समाज के अस्तित्व हेतु समझौता आवश्यक-हीरालाल मालू

कोल्हापुर जिले का एक गांव जयसिंगपुर। राजर्षि शाहू महाराज ने ब्रिटिशों के नगर का ढांचा बनाने वाले अधिकारियों को बुलाया और इस शहर की योजना बनाई। यह निर्मिति उन्होंने जयसिंग राजे भोसले की स्मृति में की। उस समय राजर्षि शाहू महाराज द्वारा किया गया यह काम ऊंचे दर्जेका और सराहनीय है। जयसिंगपुर के हीरालाल मालू से हुई बातचीत के प्रमुख अंशः

आपका जयसिंगपुर से पुणे में आकर स्थिर होने का कारण?
जयसिंगपुर, निपाणी जैसे गावों में तंबाकू का उत्पादन बड़े पैमाने पर होता है। सारे भारत से व्यापारी वहां आते हैं। १९५४ में अपनी पढ़ाई के लिए मैं यहां आया। पिताजी का अचानक निधन हो जाने के कारण व्यापार संभालने के लिए मुझे वापस जाना पड़ा। भाई के मातहत काम करने पर व्यापार की समझ और अनुभव प्राप्त हुआ। भाई ने व्यवसाय-विस्तार के कारण पुणे में एक शाखा खोलकर उसकी जिम्मेदारी मुझ पर डाल दी। तब से मैं पुणे में स्थित हूं।

समाज कार्य में रूचि कैसे उत्पन्न हुई?
मेरे पिता श्री लक्ष्मी नारायण मालू को समाज कार्य में रूचि थी। जयसिंगपुर तथा आस-पास के इलाके की स्थानीय संस्थाओं में पिताजी का योगदान होता था। लोग उनका कहना सर आंखों पर लेते थे। उन्हीं से प्रेरणा लेकर मैं समाज कार्य की ओर मुड़ा।

जयसिंगपुर में हम युवकों के लिए शिविर का आयोजन करते थे। स्थानीय गांववालों की शादी-ब्याह में सब कुछ काम करने की इन युवकों की मानसिकता थी। गांव को इस युवा मंडली का आधार था, इसलिए हमारे गांव की सारी शादियां गांव में ही होती थीं, बाहरगांव नहीं जाना पड़ता था।

पुणे आने पर १९६५ में मुझे ‘माहेश्वरी युवक मंडल’ का अध्यक्ष बनाया गया। १९७२ में ‘महेश सहकारी बैंक’ की स्थापना हुई। मैं उसका पहला चेयरमैन बना। कुछ अपवाद छोड़कर निर्विरोध पद्धति से संचालक मंडल की नियुक्ति करने की परंपरा बनाई। यह प्रथा आज तक चल रही है। वर्तमान समय में बैंक की १४ शाखाएं हैं। लगभग ६०० करोड़ रूपये की पूंजी है। आनेवाले पांच सालों में यह पूंजी दुगुनी करने की योजना बनाई है। हम यह लक्ष्य पांच सालों में पूरा करेंगे ऐसा हमारा विश्वास है।

मुसीबत के समय बैंक ने जिन लोगों को सहारा दिया ऐसे अनेक सदस्य हैं। उनमें से कुछ लोगों का कारोबार हजारों करोड़ रूपए का है। वे सारे हमारे सदस्य आज भी हैं।

बैंक के अलावा अन्य सामाजिक क्षेत्रों में आपका क्या योगदान है?
मैं कई संस्थाओं का ट्रस्टी हूं। अनेक ट्रस्ट माहेश्वरी समाज के नहीं हैं। सबका उनमें समावेश हैं। उदा. नीवडुंग्या विठोबा मंदिर का ट्रस्टी हूं। ‘महेश सांस्कृतिक भवन’ का निर्माण, बिबेवाडी के इस कार्यालय का उपयोग समाज के सारे घटकों के लिए किया जाता हैं। ‘पहले आने वाले को प्राथमिकता’ इस तत्व पर कार्यालय दिया जाता है। स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में १६० परिवार के ८०० सदस्य हर साल मेडीक्लेम का फायदा लेते हैं। ये सारे लोग आर्थिक स्तर पर निम्न श्रेणी के, समाज के सारे घटकों से और पुणे शहर के हैं। शैक्षणिक क्षेत्र में माहेश्वरी समाज के छात्रों कों प्रधानता दी जाती है, पर दूसरे समाज के बच्चों कों भी छात्रवृत्ति दी जाती है।

क्या इस समाज का संगठन है? अगर है तो इसका कार्य कैसे चलता है?
करीबन १०५ वर्ष पूर्व ‘अखिल भारतीय माहेश्वरी महासभा’ नामक केन्द्रीय महासभा की स्थापना की गई। अब वह हर एक गांव, जनपद, जिला व प्रादेशिक स्तर की शाखा-उपशाखाओं से संबंधित है। इससे समाज में विचारों का आदान प्रदान सुयोग्य रीति से होता है।
महाराष्ट्र में मुंबई, विदर्भ और शेष महाराष्ट्र जैसी तीन शाखाएं हैं। इससे किसी भी गांव के समाज के व्यक्ति को केवल स्थानीय शाखा अधिकारी की सिफारिश से बिना ब्याज की छात्रवृत्ति और शैक्षणिक कर्जा उपलब्ध कराया जाता है। उसी प्रकार बीमारी को देखकर आवश्यकता के अनुसार चिकित्सा सुविधा भी दी जाती है। आर्थिक दृष्टि से दुर्बल घटकों को, परिवारों को खास कर महिलाओं को कम ब्याज दर पर कर्जा उपलब्ध कराया जाता है। इसके लिए कुछ भी गिरवी नहीं लिया जाता। केवल स्थानीय शाखा की सिफारिश पर यह कर्जा दिया जाता है।

प्रमुख शिक्षा केन्द्र जहां जहां हैं, वहां देशभर के महानगरों में समाज के लड़के लड़कियों के होस्टल बनाए हैं। वहां पर शुल्क भी कम रखा गया है। अत्यंत महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रशासकीय सेवा में जाने की कोशिश करने वाले छात्रों के १००% खर्च का प्रबंध समाज की ओर से होता है। इसके लिए दस व्यक्तियों को मौका दिया जाता है।

हर प्रांत के स्तर पर चैरिटेबल ट्रस्ट है। विधवा, बेसहारा महिलाओं को प्रति माह १००० रुपये की आर्थिक मदद दी जाती है। यह रकम उनके बैंक खाते में जमा की जाती है।

युवा वर्ग को कोई संदेश?
सुसंस्कार, आदर्श परिवार व्यवस्था और समाज का अस्तित्व रहे इस हेतु समाज के युवक युवतियां आवश्यक समझौता करें। ऐसा न होने पर समाज की संख्या में कमी आएगी और कुछ सालों में पूरे समाज के नामशेष होने का डर रहेगा।

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