सामाजिक जिम्मेदारी का ख्याल रखें-दगडूशेठ बाहेती

आप पुणे के सफल व्यापारी हैं। कृपया अपने भूतकाल के बारे में बताएं?
मैं लातूर से हूं। १९६० के बाद पुणे आया। किराने की दुकान में एक साल काम किया। तुलसी बाग में कल्पना साडी की दुकान में दस साल नौकरी की। १९७४ में उसी दुकान के मालिक के हाथ से उद्घाटन करके ‘अनामिका’ नामक खुद की दुकान खोली। अब वह पुणे की बड़ी दुकानों में से एक है।

पानशेत की बाढ़ के समय मैं पुणे में था। उस बाढ़ में मेरे चाचा बह गए। मेरे दोस्तों को उनका शव ससून के पास मिला। बैलगाड़ी में वह लाकर अंत्यसंस्कार किया। तब मेरी हालत बहुत खराब थी। पिताजी का निधन तो पहले ही हो गया था। मेरी मां कमलाबाई ने छात्रावास में खाना बनाने का काम कर मेरी परवरिश की। उस समय माहेश्वरी भाइयों ने मेरी मदद की,जिस से मैं यहां तक पहुंचा।

समाज कार्य में आपकी रूचि कैसे निर्माण हुई? अभी किस प्रकार के सामाजिक कार्य कर रहे हैं?
मुझ पर आई मुसीबत के समय मेरे माहेश्वरी भाइयों की मदद को मैं कैसे भूल सकता हूं? यह बात सच है कि मुझे उनसे प्रेरणा मिली। मेरी मां का योगदान भी बड़ा ही महत्वपूर्ण है। छात्रवास में रसोई बनाते समय बाहरगांव से आने वाली छात्राओं की समस्याओं को समझ कर उन्होंने पुणे में ‘लेडिज होस्टेल’ की शुरुआत की। समाज सेवा की सच्ची जरूरत तब से मेरी समझ में आई।

कारोबार में स्थिरता प्राप्त होने पर ‘महेश सेवा संघ’, ‘माहेश्वरी प्रगति मंडल’, रक्तदान शिविर, सामूहिक विवाह इत्यादि सामाजिक कार्यों में हिस्सा लिया। शिक्षा के क्षेत्र में कापियां बांटने के कार्यक्रम का आयोजन किया। स्वास्थ्य क्षेत्र में पुणे हॉस्पिटल के माध्यम से स्वास्थ्य शिविर का आयोजन किया। उसी चिकित्सालय का पहला कमरा स्वर्गीय पिताजी कि स्मृति में बनवा दिया। समाज कार्य के साथ साथ कुछ समय बाद राजनीति के क्षेत्र में प्रवेश किया। तत्कालिन जनसंघ के नेता अन्ना जोशी की सहायता से स्थानीय राजनीति के विविध उपक्रम आयोजित किए। कुछ समय स्थानीय पदों पर कार्यरत रहा। वर्तमान में माननीय विधायक गिरीशजी बापट, मुक्ताताई तिलक इत्यादि मान्यवरों के साथ जनता की समस्याएं सुलझाने की कोशिश करता हूं। आजकल कसबा विभाग के जेष्ठ नागरिक संघ का अध्यक्ष हूं।

आपके सामाजिक क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान पर प्रकाश डालिए?
नारायण पेठ के बालाजी मंदिर का ट्रस्टी होने के कारण उस मंदिर के जीर्णोद्धार में सहयोग किया। मंदिर बनाते समय मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा और जीर्णोद्धार के बाद प्रथम पूजा करने का सम्मान मिला। यह ईश्वर की कृपा ही है। महेश बैंक का संचालक था, तब मैंने लक्ष्य रखा था कि ‘छोटे लोगों को भी बड़ा बनाना चाहिए।’ जिस प्रकार मेरी मां ने छात्रावास में खाना बनाने का काम किया वहीं मैंने सारी सुविधाओं से उक्त रसोई घर बना दिया।

बालकों को छात्रवृत्ति देते समय सिर्फ मेरिट या गुणों के आंकड़े न देखते हुए उसकी पारिवारिक जरूरत, वह भविष्य में घर का कर्ता बनेगा इस बात को ध्यान में रख कर मदद दी। यह प्रयोग अत्यंत सफल हुआ। आजकल मैं ‘बिझीलैंड’ सहकारी संस्था का अध्यक्ष हूं। अहमदनगर के एक ट्रस्ट का ट्रस्टी हूं। यह ट्रस्ट विविध तीर्थस्थलों पर अन्नदान करता है। उस्मानाबाद में बालाजी मंदिर के कार्यालय में ‘वधु वर कक्ष’ के लिए कई कमरे बनाए हैं।
युवकों के लिए क्या संदेश देंगे?
सामाजिक जिम्मेदारी का ख्याल रख कर कुछ ठोस कार्य करें।

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