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गौ माता

गौ माता

by सुनील मानसिंहका
in मई -२०१४, सामाजिक
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दुनिया को मां शब्द गाय (गोवंश) ने दिया है, क्योंकि बछड़ा जन्म लेते ही ‘मां’ पुकारता है और भारत के ॠषियों-मुनियों और देवों ने ‘गावो विश्वस्म मातर:’ की घोषणा की। इसके गूढ़ार्थ समझने की आज विशेष आवश्यकता है।

हमारी संस्कृति ने मां को सर्वोच्च स्थान दिया है। अपनी माता के साथ-साथ राष्ट्र को भारत माता, गौ, गीता, गंगा, गायत्री सभी को मां के रूप में पूजा जाता है। गाय को ‘विश्व की माता’कोई अतिशयोक्ति या यूं ही नहीं कहा जाता। वह विश्व का पालन करती है, यह इस भौतिकतावादी युग में गहराई से समझकर दुनिया को बताना होगा, तभी वैश्विक संकटों से बचा जा सकेगा। वह धरती पर चलता-फिरता जीवन है, यहां की जीवन रेखा है। मां का स्वाभाविक अर्थ होता है, बालकों का लालन-पालन करते हुए उन्हें जीवन की शिक्षा देना, हजार गुरुओं से ज्यादा शिक्षा वह दे सकती है, यह शास्त्र कहते हैं।

भारत वीरों का, ॠषियों-मुनियों का देश है, यहां माताओं की कोख से कणाद, चरक, सुश्रुत, वाग्भट, गार्गी, रानी लक्ष्मीबाई, शिवाजी, राणा प्रताप, सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह, चंद्र शेखर आजाद, डॉ. हेडगेवार जी, प.पू. गुरुजी ऐसे अनेक वीरों, मनीषियों, चिंतकों ने जन्म लिया। ये सभी देशी गाय के दूध पीने वाले, जैविक कृषि का सात्विक अन्न सेवन करने वालों की संतानें थीं जो राष्ट्रभक्ति, ईमानदारी, वफादारी, कर्मठता, वीरता, नि:स्वार्थी, निष्काम एवं त्याग बलिदान से ओतप्रोत थी। आज बेईमानी, हिंसा, राष्ट्रद्रोह, छलकपट, भ्रष्टाचार, आलस, प्रमाद बढ़ रहा है क्योंकि जर्सी संकरित गाय, भैंस का दूध, हिंसक, रासायनिक खेती के अन्न और फल का सेवन बहुत बढ़ा है।

कुछ उदाहरण आधुनिक वैज्ञानिक तरीके सिद्ध हुए हैं जो समझने के लिए पर्याप्त होंगे। विदेशों में 70-80 वर्षों से गायों को मांसाहार खिला रहे हैं जिससे ‘मैड काऊ’ रोग हुआ, उनके मस्तिष्क के टुक़डे होने लगे (इीरळप वशसशपशीरींळेप); मनुष्यों में आने लगा, ऑक्सीटोसिन का इंजेक्शन गायों को दूध बढ़ाने के लिए दिया। माताओं-बहनों का शरीर फूलने लगा। समय से पूर्व शारीरिक प्रक्रियाएं बदलने लगीं। बीजीएच (ॠीेुींह करीोप) का इंजेक्शन दिया। सीधे वह दूध कैंसर कारक प्रमाणित हुआ।
न्यूजीलैंड में 9 वर्षों के बच्चों में लगभग 20 वर्ष पूर्व ऑटिज्म, हृदय रोग, कैंसर पाया जाने लगा। शोध किया गया तो पता चला कि उनकी जर्सी, होल्स्टीन, फ्रिजीमन के दूध में 1 प्रोटीन है जो इसका कारण है, जबकि भारत की गीर, साहीवाल, ओंगोल, कांक्रेज आदि में दो प्रोटीन है वह इन सब रोगों को रोकता है। रासायनिक खेती के बढ़ने से पंजाब में माताओं के दूध में 21 गुना जहर की मात्रा ज्यादा पाई गई एवं सामान्य पेट के रोग, लकवा, मधुमेह, रक्तचाप, किडनी के रोग, औषधि का प्रतिरोध टीबी, कैंसर, बच्चों, महिलाओं में सैकड़ों रोग बढ़ रहे हैं, अत: मंगला रॉय (पूर्व महानिदेशक कृषि अनुसंधान परिषद भारत सरकार) को कहना पड़ा कि रासायनिक खेती से जनजीवन का अस्तित्व खतरे में आया है। प्रतिक्षण अरबों-खरबों जीवाणुओं मित्र कीटों का संहार करके हम भी हिंसक समाज बना रहे हैं, विदेशी संकरित (सशपशींळल) के बीजों से नपुंसकता एवं प्रतिरक्षा तंत्र ध्वस्त होता है, इनके चारे से पशु-पक्षी-प्राणी मर रहे हैं।

अंग्रेजों का षड्यंत्र है कि करोड़ों भारतीय किसानों को मरवाकर एवं रासायनिक खेती से इस देश को रेगिस्तान में बदला जाए एवं पुन: इस पर शासन करें।

अब हमारा नैतिक दायित्व एवं परम राष्ट्रीय कर्तव्य है कि गो-आधारित शाश्वत कृषि को भागीरथ प्रयत्न करके पुनर्स्थापित करें, जिसमें उपज बढ़ती है, भूमि की उर्वरा आजीवन बनी रहती है, जल स्तर अच्छा बना रहता है, पशु-पक्षी, वनस्पतियां और मनुष्य सभी का श्रेष्ठ पोषण होता है अन्यथा सरकारी आंक़डे कह रहे हैं कि

1. पिछले दस सालों में 98 लाख किसानों ने खेती छो़डी है।

2. 264 जिलों का जल स्तर एकदम नीचे जा चुका है। (ऊरीज्ञ नेपश)

3. 3.0 लाख के लगभग किसानों की आत्महत्या हो चुकी है।

4. एक दाने से हजार लाख दाने लेने वाले किसान कर्ज से ग्रस्त हैं।

गो विज्ञान अनुसंधान केंद्र ने समर्थता से प्रमाणित किया है कि ‘गोमय वसते लक्ष्मी’ ‘गोमूत्र वसते अमृत’ क्योंकि गोबर से केंचुआ खाद, गोमूत्र नीम से कीट नियंत्रक, गोबर, गोमूत्र और गुड़ से अमृत पानी बंजर भूमि को भी सुजलाम-सुफलाम बना रहे बैलों का महत्व बढ़ रहा है। सामान्य किसान ट्रैक्टर का खर्च सह नहीं सकते।

पंचद्रव्य आयुर्वेद चिकित्सा के अंतर्गत गोमूत्र अर्क को पांच से ज्यादा अंतरराष्ट्रीय पेटेंट विश्व की श्रेष्ठतम: औषधि के रूप में सामने आया है। गोमूत्र आसव, घनवटी, गोमय टिकिया, उबटन, हरडे चूर्ण, पंचद्रव्य घृत अनेक असाध्य बीमारियों जैसे पेट के रोग से लेकर एलर्जी, कफ, खांसी, दमा, संधिवात, किडनी, कैंसर आदि में आशातीत लाभ हो रहा है।
भारतीय देशी गोवंश गीर, साहीवाल, ओंगोल, कांक्रेज आदि का रक्षण संवर्धन करते हुए इनकी पारंपरिक चिकित्सा हमारा कर्तव्य है। गोबर से गोबर गैस, जनरेटर ऊर्जा उत्पादन, बैलों को घुमाकर बैटरी चार्जिंग जैसे पानी खींचना आदि अनेक कार्य प्रगति पर हैं।

कुल मिलाकर यह सिद्ध होता है कि समस्याएं अनेक, समाधान एक हमारी प्रिय गौमाता (गोवंश)। यह उक्ति चरितार्थ करनी होगी, तभी हम भारत एवं भारत की माताओं को पुन: आदर्श रूप में प्रतिष्ठित कर सकेंगे।
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