की भूमिका है वहां हम निभाएं। मुझे विश्वास है कि केन्द्र और राज्य सरकारें इस दिशा में मिलकर आगे बढेंगी।

गंगा जलमार्ग में परिवहन की योजना क्या है?

अंतरदेशीय जलमार्ग बनने से एक स्थान से दूसरे स्थान तक सामान को लाने ले जाने में काफी सहूलियत होगी। इसके जरिये उर्वरक, कोयला, खाद्यान्न आदि को ढोया जा सकेगा। नदियों को जलमार्ग में बदलने से देश में आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा क्योंकि यह परिवहन का सस्ता माध्यम है। इसीलिए सरकार ने १०१ नदियों को जलमार्ग में तब्दील करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। गंगा में वाराणासी से हल्दिया तक जहाज चलाने पर काम चल रहा है। जलमार्गों को प्रोत्साहन देना हमारी प्राथमिकता है; क्योंकि इससे भूतल एवं रेल यातायात का बोझ कम होगा। साथ ही यह किफायती और पर्यावरण की दृष्टि से भी अच्छा रहेगा। दुर्भाग्यवश यातायात के इस जरिये के बारे में अभी तक देश में नहीं सोचा गया है जबकि चीन में इसी तरीके से ४७ प्रतिशत यातायात संपन्न होता है और यूरोप में भी इस विधि से ४० प्रतिशत यातायात चलता है। जलमार्गों से यातायात का खर्च ३० पैसे प्रति किलोमीटर आता है जबकि रेल और सड़क मार्ग परिवहन में यही खर्च १ और १.५ रुपए प्रति किलोमीटर तक आता है। जापान और कोरिया जैसे देश भी जलमार्गों पर निर्भर हैं जबकि भारत में अभी यातायात के लिए जलमार्गों का इस्तेमाल मात्र ३.३ प्रतिशत ही है। इसमें ३ प्रतिशत समुद्री परिवहन का हिस्सा है जबकि अंतरराज्यीय जलमार्ग परिवहन का प्रतिशत सिर्फ ०.३ है। मौजूदा समय में देश के पांच राष्ट्रीय जलमार्गों में गंगा-भगीरथी-हुगली नदी (इलाहाबाद-हल्दिया-१६२० किलोमीटर), ब्रह्मपुत्र (धुबरी-सादिया-८९१ किलोमीटर), उद्योगमंडल और चंपकारा नहरों सहित पश्चिम तटीय नहर (कोट्टपुरम-कोल्लम-२५० किलोमीटर), गोदावरी और कृष्णा नदियों सहित काकीनाडा-पुडुचेरी नहरें (१०७८ किलोमीटर) और ब्राह्मणी एवं महानदी डेल्टा नदियों सहित पूर्वी तटीय नहर (५८८ किलोमीटर) प्रमुख हैं।

गंगा का क्षेत्र आध्यात्मिकता एवं श्रद्धा से जुड़ा धर्मक्षेत्र है इस परिवर्तन से भविष्य में गंगा पर्यटन क्षेत्र में बदल जाएगा?

गंगा एवं अन्य नदियों की स्वच्छता के बारे में अध्ययन के लिए शोध संस्थान भी स्थापित करेगा। कोई कदम उठाने से पहले यह भी देखा जाएगा की गंगा की पवित्रता प्रभावित न हो। आखिर गंगा हमारी आस्था है। वह हमारी मां है, बेटे को मां की इसी तरह चिंता करनी चाहिए जिस तरह मां बेटे की चिंता करती है।

अमोल पेडणेकर

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