हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
अनाथ बच्चों की ‘माई’ सिंधुताई

अनाथ बच्चों की ‘माई’ सिंधुताई

by रेखा खान
in मई -२०१४, सामाजिक
0

उनके माथे की बड़ी सी गोल लाल बिंदी, चमचमाती मुस्कराहट, नौ गज की साड़ी और स्नेहभरी आवाज को सुनने के बाद ये विश्वास करना बहुत ही मुश्किल था कि ये वही औरत है, जिसे उसके पति ने उस वक्त घर से धक्के मारकर निकाल दिया था, जब वो गर्भवती थी। बेबसी और लाचारी ने उसे इस कदर तोड़ा कि अपनी नवजात बच्ची के लिए भीख मांगने के बाद जब कोई चारा न रहा तो वो अपनी जान देने पर उतारू हो गई थी। दयनीय स्थिति ये थी कि सर पर छत न होने के कारण उन्होंने एक लंबा अरसा शमशान घाट में रहकर बिताया।

वाकई उनकी जिंदगी की दास्तान किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं और यही वजह है कि उन पर फिल्म भी बन चुकी है। 2010 में अनंत महादेवन निर्देशित ‘मी सिंधुताई सपकाळ बोलतेय’ उन्हीं के जीवन पर बनी थी। हम बात कर रहे हैं, हजारों अनाथ बच्चों की ‘माई’ के रूप में जानी जानेवाली सिंधुताई सपकाल की। 10 साल की बाल अवस्था में 30 साल के पुरुष को ब्याह दी जानेवाली सिंधुताई को हालात की विषमताओं ने समाज सेविका बनाया।’ ‘आइकॉनिक मदर’ के रूप में नैशनल अवॉर्ड पा चुकी इस जुझारू महिला को अब तक 750 से भी ज्यादा अवॉर्ड मिल चुके हैं। 66 साल की सिंधु ताई के पास आज हजारों अनाथ बच्चे हैं, जिनमें से वे 282 बच्चों की शादी करवा चुकी हैं।

उनकी कहानी उनकी जुबानी-

पिंपरी में मेरा जन्म हुआ। घर में बहुत गरीबी थी। मेरी मां दूध-दही बेचा करती थी और पिता भैंसें चराया करते थे। मेरे पिता जब गुजरे तो मरने से पहले उनकी अंतिम इच्छा जलेबी खाने की थी, पर पैसे न होने के कारण मेरी मां उन्हें जलेबी न खिला सकीं। मात्र 10 साल की उम्र में मेरी शादी मुझ से 20 साल बड़े आदमी श्रीहरि सपकाल से हो गई। 20 साल की होते-होते मैं तीन बेटों की मां बन चुकी थी। हम लोग फॉरेस्ट विभाग में गोबर उठाने का काम किया करते थे। इसकी कोई मजदूरी नहीं मिलती थी। उस वक्त रंगनाथन कलेक्टर हुआ करते थे। 1972 की बात है, एक दिन मैं लाठी लेकर खड़ी हो गई कि हम बिना मजदूरी के गोबर नहीं उठाएंगे। अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने से सभी को न्याय मिला, मुझे मजदूरी मिली। आज भी वहां मेरे नाम का नारा लगाने के बाद गोबर उठाया जाता है, पर उस मुहिम के लिए मुझे बहुत बड़ी सजा भुगतनी पड़ी। गुस्से से आगबबूला होकर वहां के साहूकार दमड़ाजी असातकर ने मुझे बदनाम कर दिया कि मैं चरित्रहीन हूं और मेरी कोख में पलनेवाली संतान मेरे पति की नहीं बल्कि उसकी है। बस फिर क्या था? मेरी जिंदगी में जैसे भूचाल आ गया। पति ने मुझे धक्के देकर निकाल दिया। मेरे मायके वालों ने सारे रिश्ते-नाते तोड़कर कहा कि मैं उनके लिए मर गई। प्रसव पीड़ा से छटपटाते हुए मैंने अपनी चौथी बेटी को गोशाला में जन्म दिया। नाल को काटने के लिए मैंने पास पड़े नुकीले पत्थर का सहारा लिया।

नवजात बच्ची को लेकर मेरे पास भीख मांगने के अलावा और कोई रास्ता न था। मैं रेलवे स्टेशनों पर गाने गाकर भीख मांगने लगी। रहने की जगह नहीं थी तो मैं शमशान घाट में जाकर रहने लगी। दो बार जब मैंने ख़ुदकुशी करने की कोशिश की तो मैं जान गई कि कफन की कोई जेब नहीं होती और मौत कभी रिश्वत नहीं लेती। मुझे भूत-प्रेत से नहीं आदमियों से डर लगता था। रात को जब मैं किसी नदी-नाले पर नहाती तो डर के मारे कांप रही होती, पर वहां के कीड़े-मकौड़े, पेड़-पौधे और सन्नाटा चिल्लाकर कहता, ‘डर मत सिंधु, हम तेरे साथ हैं।’ बस उसी हिम्मत के बाद मैंने देखा कि मेरे आस-पास बहुत से बेघर बच्चे हैं। मैंने एक कड़ा निर्णय लिया कि मैं अपनी बेटी को श्रीमंत दगडू सेठ हलवाई को गोद दे दूं कि ताकि अपने आश्रय में लिए हुए बच्चों के साथ अन्याय न कर सकूं। उन दिनों मैं चिखलदरा- अमरावती में थी। मैं वहां के कई आदिवासी गांवों के पुनर्वास के लिए खड़ी हो गई। यह टाइगर प्रोजेक्ट का दौर था। मैंने उस वक्त की प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के सामने आदिवासियों की समस्या रखी और उन्हें न्याय दिलाया। उसके बाद मेरी समाज सेवा एक अनंत यात्रा पर चल पड़ी। आज मेरे पास 5 आश्रम हैं, दो पुणे में, दो वर्धा में और एक चिखलदरा में। वहां हजारों बच्चे, कई औरतें पल-बढ़ रहे हैं, शिक्षा पा रहे हैं।

मेरे पूरे राशन का दारोमदार भाषण पर टिका है। मैं जगह-जगह जाकर भाषण देती हूं और अपने आश्रमों के लिए डोनेशन की मांग करती हूं। आज भी मुझे कोई ग्रांट हासिल नहीं है, सरकार की ओर से। मुझे पुरस्कार बहुत मिले है, पर पुरस्कारों से रोटी नहीं मिलती। मैंने पुणे का आश्रम अपने बेटे दीपक (गोद लिए हुए) की जमीन पर बनाया। दीपक को मैंने अपनी गोद में उस वक्त लिया, जब हम शक्कर की बोरियों को ओढ़ते-बिछाते थे। आज तो मेरे बेटे का बोरियों का कारखाना है। आज मेरे सभी बेटे कमा रहे हैं, जो कम पढ़े लिखे हैं वे संस्थाओं का काम देखते हैं। एक अरसे तक मेरे मन में एक बात का डर था कि मेरी बेटी (उनकी अपनी बेटी ममता) ने कभी मुझे आकर पूछा कि आप दुनियाभर के बच्चों की मां बनीं, मेरी मां कहां है तो मैं क्या जवाब दूंगी? मगर उस दिन जब मेरी बेटी ने कहा कि मैं अपनी मां की मां बनना चाहूंगी। उस वक्त मेरे दिल से बोझ उतर गया। मैं अपने पति के पास भी गई थी। मैंने उन्हें माफ़ कर दिया। हाल ही में 15 दिसंबर को 7 जाने-माने मंत्रियों की मौजूदगी में मुझे सम्मानित किया गया। मेरे पति सर झुकाकर रो रहे थे। मैंने उनका सर उठाकर कहा, मैंने आपको माफ़ किया, आप अगर मुझे घर से निकालते नहीं तो मैं आज फॉरेन रिटर्न्ड नौ गजी साड़ीवाली कैसे बनती? मैंने उनसे कह दिया कि अब वे पति बनकर न आएं। मैं उनकी पत्नी नहीं बन सकती। हां अगर वे बच्चे बनकर आएंगे तो मैं उन्हें अपना लूंगी।
————

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp

रेखा खान

Next Post
मां का दूध और दूध का बैंक

मां का दूध और दूध का बैंक

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0