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कम्प्यूटर से जुड़ी लागत और उसे कम करने के तरीके

कम्प्यूटर से जुड़ी लागत और उसे कम करने के तरीके

by विवेक कपूर
in अप्रैल -२०१३, तकनीक
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तकनीक आज हर उद्योग का अविभाज्य अंग बन चुकी है। यह निम्न लिखित तरीकों से उद्योगों को मदद करती है।

1) बार-बार किये जाने वाले कठिन कामों को, जिनमें गणितीय सूत्रों का समावेश होता है, साफ्टवेअर की मदद से कम समय में कम गलतियों के साथ किया जा सकता है।

2) लोगों के कार्यों को आंकना जिससे उनके गुणों और निर्णय क्षमता को बढ़ाया जा सके।

बैंक और टेलिकॉम दो ऐसे उद्योग हैं जिन्होंने तकनीकों को सबसे ज्यादा अपनाया है, क्योंकि इन दोनों का काम आंकड़ों और गणितीय सूत्रों पर आधारित होता है। आजकल कम्प्यूटर और साफ्टवेअर बड़े पैमाने पर वे सभी कार्य करते हैं जो पहले मानवों द्वारा किये जाते थे। इससे बेरोजगारी बढ़ी नहीं है, बल्कि तकनीक के कारण कार्यों और रोजगारों में बढ़ोत्तरी हुई है। इसका विषेश प्रभाव हमारे अर्थशास्त्र पर पड़ा है।
किसी व्यवसाय के द्वारा कम्प्यूटर और तकनीक को अपनाने के लिये निम्न तीन आवश्यकताएं हैं।

1) कम्प्यूटर, उसे जाड़ने वाला नेटवर्क और केबल्स।

2) ऐसा साफ्टवेअर, जो व्यवसाय प्रक्रिया को दोहराता रहे।

3) साफ्टवेअर और हार्डवेअर को सतत अपग्रेड करने के लिये सपोर्ट और मेंटिनेन्स।

उपरोक्त तीनों बातें व्यवसाय को उस समय हर तरह से प्रभावित करती जब तकनीक पुरानी और प्रयोगबाह्य होने लगती है। अत: इन्हें 4-5 सालों में अपग्रेड करते रहना आवश्यक है। ऐसा न करने पर छोटे और मध्यम उद्योगों के लिये न केवल आर्थिक, बल्कि आंकडों और तथ्यों का स्थानांतरण करने में भी बहुत कठिनाई होती है। यहां एक बात पर गौर करना आवश्यक होगा कि सभी हार्डवेअर और साफ्टवेअर विक्रेता 5-7 वर्षो के बाद कम्प्यूटर और ऑपरेटिव सिस्टम को परेशानियों को सुधारना, स्पेयर पार्ट देना बंद कर देते हैं। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि सरकार की ओर से भी कम्प्यूटर और साफ्टवेअर के 30% अवमूल्यन को ही स्वीकृति दी गयी है। इसका अर्थ यह है कि व्यवसायों की 3-4 साल में अपने कम्प्यूटर और साफ्टवेअर अपग्रेड करने ही होंगे और उनकी तकनीकी मांगों को निरंतर पूरा करना होगा। ये किसी कारखाने या मशीनों की तरह नहीं होते जो 10-25 सालों तक बिना किसी अवमूल्यन के चल सकें।

इनके सपोर्ट और मेंटिनेंस की लागत पहली बार किये गए पूंजी निवेश की 20% होती है।
इस सन्दर्भ में यह भी महत्वपूर्ण है कि साफ्टवेअर और हार्डवेअर जो व्यवसाय में उपयोग किये जा रहे हैं वे किस प्रकार हैं। छोटे और मध्यम उद्योगों में 8-10 घंटे ही काम होता है। अत: ये 14 घंटे बंद रहते हैं और इनका उपयोग नहीं किया जाता। हमारी तरह वे थकते नहां अत: यह आवश्यक है कि उनका अधिकतम उपयोग किया जाये। कुछ क्षेत्रों जैसे 24 घंटे की बैकिंग में डेटा सेंटर के हार्डवेअर 365 दिन, 24 घंटे शुरु रहते हैं फिर भी उनका उपयोग निम्न होता है। ग्राहकों की भी यही मांग होती है कि कम्प्यूटर और साफ्टवेअर हमेशा शुरू रहें।
यह मुद्दा सामने आया और पूरे विश्व में ‘ग्रीन इनिशियेटिव’ के अन्तर्गत क्लाउड कम्प्यूटिंग और ओपन सोर्स साफ्टवेयर को बनाया गया।
क्लाउड कम्प्यूटिग क्या है?- उपरोक्त वर्णन के अनुसार तकनीक का एक बड़ा हिस्सा हार्डवेयर पर निर्भर है। ऑफिस में कम्प्यूटर और जहां साफ्टवेअर एप्लिकेशन हो, वहां सर्वर रखा जाता है। हमारे कंप्यूटर केवल 4 घंटे लगातार कार्यरत रहते हैं। बाकी समय में वे चालू तो रहते हैं, परंतु उन पर कार्य नहीं होता है। इसके लिये पिछले 2-3 वर्षों में ‘थिन क्लाइंट’ नामक संकल्पना ईजाद की गयी है। इन यंत्रों की कीमत 5000/- से 7000/-है, जहां कम्प्यूटर की कीमत 20000/- से 45000/- रूपये है। इन यंत्रों में बिजली की खपत कम्प्यूटर की तुलना में 20% होती है। अत: इनका उपयोग अधिक और बिजली की खपत कम होती है। इन यंत्रों को अधिक कंफ्यूगरेशन की आवश्यकता नहीं होती और ये बैंक, कॉल सेंटर और कार्यालयों के लिये उपयुक्त हैं।

क्लाउड का दूसरा भाग सर्वर से सम्बन्धित है। पुरानी तकनीक में हर साफ्टवेयर के लिए एक अलग सर्वर की आवश्यकता होती थी। इसका मतलब यह था कि अगर उस साफ्टवेअर का या सर्वर का उपयोग नहीं हो रहा है तो वह खाली पड़ा रहता है। क्लाउड तकनीक से एक सर्वर कई साफ्टवेअर को चला सकता है भले ही वह अलग-अलग सर्वर पर हो। इसके कारण आंकड़ों और तथ्यों की सुरक्षा और उपयोगकर्ता की गुप्तता पर साफ्टवेअर का ध्यान रहता है। यह कुछ इस प्रकार कार्य करता है कि दिन में लोग सर्वर पर माइक्रोसाफ्ट वर्ड जैसे एप्लिकेशन अपलोड कर सकते हैं और रात को पेरोल प्रोसेसिंग या मैनेजमेंट इंफॉरमेशन सिस्टम जैसे प्रोग्राम चलाये जा सकते हैं। विभिन्न देशों के अलग-अलग समय पर एक साथ एक ही सर्वर पर काम करने वाले प्रोग्राम भी उपलब्ध हैं। उदाहरण के तौर पर यू एस और यूरोप में उनके दिन के समय में एक प्रोग्राम चलाया जा सकता है, जब बचे हुए देशों में रात हो। इस तकनीक के कारण हमारे कार्य करने की पद्धति में बदलाव हो रहा है।

क्लाउड कंप्यूटिंग के दोहरे आव्हाहन

1) कनेक्टिविटी और इसकी विश्वसनीयता- कनेक्टिविटी का अर्थ है इंटरनेट की उपलब्धता जो आपके ऑफिस या उद्योंगो को मिलती है। पिछले 10 सालों में भारत सरकार ने गांवों और शहरों में टेलीकॉम की मदद से कई योजनाएं चलायी हैं। आजकल मोबाइल फोन और स्मार्ट फोन का मॉडम के रूप में उपयोग करके और सीधे उन पर भी एप्लिकेशन चलाये जा सकते है। डेटा कार्ड सभी ओर व्याप्त हैं और हजारों शहरों में कनेक्टिविटी उपलब्ध है। हर्ष का विषय है कि लगभग ढाई लाख गांवों को ब्रॉडबैंड से जोडकर स्वास्थ्य, ई-कॉमर्स, तथा ई- गवर्नेंस जैसे विषयों से अवगत कराने का वादा सरकार की ओर से किया जा रहा है। अत: इसके द्वारा आव्हाहन कुछ कम हो सकते हैं।

2) एक मानक साफ्टवेयर का निर्माण करना जो पूरे उद्योग में एक जैसा रहे जिससे कार्य पद्धति को एक रूप दिया जा सके। बैंकिंग क्षेत्र में आरबीआई के नियमों के कारण बहुत कार्य हुआ है। साथ ही व्यवहार के लिये आवश्यक अकाउन्टस के साफ्टवेअर को भी मानक बना दिया है। अब आव्हाहन अन्य उद्योगों के लिये हैं। जब साफ्टवेअर कम कीमत पर बनाये और बेचे जाते हैं तो मालिकों के सामने व्यवसाय के नये तरीकों को अपनाने और अपने स्टाफ को बनाये रखने का आव्हाहन भी होता है। महत्वपूर्ण बात यह है कि दूसरे तीसरे स्तर के शहरों में भी कम्प्यूटर जानने वालों की संख्या बढ़ रही है। जो ई-शिक्षा और व्यवसायों के लिये आवश्यक है। भारत में सहकार उद्योग छोटे उद्योग समूह का सर्वोत्तम उदाहरण है। इनमें क्षेत्रीय भिन्नता भाषा और संस्कृति के कारण सम्भव है परन्तु मानक को मान्यता मिलने के बाद इनका प्रभाव नहीं पडता मानव संसाधनों, बिलिंग, दलाली और माल सूची बनाने के लिये क्लाउड मॉडल में साफ्टवेअर उपलब्ध हैं। इसमे व्यवसाय को स्वयं के लिये लाइसेंस खरीदने की जगह केवल उतने समय का पैसा देना पड़ता है जितने में हार्डवेयर और सॉफ्टवेअर का उपयोग किया गया है। जो ये सर्विस देते हैं उनके द्वारा तकनीक को अपग्रेड भी किया जाता है। एप्लिकेशन सर्विस प्रोवाइडर के द्वारा सहकारी बैंकों ने भी यही मॉडल अपनाया है।

पहले स्तर में व्यवसायों द्वारा कंसलेट की सहायता से उनके द्वारा किये जाने वाले कार्यों का निरीक्षण किया जाता है। इसके निष्कर्ष को एप्लिकेशन बनाने वाले डेवलपर को दिया जाता है जो आवश्यकतानुसार एप्लिकेशन करता है। एक जिले में 15-20 प्रकार के व्यवसाय होते हैं, जिन्हे एक एप्लिकेशन के द्वारा शेयर किया जा सकता है। हमारी कोशिश है कि नवीनतम तकनीक से लोगों के व्यवसाय को अधिक बढ़ाया जा सके।

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