हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
सैयदना और बोहरा समाज

सैयदना और बोहरा समाज

by स्वाती कुलकर्णी
in मार्च-२०१४
0

दाऊदी बोहरा समाज के धर्मगुरु सैयदना डॉ. मोहम्मद बुरहानुद्दीन ने अपने जीवन काल में दुनियाभर में कई महत्वपूर्ण धार्मिक कार्य किए हैं। फिर भी यह समाज अपनी धर्मश्रद्धाओं के कारण विवादों के भंवर में होता है। यह आश्चर्यजनक जरूर लगता है, परंतु इसके पीछे कारणों को खोजना भी जरूरी है।…समाज का नया नेतृत्व यदि सुधारों की आकांक्षाओं को स्वीकार कर, समय की आवश्यकता के अनुसार अपने स्वयं में सुधार करना तय करें तो इस समाज के लिए नए युग का सूत्रपात हो सकता है।

पिछली 17 जनवरी को डॉ. मोहम्मद बुरहानुद्दीन का 98 वर्ष की उम्र में मुंबई में निधन हो गया। उनके अंत्यसंस्कार के लिए उमड़े जनसैलाब को देखकर भारतीय जनता का चकित होना स्वाभाविक है। डॉ. बुरहानुद्दीन दाऊदी बोहरा समाज के प्रमुख और धार्मिक गुरू थे। उन्हें ‘सैयदना’ के रूप में सम्बोधित किया जाता है। ‘सैयदना’ का अर्थ है ‘मालिक’ या ‘स्वामी’।
दाऊदी बोहरा समाज यमन स्थित इस्माइली शिया पंथ से अपना मूल सम्बंध जोड़ता है। फातिमिद (मोहम्मद पैगंबर की कन्या फातिमा से सम्बंधित) खलिफती से यह पंथ जुड़ा हुआ है। यमन में वहां के सुन्नी पंथियों के अत्याचारों के कारण इस पंथ ने 16वीं सदी में अपना ठिकाना भारत में स्थानांतरित किया। शियाओं का आग्रह होता है कि मोहम्मद पैगंबर के घराने के व्यक्ति को ही खलीफा बनने का अधिकार है। इसके अनुरूप डॉ. बुरहानुद्दीन के घराने के सूत्र भी वहां तक जोड़े जाते हैं। इस पंथ की आबादी लगभग दस लाख है और इनमें से करीब आधे लोग गुजरात में रहते हैं। वे गुजराती, पर्शियन और उर्दू के प्रभाव वाली एक स्वतंत्र भाषा (लिसान उद दावत) बोलते हैं। हल्के मोहक रंग के कशीदाकारी किए बुरखे पहनने वाली महिलाएं और सफेद रंग पर स्वर्णिम रंग की कशीदाकारी की टोपियां पहनने वाले पुरुष अर्थात दाऊदी बोहरा- हम आसानी से पहचान सकते हैं। उनके नाम में आने वाला बोहरा शब्द गुजराती है और इसका अर्थ है व्यापारी। अतः अधिसंख्य बोहरा व्यापार में ही होते हैं। अपने व्यापार से सम्बंधित वस्तुएं अपने ही समाज के व्यापारियों से खरीदी करने की उनकी प्रथा के कारण उन्होंने उद्योग-व्यापार का एक स्थिर व मजबूत साम्राज्य निर्माण किया है।

इस छोटे से समुदाय के धर्मगुरू का महत्व उनके लिए बड़ा होना स्वाभाविक है। ’सैयदना’ का अर्थ है मालिक या स्वामी। मोहम्मद पैगंबर ने अपने लिए इस सम्बोधन का उपयोग किया इसके कई उल्लेख मिलते हैं। अतः पैगंबर (देवदूत) के अलावा अन्य कोई इस सम्बोधन का उपयोग करें यह बात सुन्नी पंथियों को स्वीकार होना असंभव है। परंतु, दाऊदी बोहरा केवल डॉ. बुरहानुद्दीन ही नहीं अपितु उनके परिवार से बने सभी पंथ प्रमुखों को ‘सैयदना’ के नाम से ही सम्बोधित करते हैं और अपने जीवन के प्रत्यक्ष व्यवहारों से भी वही अपने स्वामी होने का सबूत जगह-जगह देते हैं।

धर्मगुरू व्यक्ति की- समाज की आध्यात्मिक बातों पर अधिकार रखें यह स्वाभाविक ही लगता है। व्यक्ति का जन्म, बचपन, विवाह, मृत्यु, उसके रिश्तेदारों व समाज के साथ परस्पर सम्बंधों को लेकर पंथ के नीति-नियमों का पालन करें यह हम समझ सकते हैं। लेकिन वह अपने धन का विनियोग किस तरह करें, उसे किस बैंक में रखें- इस बात से लेकर अन्य बातों का भी निर्णय भी पंथ प्रमुख के निर्देशित नियमों से हो इसका हमें आश्चर्य लगता है। इन नियमों का पालन न हो तो समाज से बहिष्कृत करने की भीषण सजा देने की छूट भी धर्म गुरू को हो यह हमें ठीक नहीं लगता। दाऊदी बोहरा समाज इस तरह के बंधनों के कारण ही समय-समय पर चर्चा में रहा है।

डॉ. बुरहानुद्दीन ने अपने जीवन में कई महत्वपूर्ण कार्य किए हैं। जब वे महज 19 वर्ष के थे तभी उनके अब्बा (पिताश्री) ने पंथ के उत्तराधिकारी (दा ई मुतलक) के रूप में उनके नाम की घोषणा की थी। लेकिन प्रत्यक्ष में उनके अब्बा के निधन के बाद- अर्थात 1965 को उन्हें यह विरासत मिली। सूरत स्थित पंथ के जामिया तुस सैफिया विद्यापीठ के आधुनिकीकरण, वहां विश्व स्तर की सहूलियतें उपलब्ध कराना, काहिरा में मस्जिद अल अन्वर व अल हकीम मस्जिद का नवीनीकरण, उत्तर अमेरिका, यूरोप, अफ्रीका, आस्ट्रेलिया में नई मस्जिदों का निर्माण, मुंबई के सैफी अस्पताल का नवीनीकरण, इराक के नजफ में इमाम अली की मस्जिद, करबला में इमाम हुसैन व मौलाना अब्बास की मस्जिदों पर सोने का वर्क चढ़ाने का कार्य, जोर्डन, सीरिया, मिस्र, यमन, इजरायल आदि स्थानों पर नवीनीकरण तथा अन्य महत्वपूर्ण धार्मिक कार्य डॉ. बुरहानुद्दीन के कार्यकाल में देखने को मिलते हैं। इसके अलावा मुंबई के क्राफर्ड मार्केट के आसपास 165 एकड़ जमीन पर स्थित पुरानी इमारतें गिराकर वहां अत्याधुनिक सुविधाओं से युक्त एक छोटा-सा शहरनुमा संकुल बनाने का प्रकल्प इस समाज ने हाथ में लिया है तथा यह कार्य शीघ्र आरंभ होने की उम्मीद है।

इतने उल्लेखनीय कार्य करने वाला समाज उनकी धर्मश्रद्धाओं के कारण विवादों के भंवर में आता है यह आश्चर्यजनक होने पर भी उसका मूल कारण खोजना जरूरी है।

दाऊदी बोहरा व्यक्ति किसी भी देश में हो लेकिन अपना कर उसे ‘सैयदना’ के पास ही जमा करना होता है। इस पैसे का विनियोग किस तरह हो यह पूछने का उसे अधिकार नहीं होता। धर्मगुरू के विरुद्ध किसी छोटे से कदम की परिणिती उसे समाज से ‘बहिष्कृत’ करने में होती है। इस अनिष्ट प्रथा पर पहला आघात किया 1948 में ‘मुंबई’ राज्य के तत्कालीन गृह मंत्री मोरारजी देसाई ने। ‘बहिष्कृत’ करने की प्रथा गैरकानूनी करार देने वाला कानून उन्होंने विधान मंडल में पारित करवाया। इस कानून को मुंबई उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई। लेकिन उच्च न्यायालय ने याचिका खारिज की। लेकिन बाद में 1961 में सर्वोच्च न्यायालय ने इस कानून की धाराएं दाऊदी बोहराओं को लागू न होने का निर्णय दिया। इसके बाद आज तक ने किसी ने इस निर्णय को न चुनौती दी, न किसी राजनीतिक नेता या दल ने उस पर गौर किया ऐसा दिखाई देता है।

दाऊदी बोहरा समाज की चर्चा हो तो डॉ. असगर अली इंजीनियर और नोमनभाई कांट्रेक्टर के नाम अनायस याद आते हैं। इसलिए कि दोनों ने मानो अपने पंथ में सुधार का व्रत ही लिया था। सैयदना की हकूमत नकारने की बगावत की शुरूआत हुई मेवाड़ के उदयपुर शहर से। 1947 में विभाजन के बाद पाकिस्तान से बड़े पैमाने पर सिंधी लोग भारत में आए। व्यवसाय से व्यापारी सिंधी समाज ने उदयपुर शहर को अपना ठिकाना बनाया और स्वाभाविक रूप से पुनश्च व्यवसाय को जमाने में लगे रहे। इस नई स्पर्धा से दाऊदी बोहरा समाज की आय प्रभावित होने लगी। इसलिए उच्च शिक्षा प्राप्त कर अन्य क्षेत्रों में आगे बढ़ने को समाज ने प्राथमिकता दी। 10-15 वर्षों में ही हर परिवार में न्यूनतम मैट्रिक या एकाध उपाधिधारी दिखाई देने लगा। यही नहीं उनकी महिलाएं भी बड़े पैमाने पर शिक्षा ग्रहण करने लगीं। शिक्षा से उनकी धर्मश्रद्धाओं पर कोई असर नहीं हुआ, बल्कि उनमें सामाजिक जागरूकता आने लगी। वे जानने लगीं कि व्यक्ति के अधिकारों और सम्मान का जीवन में स्थान होना चाहिए। अपने समाज के अधिकार प्राप्त लोग हमसे गुलामों की तरह व्यवहार न करें यहां तक उनकी सामाजिक जागरूकता प्रखर हुई। समाज से प्राप्त धन का हिसाब दिया जाए इस अपेक्षा से उत्पन्न विवाद की घटना बीसवीं सदी के आरंभ में ही हुई थी। कुरावरवाला विरुद्ध पालीवाला घरानों के विवाद का अंतिम परिणाम पालीवाला घराने के ‘सलाम बंद’ (सामाजिक बहिष्कार) के निर्णय के रूप में हुआ। इस विवाद में सैयदना ने पालीवाल घराने के विरोध में भूमिका ली थी।
उदयपुर के बाहर भी दाऊदी बोहरा समाज में इसका असर हुआ। विवाद में मध्यस्थता कर उस पर अस्थायी परदा डाला गया, फिर भी पालीवाला घराने ने बाद में भी सुधारवादी प्रयासों का समर्थन ही किया। फलस्वरूप हिंसक घटनाएं भी हुआ करती थीं। 1936 में ‘अंजुमन ए रिफाहल मुमीनीन’ नामक सुधारवादी संगठन की स्थापना की गई। उसके सुधारवादी कार्यक्रमों को धर्म पंडितों का विरोध था ही। 1970 में अर्थात सामाजिक बहिष्कार संबंधित कानून पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय आने के बाद उदयपुर नगरपालिका के चुनाव में दाऊदी बोहरा समाज के युवकों ने बगावत की। धर्म प्रमुख द्वारा समर्थित चार कांग्रेसी उम्मीदवारों को समाज ने धूल चटा दी और अपनी पसंद के चार बागी निर्दलीय उम्मीदवारों को विजयश्री दिलाई। धर्मगुरू ने फरमान निकाला कि विजयी उम्मीदवार उनकी अनुमति न लेकर चुनाव लड़े इसलिए माफी मांगे। लेकिन इन चारों उम्मीदवारों ने इसे दृढ़ता से नकार दिया। धर्मगुरू के आध्यात्मिक अधिकारों को किसी तरह की चुनौती न देकर समाज के नागरी लोकतांत्रिक अधिकारों के प्रति यह पंथ आपत्ति उठा रहा था। इस संघर्ष से ‘बोहरा यूथ एसोसिएशन’ नामक संगठन का जन्म हुआ और अपने सामाजिक कार्यों के कारण समाज में लोकप्रिय हुआ। इस संस्था के प्रयत्नों से 1972 में अर्बन को-आपरेटिव बैंक की स्थापना की गई। एक वर्ष बाद रिजर्व बैंक ने उसे मान्यता प्रदान की। किंतु इस्लाम में सूद पर पाबंदी होने की बात कह कर इस बैंक पर भी आपत्ति प्रकट की गई। यह आपत्ति तो थी ही कि यह बैंक आरंभ करने के पूर्व धर्म प्रमुख की अनुमति नहीं ली गई। संस्था तथा बैंक बंद करने का फरमान इसलिए था कि सैयदना का स्वायत्त स्वतंत्र शासन चलता रहे। सीधे रास्ते से न सुनने पर हिंसक हमले करवाना भी निषिद्ध नहीं था। 1973 में उदयपुर के निकट गालियाकोट स्थित धर्म स्थल में आने वाली महिलाओं को भी हमलावरों ने नहीं छोड़ा। यही नहीं, पुलिस की सहायता से बागी युवकों को पाठ भी पढ़ाया गया।

समाज के विभिन्न स्तरों के धार्मिक नेताओं ने राजनीतिक दलों से सांठगांठ कर अपना-अपना स्थान बरकरार रखने की समय-समय पर कोशिश की है। उसके कुछ सम्माननीय अपवाद हैं। 1975 में आपातकाल के बाद जून 1977 में धार्मिक बहिष्कार के विरोध में एक परिषद आयोजित की गई। उसके प्रमुख तत्कालीन जनता पार्टी के नेता एस. एम. जोशी थे। तत्कालीन मुख्यमंत्री वसंत दादा पाटील को भी निमंत्रण दिया गया था। दोनों ने सामाजिक बहिष्कार की प्रथा की निंदा की। इस परिषद में ‘सोसायटी फॉर इरॅडिकेशन ऑफ सोशल बॉयकॉट’ की स्थापना की गई। उसका अध्यक्ष पद भी जोशी ने स्वीकार किया। इस संस्था में प्रा. सदानंद वर्दे, नोमनभाई कांट्रेक्टर, साराभाई आदि लोग भी थे। एस. एम. इसमें भाग न ले इसके लिए भी दबाव लाने के प्रयास हुए। सोसायटी ने धर्म प्रमुख से मुलाकात की कोशिश की, लेकिन उसे प्रतिसाद नहीं मिला। एस. एम. ने कुछ मुस्लिम विद्वानों से बहिष्कार के बारे में धर्म की भूमिका जानने की कोशिश की। इस बीच गोधरा में अपने रिश्तेदार के यहां रुके नोमनभाई कांट्रेक्टर पर 300-400 लोगों की भीड़ ने हमला किया। सौभाग्य से घटनास्थल पर पहुंचे कलेक्टर ने नोमनभाई व उनके रिश्तेदारों को अपनी गाड़ी में बैठाकर सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया। इस घटना के बाद एस. एम. जोशी ने प्रधान मंत्री मोरारजी भाई से मुलाकात कर उन्हें एक ज्ञापन दिया। मोरारजी भाई से मुलाकात करने के बाद जनता पार्टी के सर्वमान्य नेता जयप्रकाश नारायण से मुलाकात करने का निर्णय किया गया। जयप्रकाशजी ने उनकी बात सुनने के बाद सैयदना व जस्टिस तारकुंडे को पत्र लिखकर अपनी भावनाएं प्रकट कीं। इसके बाद नाथवानी कमीशन का गठन किया गया। इससे कानून का एक मसविदा बनाया गया।

इन प्रयासों को धर्म प्रमुख का विरोध था ही। इसमें केवल दाऊदी बोहरा ही नहीं अन्य पंथ भी शामिल हुए। अंत में सितम्बर 1977 में जयप्रकाशजी ने एस. एम. को पटना बुलाया। लेकिन धर्म प्रमुखों के आशीर्वाद से बने मसविदे पर जयप्रकाशजी ने एस. एम. से मुलाकात के पूर्व ही हस्ताक्षर कर दिए यह बात उजागर होने पर एस.एम. चकित हो गए। एस. एम. जैसे समाजवाद पर प्रखर निष्ठा रखने वाले नेता आज नहीं हैं। दाऊदी बोहरा हो, अथवा अन्य मुस्लिम या ईसाई हो उनके धर्मों की कालबाह्य रूढ़ियों के विरोध में ठोस भूमिका लेने अथवा इसके लिए प्रयास करने के उदाहरण आज के समाजवादियों में नहीं दिखेंगे। एस. एम. वाकई सेक्युलर थे। आज सेक्युलिरिज्म का व्रतबंध गले में बांधने वाले समाजवादियों को उनका स्मरण नहीं हो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है। जिस हमीद दलवाई के प्रयत्नों से मुस्लिम सत्यशोधक समाज कार्यरत था, उस हमीदभाई के निकटवर्तियों में भी उनका नाम अनचाहा हो गया है। दाऊदी बोहराओं के समाज सुधार का प्रश्न वैसे ही लटका पड़ा है। ऐसे प्रयास करने वाले नोमनभाई के बच्चों के विवाह के समय धर्म गुरू मिलना मुश्किल हो गया। निधन के बाद समाज की दफन भूमि में भी उन्हें जगह देने से इनकार किया गया। आजकल के सत्ताधारी सैयदना से कदम मिलाकर चलते हैं। समाज सुधार का व्रत लेने वाले दाभोलकर के शिष्य भी इन प्रश्न में दखल नहीं देना चाहते। जब तब सेक्युलिरिज्म के बारे में शंखनाद जरूर सुनाई देता है। इस तरह की पीड़ादायक परिस्थिति है। समाज का नया नेतृत्व यदि सुधारों की आकांक्षाओं को स्वीकार कर, समय की आवश्यकता के अनुसार अपने स्वयं में सुधार करना तय करें तो इस समाज के लिए नए युग का सूत्रपात हो सकता है।
————

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: bohri communitybohri muslimsdaudi bohradr mohammed burhanuddinhindi vivekhindi vivek magazinesayyedna

स्वाती कुलकर्णी

Next Post
रंग बरसे

रंग बरसे

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0