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सुख बांटते चलो- विठ्ठल मणियार

सुख बांटते चलो- विठ्ठल मणियार

by विशेष प्रतिनिधि
in साक्षात्कार, सितंबर- २०१५
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आजतक के अपने जीवन सफर के बारे में आप क्या कहना चाहेंगे?
हम मूलत: राजस्थान के हैं। परंतु एक सौ दस साल से पुणे में ही रहते हैं। मेरा जन्म पुणे में ही हुआ। राजस्थान सूखाग्रस्त इलाका है। पेट पालने के लिए मेहनत करनी पड़ती है; इसलिए हमारा समाज यहां-वहां बिखर गया। इसमें समाज के दो गुण नजर आते हैं।

१.साहस- अपना घर बार छोड़कर परिवार के साथ दूसरी जगह रहने का साहसी गुण समाज में है।
२.आत्मविश्वास- ‘जहां जाएंगे वहां सफल बनेंगे’ इस आत्मविश्वास के बल पर दूर देस जाना, अनजाने स्थल पर कारोबार करना, अपनी मेहनत के बलबूते पर समाज में मेलजोल बढ़ाना और यश प्राप्त करना। यह आत्मविश्वास तो है ही, हालात के साथ मुकाबला कर के सफल बनने की मूलभूत प्रवृत्ति भी है।
मजाक से कहा जाता है कि ‘जहां न जाए रेल गाडी, जहां न जाए मोटर गाडी, जहां न जाए हाथ गाडी, वहां पहुंचे मारवाडी।’
इसमें मारवाड़ी समाज के माहेश्वरी, ब्राह्मण, वैश्य आदि जाति उपजातियों का समावेश है।
जिस गांव में ये जाएंगे उस कर्मभूमि को वे मातृभूमि का दर्जा देंगे। समर्पित भावना से काम करेंगे। उनकी इस प्रवृत्ति के कारण समाज में उस परिवार के प्रति सब को अपनापन महसूस होता है।
मैं जोधपुर के पास वाले गांव विपाण का मूल निवासी हूं। हमारी कुलदेवी वहीं पर है। मेरी उम्र के साठ साल तक मैं वहां नहीं गया। अब दिवाली के दूसरे दिन से लगातार आठ दिनों तक कुल माता दर्शन, पूजा और राजस्थान पर्यटन हर साल करता हूं।

माहेश्वरी समाज और अन्य समाज के मेलजोल के बारे में क्या कहेंगे?
अन्य समाज के साथ मिलजुल कर रहना हमारा मूल स्वभाव है; यह भी मानना पड़ेगा की हमें भी अन्य समाज का प्रेम और सहारा मिला है। जिस-जिस गांव में हमारे समाज के लोग विस्थापित होकर गए, वहां पर अन्य समाज से उन्हें मानसिक आधार मिला।
माहेश्वरी समाज ने भी कृतज्ञता से सामाजिक अपनत्व कायम रखा। आप देखेंगे कि माहेश्वरी समाज के लोगों के कामकाज की जगह पर दान धर्म का बक्सा रखा जाता है। हमारी रोजाना आय का कुछ हिस्सा रोज बक्से में डालता है। गो-सेवा और अन्य सामाजिक कार्यों के लिए इस निधि का उपयोग किया जाता है। सार्वजनिक कार्यो में केवल माहेश्वरी समाज के लिए ही नहीं बल्कि दूसरे समाज के लिए भी इस निधि का इस्तेमाल होता है।

आप समाज कार्य की ओर कैसे मुड़े?
मुझे बचपन से समाजकार्य में रूचि है। लगभग ४३ साल पहले ‘महेश सहकारी बैंक’ की स्थापना में योगदान दिया। जिन लोगों के पास पैसा नहीं था; उनकी प्रवृत्ति को पहचान कर आर्थिक मदद दी; उन्हें प्रतिष्ठा दिलाई। कुछ साल पहले ५००० रुपये कर्जा लेने वाला व्यक्ति अब ३ करोड़ रुपये तक कर्जा लेकर नियमित रूप से चुकाता है। यह उसे मिली प्रतिष्ठा के कारण है। इन बैंकों से कर्जा लेने वाला व्यक्ति दूसरे समाज का है। माहेश्वरी समाज में पैसे की मांग अब बहुत कम हो गई है; पर बैंक में अमानत रखने वालों की संख्या बढ़ रही है। यह सकारात्मक रुख और विश्वास है।

इसके अलावा कौन से क्षेत्र में योगदान दिया है?
पुणे महापालिका के अधिकार वाली स्मशान भूमि अपने अधिकार में ली। समाज सेवा के लिए पुणे हॉस्पिटल बनाने में सहयोग दिया।

कभी राजनीति में जाने का विचार किया?
पूर्व कृषि मंत्री शरद पवार मेरे घनिष्ठ मित्र हैं। वे मुझे अपना परिवारजन समझकर अपनत्व का व्यवहार करते हैं। इससे मुझे राजनीतिक क्षेत्र के उतार-चढाव देखने को मिले, अनेक राजनीतिक नेताओं के साथ रहने का मौका मिला। माननीय बापूसाहेब कालदाते, पूर्व सांसद आबासाहेब कुलकर्णी आदि के विचारों का मुझ पर प्रभाव था। वे मेरे आदर्श थे।
माहेश्वरी समाज सहिष्णु और पापभीरू है। पार्टी अथवा राजनैतिक सुविधा के लिए कुछ बातों के साथ समझौता करना पड़ता है, जिसे मैं नहीं चाहता था। मैंने पापभीरू माहेश्वरी समाज का घटक होने के कारण अपने आप को सक्रिय राजनीति से अलग रखा है।

युवाओं के लिए क्या संदेश देंगे?
हम अपने कारोबार से समय निकाल कर परिवार को सुखी रखने की कोशिश करते हैं। समाज के सारे घटकों के लिए, सामाजिक कार्य के लिए जी-जान से काम करें। उनके लिए जो जो संभव है अवश्य करें। कहते है न सुख बांटते रहना चाहिए।
-प्रतिनिधि

विशेष प्रतिनिधि

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