हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
अखिल भारतीय माहेश्‍वरी महासभाद्वारा निर्धारित आचार संहिता

अखिल भारतीय माहेश्‍वरी महासभाद्वारा निर्धारित आचार संहिता

by विशेष प्रतिनिधि
in सामाजिक, सितंबर- २०१५
0

एक समय था जब हमारा सामाजिक वायुमंडल, आचार-विचार आदर्श था। उसी परंपरा का दृष्टांत है कि छोटे-बड़े का भेद व्यवहार में प्रत्यक्षतया दृष्टिगोचर न हो इसके लिए, पंचायतों द्वारा रीति-रिवाज बंधे हुऐ थे, यथा पहरावनी में ११ से अधिक वेश न हों। मिलनी, बारातियों की सीख, वर को देने के वेश, कन्या को चढ़ाये जाने वाले वेश आदि सभी का प्रमाण बंधा हुआ था। इन पर आज भी कई जगह अमल हो रहा है। परन्तु ब्रिटिशकाल में, जो एक प्रकार से अंधकारपूर्ण काल था, हमारी ऐसी कुछ आदर्श प्रथायें तो कायम रहीं, परन्तु औसर-मौसर के लिये बाध्य करने, तीन दिन के औसर की परवानगी देने, विदेश यात्रा जैसी साधारणसी बातों पर जाति-बहिष्कार करने जैसी बुराइयों का पंचायत प्रथा में संचार हुआ। जिससे समाज का दम घुटने लगा। इस कारणा महासभा को सामाजिक बहिष्कार प्रथा का विरोध करना पड़ा जिससे पंचायतों की सत्ता समाप्त हो गई। इस कदम के फलस्वरूप समाज में नये स्वतंत्र वातावरण का तो संचार हुआ, परन्तु साथ ही समाज में अनुशासन की समाप्ति हो गई, जिसका परिणाम यह हुआ कि अब लोग बढ़-बढ़कर, सामाजिक व्यवहार करने लगे है। समाज एक नये दुष्चक्र से ग्रसित हो गया है। आज इन बुराइंयों का कहां तक विस्तार हो चुका है इससे सभी परिचित हैं।
इस परिस्थिति को देख महासभा ने कुछ मूलभूत सिद्धांत निश्चित किये, जो इस प्रकार हैं-

१. विवाह संबंध निश्चित करते समय किसी प्रकार का ठहराव न किया जाये।
२. सगाई का टीका या तिलक १ रू। या १०१ रू। से ही किया जाये और इस अवसर पर किसी प्रकार का उपकरण अथवा अनावश्यक प्रमाण में मीठा मेवा या फल न रखे जायें।
३. विवाह के समय दोनों पक्षों द्वारा अथवा अन्यान्य संगठनों में भी सामग्री का प्रदर्शन (दिखावा) कदापि न हो।
४. वर पक्ष द्वारा वधू पक्ष से कोई मांग न की जाये तथा कोई सूचना न की जाये एवं समस्त प्रसंग सौहार्द्रपूर्ण वातावरण में संपन्न हों, दोनों पक्षों द्वारा इस बात का ध्यान रखा जाये।
५.विवाह संबंधी समस्त आयोजन सादगीपूर्ण ढंग से संपन्न किया जाए और आडंबर को स्थान न दिया जाए, इसी प्रकार अन्यान्य प्रसंगों पर भी सादगी का ध्यान रखा जाये।
६. सगाई, विवाह एवं अन्य प्रसंगोंं पर असामायिक रीति-रिवाजोंे को स्थान न दिया जाए और जो रीति-रिवाज सामान्यत: किये जाते हैं उनका भी रस्स की परंपरा के अनुसार सूक्ष्म रूप से ही पालन किया जाये।

महासभा आचार संहिता पर निरंतर जोर देती रही है।
निरंतर विचार विनिमय के बाद वर्तमान में जो आचार संहिता महासभा द्वारा निर्धारित हुई है, वह इस प्रकार है-

मूल सिद्धांत

१. प्रत्येक व्यक्ति को इस प्रकार का आचरण करना चाहिए जिससे सामाजिक जीवन में अधिक भेद या विसंगता पैदा न हो और वह समाज की संतुलित व स्वस्थ जीवन प्रणाली में सहायक हो।
२. विवाह संबंध सामाजिक जीवन के आधार-बिंदु हैं। अत: समाज में विवाह संबंधों का एकमात्र आधार परस्पर के प्रति प्रेम एवं दो उपयुक्त पात्रों का चुनाव हो। विवाह संबंधों को किसी रुप में भी लेन-देन का विषय बनाया जाना गलत है।
३. स्वेच्छा से कन्या- वर को दी जाने वाली भेंट माता-पिता का स्वभाविक अधिकार है। वास्तव में यही शुद्ध दहेज है, जिसे बड़ी आदर की दृष्टी से देखा जाना चाहिये। कन्या को इस प्रकार प्राप्त सामग्री उसकी धरोहर समझी जानी चाहिये। मांग कर लिया हुआ धन ही अनिष्टकारी दहेज है जो समाज की जड़ें खोखली करता है।
४. वर-पक्ष द्वारा वधू को विवाह के अवसर पर दी जाने वाली भेंट और उसे माता-पिता व उनके मित्र संबंधियों से प्राप्त सामग्री मिलाकर उसका ‘स्त्री-धन’ बनता है। यह सब धन ससुराल में उसकी धरोहर के रूप में माना और सुरक्षित रखा जाना चाहिये।
५. अपनी ओर से कन्या को दूसरे परिवार में देना माता-पिता की ममता का उज्ज्वल उपहार है। उसका आदर कर कन्या पक्ष पर कोई भार न लादना ही हमारे समाज का आदर्श रहा है जिसका आज भी पालन आवश्यक है।
६. कहावत है कि समाज की जाजर पर कोई बड़ा और कोई छोटा नहीं। यह भावना समस्त सामाजिक जीवन में प्रतिबिंबित होना ही सामाजिक जीवन की पुष्टि है।
अखिल भारतवर्षीय मूलभूत सिद्धान्त
१. सगाई, खोल, विवाह निश्चित करते समय प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष किसी प्रकार के लेन-देन का ठहराव नहीं हो।
२. सगाई से लेकर विवाह तक उभयपक्ष द्वारा दी एवं ली जाने वाली सामग्री का प्रदर्शन (दिखावा) न हो।
३. सामाजिक रीति-रिवाज एवं समारोह सादगी से हो।
अखिल भारतवर्षीय नियम
(अ) सगाई के प्रसंग :
१. तिलक के दस्तूर में श्रीफल, अधिकतम एक सौ एक रुपयां, लड़के की एक पोषाक, दो वैस एवं सीमित परिमाण में मिठाई, फल व मेवा लिया जाय (जहॉं रिवाज हो, लड़के के लिये सोने की अंगूठी तथा बच्चों के लिए पोषाख जी जा सकती हैं)।
२. संबंध निश्चित करते ही कहीं-कहीं लड़के व लड़की की कच्ची खोल का रिवाज है। लड़के की कच्ची खोल में श्रीफल व अधिकतम एक सौ एक रुपया ही लिया जाये।
(आ) विवाह के प्रसंग :
१. विवाह हेतु भेजी जाने वाली पत्रिका के साथ मिठाई अथवा अन्य कोई वस्तु नहीं भेजी जाय।
२. वर की निकासी, बारात, ढुकाव/तोरण की शोभायात्रा में सड़क पर नृत्य न किया जाये।
३. बारातियों की अधिकतम संख्या बच्चों सहित ७५ से अधिक न हो। पंडित, नाई व नौकर बाराती नहीं समझे जायेंगे।
स्पष्टीकरण
(क) बारात के साथ बाहर गांव प्रस्थान करने वाले बाराती होंगे।
(ख) वधू पक्षद्वारा बारात ठहराने की व्यवस्था जहां की गई हो, वहां रात्रि में ठहरने वाले बाराती होंगे- चाहे वे बारात के साथ आये हों या सीधे आये हों।
(ग) स्वागत समारोह, रात्रि भोजन अथवा ढुकाव के समय उपस्थित बाहर गांव से आये हुए व्यक्ति जो उसी रात्री में वापस चले जाते हों वे बाराती नहीं समझे जायेंगे।
(घ) बारात में सम्मिलित होने वाले व्यक्ति को जब अधिक बारातियों की संख्या ज्ञात हो जाये तो प्रतिकार स्वरूप १- ढुकाव/तोरण २ – स्वागत समारोह ३- सजनगोठ/ भात में सम्मिलित न होकर इस प्रकार के उल्लंघन का प्रतिकार करें।
४. बारात की समयावधि इस प्रकार सीमित की जाए
(क) स्थानीय – केवल आधे दिन का कार्यक्रम जिसमें रात्रि भोजन भी सम्मिलित है।
५. आसपास के स्थान – केवल एक दिन का कार्यक्रम हो एवं वर के परिवार के अतिरिक्त बारातियों का रात्रि विश्राम न हो।
(ग) दूरवर्ती स्थान – ट्रेन का समय एवं कोच के आरक्षण की सुविधा देखते हुए सामान्यत: डेढ़ दिन से अधिक का कार्यक्रम न हो।
६. विवाह या बारात के अवसर पर जुवा नहीं खेला जाये।
७. विवाह या अन्य सामाजिक प्रसंगों पर मद्यपान आदि नहींे किया जाय। होटलों में जहां बारात ठहरती है, मद्यपान आदि की सुविधा रहती है, इस बात को ध्यान में रखते हुए पहले से ही प्रतिबंध की व्यवस्था कर लेनी चाहिये।
८. वर पक्ष की ओर से भेजी जाने वाली ‘बरी’ का दिखावा उभयपक्ष द्वारा अपने परिवार के सदस्यों के अतिरिक्त न हो।
९. कन्या पक्ष एवं उनके मित्र अभिभावकों की ओर से अपनी स्थिति के अनुरूप कन्या/जंवाई को स्नेह से दी जाने वाली भेंट देने व लेने में आपत्ति नहीं है।

प्रादेशिक सभाओं को अन्य नियम बनाने के अधिकार
मूलभूत सिद्धांतों का भावना को ध्यान में रखते हुए प्रादेशिक सभाओं द्वारा अपने-अपने क्षेत्र में स्थानीय स्थिति के अनुसार नियम निर्धारण के विषय :-
१. लड़की को देखने जाने वाले व्यक्तियों की संख्या।
२. साड़ी के दस्तूर या लड़की की गोद भरने के लिए बाहर गांव जाने वाले व्यक्तियों की संख्या।
३. लड़का/लड़की के सगाई के उपलबक्ष्य में सामाजिक भोज।
४. सगाई/विवाह के विविध प्रसंगों पर मिली, सीख, पगालागनी आदि के रूप में प्रति व्यक्ति दी जाने वाली भेंट/रुपयों की राशि।
५. बारात की यात्रा खर्च का आधा भारत कहीं-कहीं कन्या पक्ष वहन करता है, वह अनुचित है, इस हेतु नियम।
६. पहरावनी में लिये जाने वाले वेस, सिरोपाव, पोषाक, दुशाला की संख्या व बाटका में नकद रुपयों की राशि।
७. अन्य विषय जो प्रादेशिक सभा आवश्यक समझे।
अन्य प्रसंग
मृतक भोज-मृतक भोज प्रतिबंधित है किंतु ब्राह्मण भोजन के उपरांत गंगा प्रसादी व अन्य रूप में प्रसाद की प्रथा कुछ जगहों पर चल रही हैं जिसे बंद किया जाये। मृत्यु के अवसर पर किसी भी रूप में सामाजिक, भोज नहीं होना चाहिये।
जन्म दिन-पुत्र प्राप्ति, विवाह की वर्षगाठ, पुत्र/पुत्री स्वयं के जन्म दिन मनाने की पाश्चात्य प्रणाली का प्रभाव अपने समज पर पड़ने लगा है।
उसी प्रकार विवाह की वर्षगाठ, विवाह की रजत एवं स्वर्ण जयंती के अवसर पर सामाजिक भोज एवं विशिष्ठ कार्यक्रम प्रारंभ हुए है। ऐसे समारोह सिर्फ पारिवारिक कार्यक्रमों तक ही सीमित रखे जाने चाहिए।
लड़की/लड़के के विवाह पर मायरा : कुछ वर्षों से मायरा का लेन-देन बहुत बढ़ गया है, जिसको मर्यादित करना चाहिये। कुछ व्यक्तियों द्वारा भारी लेन देन समाज के अन्य व्यक्तियों पर होड़ स्वरूप असर लाता ही है। जो धीर-धीरे लड़की परिवार पर अनावश्यक व अतिरिक्त बोझ बनता जा रही है। लेन देन को मर्यादित रखना समाज में सरल एवं सभी के पालय योग्यस रीति-रिवाज कायम रखने के लिए आवश्यक है। मायरा में दी/ली जाने वाली वस्तु,गहना, नकद आदि का उभयपक्ष द्वारा परिवार के सदस्यों के अतिरिक्त प्रदर्शन नहीं होना चाहिये।
महासभा की अपील
इस बात को देखते हुए कि समाज में सुधार की प्रवृत्ति शिथिल हो रही है और आडंबर बढ़ते जाने से समाज त्रस्त हो रहा है, समाज में पुन: अनुशासन कायम रखने की आवश्यकता और भी उभर कर सामने आई है।
सभी समाज प्रेमियों का कर्त्तव्य है कि वक्त को देखते हुये समाज में विचारपूर्ण वायु मंडल बनाने मेंे पूर्ण सहयोग करें।
– संकलित

विशेष प्रतिनिधि

Next Post
शख्सियतशिक्षा – संस्कार सेतु- डॉ. संजय मालपाणी

शख्सियतशिक्षा - संस्कार सेतु- डॉ. संजय मालपाणी

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0