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जन्नत

जन्नत

by भीमसैन गोयाल
in मई -२०१४, सामाजिक
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मिश्रा जी शाम को जब दफ्तर से लौटे तो उन्होंने देखा कि उनका बेटा बड़ा ही परेशान सा होकर घर के बाहर बैठा हुआ है। उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरने के साथ उन्होंने पूछा कि क्या हुआ, बहुत दुखी लग रहे हो? उनके बेटे ने कहा कि अब आपकी बीवी के साथ मेरा गुजारा होना बहुत मुश्किल है। वह मुझे भी हर समय आपकी तरह गुस्सा करने लगी है। मिश्रा जी ने कहा कि ऐसी क्या बात हो गई जो अपनी मम्मी से इतना नाराज हो रहे हो। बेटे ने कहा कि मैंने स्कूल से आकर मम्मी से कहा कि आज मुझे दोस्तों के साथ खेलने जाना है इसलिए आप जल्दी से मुझे पहले स्कूल का होमवर्क करवा दो। मम्मी ने मुझे कहा कि आज अपना काम खुद ही कर लो, आज तो मुझे सिर खुजलाने की भी फुर्सत नहीं है।

मैंने बस इतना कह दिया कि अगर ऐसी बात है तो, मैं आपका सिर खुजला देता हूं, आप मेरा होमवर्क करा दो। बस इसी बात को लेकर वह मुझे गुस्सा करने लग गई।

मिश्रा जी ने बेटे का मूड बदलने और उसे खुश करने के लिए कहा कि आओ हम पार्क में खेलने चलते हैं। अगले ही पल दोनों घर से पार्क की ओर चल पड़े। रास्ते में एक पुल पर बहुत तेज पानी बह रहा था। मिश्रा जी ने बेटे से कहा कि डरो मत, मेरा हाथ पकड़ लो। बेटे ने कहा, ‘नहीं पापा मेरा हाथ पकड़ लो। मिश्रा जी ने मुस्करा कर कहा कि मैं तुम्हारा हाथ पकडूं या तुम मेरा हाथ पकड़ो इससे क्या फर्क पड़ता है। बेटे ने कहा, अगर मैं आपका हाथ पकड़ता हूं और मुझे अचानक कुछ हो जाए तो शायद मैं आपका हाथ छोड़ दूं, लेकिन अगर आप मेरा हाथ पकड़ोगे तो मैं जानता हूं कि चाहे कुछ भी हो जाए, आप मेरा हाथ कभी नहीं छोड़ेंगे।’ कुछ ही देर में दोनों एक सुंदर से पार्क में खेल रहे थे। खेल-खेल में मिश्रा जी ने अपने बेटे से कहा कि तुम मुझसे तो इतना प्यार करते हो परंतु अपनी मां से हर समय नाराज क्यों रहते हो?

बेटे ने मिश्रा जी से कहा कि मुझे तो लगता है, मम्मी को बच्चे ठीक से पालने ही नहीं आते। मिश्रा जी ने हैरान होकर कहा कि बेटा तुम ऐसा क्यों कह रहे हो? बेटे ने जवाब देते हुए कहा कि जब मेरा खेलने का मन होता है तो वह मुझे जबरदस्ती सुलाने की कोशिश करती है, जब मैं सो रहा होता हूं, तो जबरदस्ती मुझे उठाने की कोशिश करती हैं। बेटे की मासूमियत भरी शिकायतें सुनकर मिश्रा जी को अपना बचपन और अपनी मां की याद आ गई। मन ही मन यह सोचने लगे कि इस नादान को कैसे समझाऊं कि मां जैसा इस दुनिया में तो कोई दूसरा हो ही नहीं सकता। मां के दिल में बच्चों के प्रति इतना प्यार होता है कि बच्चे चाहे कितनी ही गलतियां क्यों न कर लें, मां उनकी हर गलती को माफ कर देती है। ज्ञानी और विद्वान लोगों का तो यहां तक मानना है कि मां तो प्रेम-प्यार की वह गंगा-जमुना है जिसके बिना इस सृष्टि की कल्पना करना भी नामुमकिन है। कुछ जगह तो यहां तक पढ़ने को मिलता है कि भगवान के बाद यदि इंसान को किसी की पूजा करनी चाहिए तो वह हक सिर्फ मां को है। मां चाहे किसी की भी हो वह घर में सबसे पहले उठती है। सब की जरूरतों का ध्यान रखते हुए हर किसी के लिए खाना बनाती है। जिस दिन तुम्हें मां का त्याग समझ आएगा उस दिन तुम अनुभव करोगे कि एक मां ही ऐसी है कि उसका बच्चा चाहे उससे कितना ही गलत क्यों न बोल ले, वो कभी भी उसका बुरा नहीं मानती। मां अपने बच्चों की हर खुशी को ही अपना सुख मानती है। मिश्रा जी को थोड़ा गुमसुम-सा बैठा देखकर उनके बेटे ने कहा कि आप यहां मेरे साथ खेलने आए हो या दफ्तर के काम के बारे में सोचने के लिए। मिश्रा जी ने उससे कहा कि मैं दफ्तर के बारे में नहीं बल्कि मां-बेटे के रिश्तों की अहमियत के बारे में ही सोच रहा था। बेटे ने थोड़ा ताज्जुब करते हुए कहा कि मां के इस रिश्ते में ऐसा खास क्या है जो आप इतनी गहरी सोच में डूब गए? मिश्रा जी ने बेटे से कहा कि यदि इस रिश्ते के बारे में तुम कुछ जानना चाहते हो तो अब थोड़ी देर मेरी बातें ध्यान से सुनो। उन्होंने अफसोस जताते हुए बेटे को कहा कि जिस मां को तुम आज चुप रहना सिखा रहे हो उसने तुम्हें दिन-रात मेहनत करके बोलता सिखाया था। मां चाहे क्रोधी हो, पक्षपाती हो, शंकाशील हो, हो सकता है यह सारी बातें ठीक हों परंतु हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि वह हमारी मां है। कुछ समय बाद तुम्हारी शादी होगी उस समय यह बात जरूर याद रखना कि पत्नी पसंद से मिल सकती है लेकिन मां पुण्य से मिलती है। पसंद से मिलने वाली के लिए पुण्य से मिलने वाली मां रूपी देवी को कभी मत ठुकराना। जो कोई घर की मां को रुला कर और मंदिर की मां को चुनरी ओढ़ाता है तो याद रखना मंदिर की मां उन पर खुश होने के बजाए खफा ही होगी।

बेटा मां को सोने से न मढ़ो तो चलेगा, हीरे मोतियों से न जड़ो तो चलेगा, पर उसका दिल जले और आंसू बहे यह कैसे चलेगा? जिस दिन तुम्हारे कारण मां की आंखों में आंसू आते हैं याद रखना उस दिन तुम्हारा किया सारा धर्म-कर्म व्यर्थ के आंसुओं में बह जाएगा। बचपन के आठ-दस साल तुझे अंगुली पकड़कर जो मां स्कूल ले जाती थी, उसी मां को बुढ़ापे में चंद साल सहारा बनकर मंदिर ले जाना, शायद थोड़ा सा तेरा कर्ज, थोड़ा सा तेरा फर्ज पूरा हो जाएगा। मां की आंखों में दो बार आंसू आते हैं, एक बार जब उसकी लड़की घर छोड़ कर जाती है, दूसरी बार जब उसका बेटा उसे मुंह मोड़ लेता है।

इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर शायद हमारे धर्म-ग्रंथों में मां को इतनी अहमियत देते हुए यह कहा गया है कि ऊपर जिसका अंत नहीं उसे आसमां कहते हैं, जहां में जिसका अंत नहीं उसे मां कहते हैं। आज तक इस दुनिया में शायद किसी ने भगवान को नहीं देखा परंतु यदि तुम चाहो तो अपनी मां में ही भगवान को देख सकते हो। मिश्रा जी के अहम विचार सुन कर जौली अंकल हर मां के चरणों में नमन करते हुए यही कहना चाहते हैं कि इस दुनिया में यदि किसी ने भी जन्नत देखनी हो तो वो सिर्फ मां के कदमोें में देखी जा सकती है।
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